डॉ 0 सज़ल सिंह इतिहासकार
आदि गंगा गोमती के पावन तट पर बसा जौनपुर भारत के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। अति प्रचीन काल में इसका आध्यात्मिक व्यक्तित्व और मध्यकाल में सर्वागिक उन्नतिशील स्वरूप इतिहास के पन्नो पर दिखाई पड़ता है। शर्कीकाल में यह समृध्दशाली राजवंश के हाथो सजाया गया। उस राजवंश ने जौनपुर को अपनी राजधानी बनाकर इसकी सीमा दूर दूर तक फैलाया। यहां दर्जनो मस्जिदो के निर्माण के साथ ही खुब सूरत शाही पुल और शाही किले का निमार्ण और पूरी राजधानी सुगंध से महकती रहती थी। राजनीतिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक,कलात्मक और शैक्षिक दृष्टियो से जौनपुर राज्य की शान बेमिसाल थी।
ऋषि-मुनियो ने तपस्या द्वारा इस भूमि को तपस्थली बनाया, बुध्दिष्टो ने इसे बौध धर्म का केन्द्र बनाया। हिन्दू-मुस्लिम गंगा-जमुनी संस्कृति गतिशील हुई। यह शिक्षा का बहुत बड़ा केद्र रहा,यहां इराक, अरब, मिश्र, अफगानिस्तान, हेरात, बदख्शां आदि देशो से छात्र शिक्षा प्राप्त करने यहां आते थे। इसे भारतवर्ष का मध्युगीन पेरिस तक कहा गया है और शिराज-ए-हिन्द होने का गौरव भी प्राप्त हैं।
हिन्दी, उर्दू, अरबी, फारसी, और संस्कृत भाषाओ में यहां के कवियो और लेखको ने प्रभुत साहित्य लिखा। यहां की सास्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक एकता दुनियां में विख्यात हैं। अंग्रेजी राज्य में स्वतंत्रता के लिए यहां के लोगो ने जो प्रणो की आहुति दी हैं उसके खून के धब्बे आज भी पूरे जनपद से मिटे नही हैं
अपने अतीत एवं विद्या-वैभव के लिए सुविख्यात जनपद जौनपुर अपना एक विशिष्ट ऐतेहासिक, सामाजिक एवं राजनैतिक अस्तित्व रखता है। पौराणिक कथानको शिलालेखो, ध्वसावशेषो एवं अन्य उपलब्ध तथ्यो के अधार पर अतीत का अध्ययन करने पर जनपद का वास्तविक स्वरूप किसी न किसी रूप में उत्तर वैदिककाल तक दिखाई पड़ता हैंै। आदि गंगा गोमती नगर का गौरव एवं इसका शांतिमय तट तपस्वी, ऋषियों एवं महाऋषियों के चिन्तन व मनन का एक प्रमुख पुण्य स्थल था, जहां से वेदमंत्रो के स्वर प्रस्फुटित होते थे। आज भी गोमती नगर के तटवर्ती मंदिरो में देववाणियां गुज रही हैं।
इस जनपद में सबसे पहले रघुवंशी क्षत्रियों का आगमन हुआ। बनारस के राजा ने अपने पुत्री की शादी आयोध्या के राजा देवकुमार से किया और दहेज में अपने राज्य का कुछ भाग दे दिया। जिसमें डोभी क्षेत्र के रघुवंशी आबाद हुए। उसके बाद ही वत्यगोत्री,दुर्गवंश और व्यास क्षत्रिय इस जनपद में आये। जौनपुर में भरो और सोइरियों का प्रभुत्व था। बराबर भरो और क्षत्रियों में संघर्ष होता रहा। गहरवार क्षत्रियों ने भरो और सोइरियों के प्रभुत्व को पुरी तरह समाप्त कर दिया। ग्यारहवीं सदी में कनौज के गहरवार राजपूत जफराबाद और योनापुर यानी जौनपुर को समृध्द और सुन्दर बनाने लगें। कन्नौज से यहां आकर विजय चंद्र ने कई भवन और गढ़ी का निर्माण कराया।
1194 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मनदेव यानी जफराबाद पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन राजा उदयपाल को पराजित कर इस सत्ता को दीवान सिंह को सौपकर बनारस की ओर चल दिया। 1389 ई0 में फिरोजशाह का पुत्र महमूद शाह गद्दी पर बैठा। उसने मलिक सरवर ख्वाजा को मंत्री बनाया और बाद में 1393 ई0 में मलिक उसषर्क की उपाधि देकर कन्नौज से बिहार तक क्षेत्र उसे सौप दिया। मलिक उसषर्क ने जौनपुर को राजधानी बनाया। इटावा से बंगाल तक तथा विध्याचंल से नेपाल तक अपना प्रभुत्व स्थापित स्थापित किया। शर्की वंश के संस्थापक मलिक उसषर्क की मृत्यु 1398 ई0 में हो गयी। जौनपुर की गद्दी पर उसका दत्तक पुत्र मुबारक शाह बैठा। इसके बाद छोटा भाई इब्राहिमशाह इस राज्य का बादशाह बना। इब्राहिम निपुण व कुशल शासक रहा। उसने हिन्दुओं के साथ सद्भाव की नीति पर कार्य किया।
1484 से 1525 ई0 तक लोदी वंश का जौनपुर की गद्दी पर अधिपत्य रहा हैं। 1526 ई0 में दिल्ली पर बाबर ने आक्रमण कर दिया और पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी को मार डाला। दिल्ली पर विजय प्राप्त करने के बाद बाबर ने अपने पुत्र हिमायूं को जौनपुर राज पर कब्जा करने के लिए भेजा। हिमायूं ने तत्कालीन शासक को मौत के घाट उतार दिया। 1556 ई0 में हिमायूं की मौत हो गयी। पिता की मौत के बाद मात्र 18 वर्ष की आयु में जलालुद्दीन अकबर ने इस गद्दी की कमान सम्भाली। 1567 में ई0 में अली कुली खान ने विद्रोह कर दिया तब अकबर खुद चढ़ायी कर अली कुली खान को मार डाला। अकबर काफी दिनों तक यहां निवास किया। उसके बाद सरदार मुनीम खाॅ को शासक बनाकर वापस चला गया।
साभार शिराज़ ऐ हिन्द
आदि गंगा गोमती के पावन तट पर बसा जौनपुर भारत के इतिहास में अपना विशेष स्थान रखता है। अति प्रचीन काल में इसका आध्यात्मिक व्यक्तित्व और मध्यकाल में सर्वागिक उन्नतिशील स्वरूप इतिहास के पन्नो पर दिखाई पड़ता है। शर्कीकाल में यह समृध्दशाली राजवंश के हाथो सजाया गया। उस राजवंश ने जौनपुर को अपनी राजधानी बनाकर इसकी सीमा दूर दूर तक फैलाया। यहां दर्जनो मस्जिदो के निर्माण के साथ ही खुब सूरत शाही पुल और शाही किले का निमार्ण और पूरी राजधानी सुगंध से महकती रहती थी। राजनीतिक, प्रशासनिक, सांस्कृतिक,कलात्मक और शैक्षिक दृष्टियो से जौनपुर राज्य की शान बेमिसाल थी।
ऋषि-मुनियो ने तपस्या द्वारा इस भूमि को तपस्थली बनाया, बुध्दिष्टो ने इसे बौध धर्म का केन्द्र बनाया। हिन्दू-मुस्लिम गंगा-जमुनी संस्कृति गतिशील हुई। यह शिक्षा का बहुत बड़ा केद्र रहा,यहां इराक, अरब, मिश्र, अफगानिस्तान, हेरात, बदख्शां आदि देशो से छात्र शिक्षा प्राप्त करने यहां आते थे। इसे भारतवर्ष का मध्युगीन पेरिस तक कहा गया है और शिराज-ए-हिन्द होने का गौरव भी प्राप्त हैं।
हिन्दी, उर्दू, अरबी, फारसी, और संस्कृत भाषाओ में यहां के कवियो और लेखको ने प्रभुत साहित्य लिखा। यहां की सास्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक एकता दुनियां में विख्यात हैं। अंग्रेजी राज्य में स्वतंत्रता के लिए यहां के लोगो ने जो प्रणो की आहुति दी हैं उसके खून के धब्बे आज भी पूरे जनपद से मिटे नही हैं
अपने अतीत एवं विद्या-वैभव के लिए सुविख्यात जनपद जौनपुर अपना एक विशिष्ट ऐतेहासिक, सामाजिक एवं राजनैतिक अस्तित्व रखता है। पौराणिक कथानको शिलालेखो, ध्वसावशेषो एवं अन्य उपलब्ध तथ्यो के अधार पर अतीत का अध्ययन करने पर जनपद का वास्तविक स्वरूप किसी न किसी रूप में उत्तर वैदिककाल तक दिखाई पड़ता हैंै। आदि गंगा गोमती नगर का गौरव एवं इसका शांतिमय तट तपस्वी, ऋषियों एवं महाऋषियों के चिन्तन व मनन का एक प्रमुख पुण्य स्थल था, जहां से वेदमंत्रो के स्वर प्रस्फुटित होते थे। आज भी गोमती नगर के तटवर्ती मंदिरो में देववाणियां गुज रही हैं।
इस जनपद में सबसे पहले रघुवंशी क्षत्रियों का आगमन हुआ। बनारस के राजा ने अपने पुत्री की शादी आयोध्या के राजा देवकुमार से किया और दहेज में अपने राज्य का कुछ भाग दे दिया। जिसमें डोभी क्षेत्र के रघुवंशी आबाद हुए। उसके बाद ही वत्यगोत्री,दुर्गवंश और व्यास क्षत्रिय इस जनपद में आये। जौनपुर में भरो और सोइरियों का प्रभुत्व था। बराबर भरो और क्षत्रियों में संघर्ष होता रहा। गहरवार क्षत्रियों ने भरो और सोइरियों के प्रभुत्व को पुरी तरह समाप्त कर दिया। ग्यारहवीं सदी में कनौज के गहरवार राजपूत जफराबाद और योनापुर यानी जौनपुर को समृध्द और सुन्दर बनाने लगें। कन्नौज से यहां आकर विजय चंद्र ने कई भवन और गढ़ी का निर्माण कराया।
1194 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने मनदेव यानी जफराबाद पर आक्रमण कर दिया। तत्कालीन राजा उदयपाल को पराजित कर इस सत्ता को दीवान सिंह को सौपकर बनारस की ओर चल दिया। 1389 ई0 में फिरोजशाह का पुत्र महमूद शाह गद्दी पर बैठा। उसने मलिक सरवर ख्वाजा को मंत्री बनाया और बाद में 1393 ई0 में मलिक उसषर्क की उपाधि देकर कन्नौज से बिहार तक क्षेत्र उसे सौप दिया। मलिक उसषर्क ने जौनपुर को राजधानी बनाया। इटावा से बंगाल तक तथा विध्याचंल से नेपाल तक अपना प्रभुत्व स्थापित स्थापित किया। शर्की वंश के संस्थापक मलिक उसषर्क की मृत्यु 1398 ई0 में हो गयी। जौनपुर की गद्दी पर उसका दत्तक पुत्र मुबारक शाह बैठा। इसके बाद छोटा भाई इब्राहिमशाह इस राज्य का बादशाह बना। इब्राहिम निपुण व कुशल शासक रहा। उसने हिन्दुओं के साथ सद्भाव की नीति पर कार्य किया।
1484 से 1525 ई0 तक लोदी वंश का जौनपुर की गद्दी पर अधिपत्य रहा हैं। 1526 ई0 में दिल्ली पर बाबर ने आक्रमण कर दिया और पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी को मार डाला। दिल्ली पर विजय प्राप्त करने के बाद बाबर ने अपने पुत्र हिमायूं को जौनपुर राज पर कब्जा करने के लिए भेजा। हिमायूं ने तत्कालीन शासक को मौत के घाट उतार दिया। 1556 ई0 में हिमायूं की मौत हो गयी। पिता की मौत के बाद मात्र 18 वर्ष की आयु में जलालुद्दीन अकबर ने इस गद्दी की कमान सम्भाली। 1567 में ई0 में अली कुली खान ने विद्रोह कर दिया तब अकबर खुद चढ़ायी कर अली कुली खान को मार डाला। अकबर काफी दिनों तक यहां निवास किया। उसके बाद सरदार मुनीम खाॅ को शासक बनाकर वापस चला गया।
साभार शिराज़ ऐ हिन्द
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
संचालक
एस एम् मासूम