कुत्ता उन गिने चुने जानवरो में एक है जो इन्सानी सभ्यता के सब से क़रीब रहा और रूखी सुखी खा के भी अपने मालिक के लिए वफादारी के लिए मिसाल पेश करता रहा। हिंदी फिल्मो में इसका इस्तेमाल विलेन को गाली देने के काम में आता रहा मगर यह भी सच है की कुत्ते का विकास मानव सभ्यता के विकास के साथ होता रहा। आज समाज में दो प्रकार के कुत्ते पाये जाते है १. अमीर कुत्ते जिन्हे उनका मालिक पेट कहता है और प्यार से उसके नाम से सम्बोधित करता है। कोई राहगीर या कोई परचित उसे गलती से कुत्ता कह दे तो मालिक उसके सम्बोधन से नाराज़ हो जाता है और तुरन्त अमुक व्यक्ति के सम्बोधन पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर देता है। २. वह कुत्ते जो सड़क पर पैदा होते है और सड़क पर मर जाते है। उनके नाम नहीं होते वह बेनाम होते है और उनका भोजन घरो में बचे झुटे भोजन के अवशेष होते है कोई घर नहीं होता जहॉ जगह मिले सो जाते है। इतना कुछ होने के बावजुद वे मानव समाज के प्रति निष्टावान होते है रात को जब सब सो रहे होते है यह आवारा कुत्ते जिन्हे अमूमन हम देसी कुत्ता कहते है किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को स्वतन्त्र विचरण की इजाज़त नहीं देते बन्दरों से हिफाज़त करते फिर भी उपेझित रहते यह देशी कुत्ते।
स्विट्जरलैंड और आयरलैंड के आदिवासी भी खेती करने से पहले कुत्ते पालते थे जिनसे वे शिकार और रखवालों में सहायता लेते थे तथा इनके मांस का भी सेवन करते थे। भारत में कुत्ते ऋग्वेद काल से ही पाले जाते रहे हैं। ऋग्वेद में कुत्ते को मनुष्य का साथी कहा गया है। ऋग्वेद में एक कथा है कि इंद्र के पास सरमा नामक एक कुतिया थी। उसे इंद्र ने बृहस्पति की खोई हुई गायों को ढूँढ़ने के लिए भेजा था। उसमें श्याम और शबल नामक कुत्तों का उल्लेख है; उन्हें यमराज का रक्षक कहा गया है। महाभारत के अनुसार एक कुत्ता युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक गया था। मोहन जोदड़ो से प्राप्त मृत्भांडों पर कुत्तों के अनेक चित्र प्राप्त होते है। उनमें उनके उन दिनों पाले जाने का परिचय मिलता है।
कहते है रोमन के शासन काल में जब यहूदी धर्म का बोल बाला था कुछ लोगो का समूह हज़रात ईसा के ज़हूर(आगमन) के लिये निरन्तर खुदा से प्रार्थना कर रहे थे और नबी का इंतेज़ार जब इसकी भनक राजा को लगी वह बहुत नाराज हो गये और उन्हें मारे जाने के लिए एक आदेश जारी किया गया। अपने ईमान (विश्वास) को बचाने के क्रम में वे भागे और भागने के दौरान उनकी भेट एक नवयुवक किसान से हुई जो एक कुत्ते का स्वामी था और उसने भी साथ आने की विनती की, धार्मिक ग्रंथो के अनुसार समूह ने नवयुवक किसान को अपने साथ आने के न्योता को स्वीकार किया तथा उन्हें भी शामिल होने पर रज़ामंदी का इज़हार किया। कहते है की कुत्ता भी अपने मालिक के साथ हो लिया तथा समूह का यह मानना था की कुत्ता भौक के उनके छुपने के राज़ को उजागर कर देगा। कहते है खुदा जिससे चाहे बुलवा सकता है कुत्ते ने यह कहा की वह वफ़ादार है और वह अपने मालिक और समूह की हिफाज़त करेगा, नतीजा कुत्ते के विनर्म निवेदन के पश्चात समूह ने उस कुत्ते को भी अपने साथ आने की इजाज़त दे दी। उस कुत्ते का नाम कितमीर था और क़ुरान के हवाले से वह जन्नत का हक़दार है। समूह ने एक गुफ़ा में शरण ली और कहते है यह समुह उस गुफ़ा में खुदा ने उन्हें ३०० सालो के लिये सुला दिया और कुत्ता उस गुफ़ा के प्रवेशद्वार पर एक गार्ड के रूप बैठा रहा। क़ुरान शरीफ़ में इसका ज़िक्र सूरह-ए कहफ़ १८:१८ में दर्ज है।
आज हमारे सभ्य समाज में पालतू कुत्तो का स्थान कुछ चुनिंदा पूजीपतियों ने ले ली है और पुरे देश के बाणिज्य पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल रहे है और देश की राजनीती की धुरी के रूप में पहचाने जाते है और अवाम नबी की आमद का इंतेज़ार में मशगूल।
Writer: Asad Jafar
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