हमारे गांव में इस समय महिलाये झूले पर बैठ कजरी गा रही होंगी। पेंग मारे जा रहे होंगे। हलकी बारिश में भीगे ज्वान नागपंचमी की तैयारी में अखाड़े में आ जुटे होंगे और मैं यहाँ ७०० किलोमीटर दूर कम्प्यूटर तोड़ रहा हूँ। खैर आप लोग लोकभाषा में लिखे इस गीत और भाव को देखिये।
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हमका मेला में चलिके घुमावा पिया
झुलनी गढ़ावा पिया ना।
अलता टिकुली लगइबे
मंगिया सेनुर से सजइबे,
हमरे उँगरी में मुनरी पहिनावा पिया
मेला में घुमावा पिया ना।
हँसुली देओ तुम गढ़ाई
चाहे कितनौ हो महंगाई,
हमे सोनरा से कंगन देवावा पिया
हमका सजावा पिया ना।
बाला सोने के गढ़इबे
चांदी वाली करधन लइबे,
छागल माथबेनी हमके बनवावा पिया
झुमकिउ पहिनावा पिया ना।
कड़ेदीन की जलेबी
रसमलाई औ इमरती,
एटमबम्म तू हमका लियावा पिया
बरफी खियावा पिया ना।
गऊरी शंकर धाम जइबे
अम्बा मईया के जुड़इबे ,
इही सोम्मार रोट के चढावा पिया
धरम तू निभावा पिया ना।
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