खेती -किसानी से जुड़े लोग ,मौसम का हर दिन बदलता हाल देख हैरान हैं .उनके सपने -उनकी आशा सब कुछ फसल ही तो है.अच्छी फसल मतलब साल भर सुकून का जीवन नहीं तो फिर---कहाँ जायेंगे किससे मांगेंगे.माई की दवाई ,बच्चो की पढाई,बिटिया का विवाह,साल भर का रिश्तेदारी और छोटे-मोटे खर्च,कौन देगा ....?उनके लिए कोई वेतनमान तो फिक्स है नहीं .उनका वेतनमान बढ़ाने वाली प्रकृति तो उनसे रूठती जा रही है ,अच्छी फसल ही तो उनका प्रोन्नत वेतनमान है ,फसल चौपट तो बिना अग्रिम पगार के बाहर. इस बार सरसों की फसल पूरे पूर्वांचल में गजब की है......
पर मौसम के करवट से किसानों के माथे पर बल पड़ गये हैं पता नहीं सुरक्षित घर के अंदर आ पायेगी .अरहर की दाल की समस्या को देखते इस बार किसानों नें व्यापक तौर पर अच्छे क्षेत्रफल में अरहर की बुआई की थी ।मौसम बार-बार ऐसा ठंडा-गर्म हुआ कि दो बार अरहर के फूल आकर झड़ गये ,अब तीसरी बार फिर आ रहे हैं , लेकिन मौसम गर्म हो रहा है ऐसे में फली और उसके अंदर के दानों का सूख जाने का डर है ,अच्छी फसल की उम्मीद खत्म हो रही है, लगता है अभी दाल गरीबों के लिए इस वर्ष भी सपना ही रहेगी.यही हाल गेहूं का भी है- बार -बार बढ़ जा रहे तापमान से इसके उत्पादन में निश्चित फर्क पड़ेगा ।
आज सुबह सबेरे खेत में आये हुए हमारे गांव के सफल किसान राकेश तिवारी अवधी के एक पुरानें लोकगीत को जोरदार आवाज दे रहे हैं --गेहुआं की बलिया में मोतिया के दनवा,कतौ घुन-घुनवा बजाय रहे चनवा ,खेतवा के मेड़वा पे बिहसे किसनवा ,धरती हमार उगलत अहै सोनवा ,गंगा माई तोहरा करब दर्शनवाँ,जौ भरि जाई कुठिला अंगनवा ना ...
.......अब इनको कौन समझाये कि अपनी गंगा माई का हाल भी अब बेहाल हो चला है ,किसानों की तरह ही .......तो आप भी अपना आशीर्वाद दीजिये और ऊपर वाले से दुआ कीजिये कि इस साल -सालों साल ,किसानों की झोली भरी रहे ........आमीन...
पर मौसम के करवट से किसानों के माथे पर बल पड़ गये हैं पता नहीं सुरक्षित घर के अंदर आ पायेगी .अरहर की दाल की समस्या को देखते इस बार किसानों नें व्यापक तौर पर अच्छे क्षेत्रफल में अरहर की बुआई की थी ।मौसम बार-बार ऐसा ठंडा-गर्म हुआ कि दो बार अरहर के फूल आकर झड़ गये ,अब तीसरी बार फिर आ रहे हैं , लेकिन मौसम गर्म हो रहा है ऐसे में फली और उसके अंदर के दानों का सूख जाने का डर है ,अच्छी फसल की उम्मीद खत्म हो रही है, लगता है अभी दाल गरीबों के लिए इस वर्ष भी सपना ही रहेगी.यही हाल गेहूं का भी है- बार -बार बढ़ जा रहे तापमान से इसके उत्पादन में निश्चित फर्क पड़ेगा ।
आज सुबह सबेरे खेत में आये हुए हमारे गांव के सफल किसान राकेश तिवारी अवधी के एक पुरानें लोकगीत को जोरदार आवाज दे रहे हैं --गेहुआं की बलिया में मोतिया के दनवा,कतौ घुन-घुनवा बजाय रहे चनवा ,खेतवा के मेड़वा पे बिहसे किसनवा ,धरती हमार उगलत अहै सोनवा ,गंगा माई तोहरा करब दर्शनवाँ,जौ भरि जाई कुठिला अंगनवा ना ...
.......अब इनको कौन समझाये कि अपनी गंगा माई का हाल भी अब बेहाल हो चला है ,किसानों की तरह ही .......तो आप भी अपना आशीर्वाद दीजिये और ऊपर वाले से दुआ कीजिये कि इस साल -सालों साल ,किसानों की झोली भरी रहे ........आमीन...
अफसोसजनक स्थिति
जवाब देंहटाएंयकीनन दुआ करनी चाहिए क्यों कि स्थिति चिंताजनक है. डॉ. मनोज मिश्र जी ,इस प्रस्तुति के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंwe all pray for our farmers , because they are he base of our lives . if they are happy only then we could be happy ..
जवाब देंहटाएंyes this is the very sad phase of our farmers that lastly they are just depended upon weather situation . we developed our technologies but no much could be done in this area ..
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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