नागपंचमी का पर्व पूर्वी उत्तर प्रदेश में हिन्दू धर्म में सावन महीने से त्योहारों के शुरूवात का पर्व माना जाता है। नागपंचमी का पर्व सोमवार २३ जुलाई २०१२ को है। परम्परागत व हर्षोल्लास पूर्वक त्यौहार को मनाने के लिए रविवार को लोगों ने बाजार से नाग देवता के पोस्टर, धान का लावा व तिल की जमकर खरीदारी की।
हिंदू पर्वो में नाग पंचमी का खासा महत्व है। इस दिन नाग देवता की पूजा कर दूध व लावा चढ़ाने की रस्म पूरा की जाती है। घर की व्रती महिलाएं तिल ग्रहण करती हैं। वहीं गांव के सरोवरों पर महिलाओं द्वारा गीत गाकर गुड़िया फेंकी जाती है। इस दौरान महिलाएं एक दूसरे को प्रसाद भेंट करती हैं। जगह-जगह दंगल का पारंपरिक तरीके से आयोजन होता है। वहीं महिलाएं कजरी की तान छेड़ झूले का आनंद उठाती हैं। गांव में लोग घर के आसपास स्थित पेड़ की डाल पर झूला डाले रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि नाग पंचमी के दिन इन सब रस्मों को पूरा करना शुभ होता है। यह दिन संपेरों की रोजी रोटी के लिए भी खास होता है। कारण कि नाग देवता के दर्शन कराने पर उन्हें लोगों से पैसे भी मिलते हैं।
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार जहां पशु, पक्षियों, वृक्षों में देवताओं का वास बताया गया है वहीं नाग देवता का पूजन भी किया जाता है। आदिकाल से नागपंचमी के पर्व पर जहां लोग विभिन्न पूजन सामग्रीयों से नागपंचमी के दिन स्नानकर प्रातःकाल दूध-लावा चढ़ाकर नाग देवता को प्रसन्न करने के लिये पूजन-अर्चन करते है वहीं इस पर्व पर मल्ल युद्ध कलाप्रेमी पहलवान लगोट पूजन, गदा जोड़ी, अखाड़ा पूजन कर प्रसाद बांटने के बाद आज के दिन से कुश्ती कला की रियाज का शुरूवात करते है। गांव से लेकर नगर तक झूले पड़ जाते है। दिनभर बच्चे झूले का आनन्द लेते है। रात में महिलायें झूले पर बैठकर कजरी गाती है तथा झूला झूलती है।
नागपंचमी के बाद से ही तीज त्योहार का पर्व शुरू हो जाता है जिसके चलते इस पर्व का पूर्वी उत्तर-प्रदेश में ज्यादा महत्व हैं।
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
संचालक
एस एम् मासूम