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    बुधवार, 26 जुलाई 2017

    सेक्स को गुप्त ही रहने दो | डा.पवन कुमार मिश्र

    Dr. Pawan K. Mishra
    मानव जीवन के उद्विकास के क्रम में ढेर सारे पड़ाव  आये मसलन वह कपडे पहनने लगा परिवार बना कर रहने लगा राज्य की स्थापना हुई अधिकारों और कर्तब्यो के सहारे मानव जीवन व्यवस्थित होने की और बढ़ा.सेटल्ड होना मानव का सहज स्वभाव है. किन्तु मानव उतना ही सेटल्ड होगा जितने उसमे हैवानो वाली प्रवृत्तिया कम होंगी. जानवर का सहज स्वभाव है की वह मूल प्रवृत्तियों (बेसिक इंस्टिंक्ट) के सहारे क्रिया करता  है जबकि मानव संबंधो और व्यवहार के सहारे क्रिया करता है.भोजन, नीद, सेक्स और सुरक्षा की आवश्यकता मानव और पशु दोनों को होती है. फर्क पद्धति में है. फर्क संस्कृति का है.  कच्चा मांस खाना  व्यभिचार और सुरक्षित होने के लिए खून की नदिया बहा देने का क्रम  सांस्कृतिक विकास  कम होता गया.आजकल की  सभ्यता में जो प्रवृत्तिया उभर रही है उसे देखकर लगता है कि घोर अव्यस्थितता की और हम तेजी से लुढ़कते जा रहे है. यह लुढकाव रोमांचक लगता है. यह लुढकाव आधुनिक होने का बोध करता है. समाज में आपको अलग छवि प्रदान करता है. आपको बोल्ड (बोल्ड के अनेक अर्थ है सभी पाठक अपने अपने अनुसार अर्थ लगाने के लिए स्वतंत्र है.) बनाता है.मसलन आप कपडे उतार दे तो आप निर्लज्ज नहीं बोल्डकहलायेगे. (यदि कपडे उतरना बोल्डनेस है तो जानवर हमसे हजार गुना बोल्ड और फैशनेबुल हैं. )

    आज कल बोल्ड  साहित्य की जोर शोर से चर्चा चल रही है.पहले तो इससे दूरी बनाना चाहा किन्तु सामाजिक सरोकारो से जुड़े होने की जिम्मेदारी  के कारण अपना मत देना जरूरी समझता  हूँ. 

    सेक्स पर वर्जना क्यों?  समाज में व्यवस्था स्थापित करने में सबसे बड़ा रोड़ा आदमी कि मूल प्रव्रत्तिया ही है सेक्स की फीलिंग  जबरदस्त ढंग से मानव को उत्तेजित करती है और डिस्ट्रक्शन की और ले जाने का प्रयत्न करती है. यह परमाणु ऊर्जा से भी ज्यादा ताकतवर है जिसके सहारे जीवन आगे बढ़ता है. यदि सेक्स की फीलिंग  अनियंत्रित हो जाये तो लंका  और ट्राय जैसे साम्राज्य ध्वस्त हो जाते है. जैसे परमाणु ऊर्जा पर नियंत्रण करके हम उससे रचनात्मक एवं मानव कल्याणकारी के कर सकते है ठीक उसी प्रकार सेक्स पर भी नियंत्रण हमारे ऋषियों ने लगाया. विवाह के द्वारा परिवार की स्थापना से मानवता सभ्यता की और उन्मुख हुयी. 

    अब सवाल उठता है कि साहित्य में (कालिदास से लेकर सेक्सपियर और वात्स्यायन से लेकर रोस्टर तक) जब इरोटिक देखने को मिलता है तो किसी  ने उस विषय पर लिख कर कौन सा गुनाह कर दिया.  आज यह सवाल हर उस व्यक्ति के लिए मौजूं हो गया है जो नैतिकता के प्रति ज़रा सा भी संवेदनशील है.जब आम्रपाली जैसी वेश्या सम्मानित हो सकती है तो सन्नी  लियोन क्यों नहीं?  



    जवाब मै  देता हूँ. कालिदास का साहित्य अश्लील  नहीं है.यदि उन्होंने कही पर सम्भोग क्रिया या नायिका के नख शिख का वर्णन किया है तो वह जिस कलात्मकता के साथ किया है उस स्तर पर पहुचने के बाद हर कवि को वह अधिकार  और क्षमता स्वतः ही प्राप्त हो जाती है. मुझे नहीं लगता कि इस समय ब्लॉग के तथाकथित कवियों कवित्रियो में वह क्षमता और स्तर है. आज कल यह फैशन है कि कृष्ण करे तो रास लीला हम करे तो करेक्टर ढीला.  अरे पहले कृष्ण जैसे निर्लिप्त महायोगी बनकर तो दिखाओ. सारे नियम क़ानून सामान्य मनुष्यों के लिए ही है. महापुरुष ट्रांसमोरल होते है. अब कोइ  वेट लिफ्टर का बेटा  कहे कि मेरे पिताजी १०० किलो का वजन उठाते है तो मै भी उठाऊंगा तो आप उस बच्चे को क्या कहेगे. आम्र्पाली को क्या कभी गार्गी के समतुल्य रखा गया क्या. बात सन्नी लियोन की हो या प्रियंका चोपड़ा की. आप अपने बच्चो को बतायेगे क्या कि इनके जैसा बनो या इनको रोल माडल बनाओ. ये मनोरंजन के साधन तो बन सकते है पर सम्मान और उदाहरण के नहीं. 

    होता क्या है कि हर सीकिया पहलवान में गामा पहलवान बनाने की जबरदस्त इच्छा होती है लेकिन उसके लिए वह अपना सीकियापन छोड़ने को तैयार नहीं होता या छोड़ ही नही पाता. फिर बड़ी बड़ी हांकने लगता है और बन जाता है बोल्ड.

    प्रत्येक पुरुष और महिला नहाते समय नग्न होते  है  तो चौराहे पर खडा होकर नंगा नहाए और बोले कि मै तो बोल्ड हूँ आप खुद सोचिये. 


    डर्टी फीलिंग सबमे होती है. लेकिन उसे नियंत्रित किया जाता है. आप सुबह सुबह डर्टी प्रोसेस से गुजरते है तो क्या उस प्रोसेस की कलाकारियो को आप   इसलिए शेयर करना चाहेगे कि लोग आपको बोल्ड कहे. शर्मिन्दा होने की जगह  आप बोल्ड हो जाते हो. आपकी मूर्खता इतनी बढ़ जाती है कि आप खुद को वात्स्यायन और कालिदास से तुलना करने लगते हो. यह नौटंकी बंद होनी चाहिए. प्रेम शरीर से इतर की चीज है. शरीर वासना है तो प्य्रार उपासना. शरीर एक माध्यम  हो सकता है कितु वैसे ही जैसे पंछी  का घोसला  एक स्वस्थ समाज के निर्माण में सेक्स की बड़ी महती भूमिका है उसको सरे आम करना उसकी छीछालेदर करना और सेक्स का अपमान करना है. सेक्स को गुप्त ही रहने दो क्योकि गुप्त होना ही सेक्स की प्रकृति है. यह हर प्राणी में बाई डिफाल्ट है. 

    लेखक.....डॉ पवन विजय   ..जौनपुर 

    Dr. Pawan K. Mishra
    Associate Professor of Sociology
    Delhi  Institute of Rural Development

    New Delhi.

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