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    मंगलवार, 18 जुलाई 2017

    क्या आप अप्राकृतिक सेक्स, बलात्कार और मानसिक रोगी समाज चाहते हैं ?


    आज हर दिन हर तरफ से महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार , बलात्कार की खबरें आया करती हैं और ऐसा महसूस होता है जैसे आज महिला घर, बाहर , दफ्तर ,कहीं भी महफूज़ नहीं है | महानगरों में तो युवाओं का आपस में दोस्ती करना और शारीरिक सम्बन्ध बना लेना आम होता जा रहा है और वहाँ इसे धीरे धीरे नियति मान के लोग चुप बैठने लगे हैं | लेकिन छोटे शहरों में और गाँव में तो ऐसे रिश्ते खुल जाने पे मामला इज्ज़त का बन जाता है और क्यूँ ना बने भाई जब ऐसे रिश्तों में पड़ी लड़की की शादी नहीं होती तो मामला गंभीर तो होगा ही |  आज का युवा मानसिक रूप से रोगी होता जा रहा है इसलिए इसके कारणों की तलाश आज आवश्यक होती जा रही है | 


    सेक्स इंसान के जीवन की एक ऐसी आवश्यकता है जिस से बचने की कोशिश मानसिक बिमारियों को जन्म देती है | इंसान के जीवन में जवानी आते ही उसे सेक्स पार्टनर की आवश्यकता महसूस होने लगती है और इसके ज़िम्मेदार  जवानी पे हुए शारीरिक परिवर्नत हुआ करते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता | इन परिवर्तनों को अनदेखा करना और सही उम्र के बाद भी सेक्स की अनुमति का ना मिलना हमारे जवानो को मानसिक रूप से बीमार करता जाता है और नतीजा होता है अप्राकृतिक सेक्स, बलात्कार, और बहुत बार कौटुम्बिक व्यभिचार | ऐसा  नहीं की यह बीमारियाँ केवंल जवानों को हुआ करती है बल्कि इसका शिकार जवानी से बुढापे  तक किसी भी उम्र के लोग होते देखे गए हैं |



    जैसे इंसान को पैदा होते ही शरीर को ताक़त देने के लिए भूख लगती है और बच्चा दूध की तलाश करने लगता है वैसे ही जवानी के बाद इंसान को सेक्स की आवश्यकता महसूस होने लगती है और वो एक पार्टनर की तलाश करने लगता है | हमारे समाज में तो आज जवानो की इस भूख को सही समय पे मिटाने के ज़रिये के बारे में कम ही सोंचा जाता है लेकिन इस भूख को बढाने के ज़रिये हर जगह देखे जा सकते हैं | अब यह महिलाओं के अर्धनग्न पहनावे हों या केवल धन कमाने  के लिए पोर्न परोसता यह समाज हो सब मिल के जवानों की अपरिपक्व उम्र में ही उसे सेक्स की तरफ आकर्षित करते दिखाई देते हैं | 


    एक युवा में शारीरिक परिवर्तन के चलते अगर १५-१६ साल की आयु में सेक्स की चाह पैदा होती है लेकिन  यह पोर्न और पश्चिमी समाज का खुला  माहोल १२ साल की आयु में ही उसे  सेक्स के बारे में सोंचने पे मजबूर कर देता है ऐसे में अपरिपक्व उम्र और कौतुहल नयी चीज़ को जानने का आज के युवाओं को गुनाह और जुर्म के दलदल में फंसा सकता है | आज बच्चों के हाथ में मोबाइल और उसमे पोर्न फिल्मो का खज़ाना उनके सेक्स के लिए पार्टनर की तलाश के लिए मजबूर करता है और यह तलाश अनजान जगहों पे नहीं बल्कि आस पास के मिलने जुलने वालों पे ही जा के ख़त्म हुआ करती है | इसमें अगर बलात्कार हो जाये तो इसका दोषी कौन ? समाज या वो नाबालिग बच्चा ?


    अपने युवाओं को अच्छे संस्कार दें जिस से वो पाने पे संयम रखा सीख सकें लेकिन फिर भी उनकी शारीरिक आवश्यकताओं को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता | इसलिए इसका एक मात्र उपाय  अब यही बचा है की समाज की स्वीकृति के साथ जिस समय नौजवानों को सेक्स की इच्छा पैदा हो और वो उसपे काबू करने की हालत में न हों उन्हें सेक्स पार्टनर उपलब्ध करवाया जा सके | यकीनन समाज की स्वीकृति का मतलब है विवाह बंधन में बंधना | इसके लिए  कौन सी उम्र तय की जाए या किस प्रकार से ऐसे विवाह की इजाज़त दी जाये यह नौजवानों की शारीरिक ज़रुरत पे निर्भर करेगा | इन्साफ की बात यही है की जिस उम्र में सेक्स की चाह पैदा हो नौजवानों में उन्हें उसी उम्र में पार्टनर मिलना चाहिए वरना अनैतिक शारीरिक  सम्बन्ध, अप्राकृतिक सेक्स, बलात्कार और मानसिक रोग वाले युवाओं वाले  समाज के लिए तैयार रहना चाहिए |


    इसका उपाय सोंचना आज इस समाज में रह रहे हर वर्ग और धर्म के लोगों का काम है क्यूँ की जब सामाजिक समस्याएँ पैदा होने लगे तो इसका हल कानून के पास कम और समाज के पास अधिक हुआ करता है | आज मुश्किल यह है की समाज ने खुद को नियति के सहारे छोड़ दिया है और कानून सख्त से सख्त बनाने की मांग  की जा रही है ऐसे में किसी अच्छे नतीजे की उम्मीद करना मुर्खता ही कही जायगी | 

    एस एम् मासूम 
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    1 comments:

    1. ब्लॉग बुलेटिन की शनिवार ०९ अगस्त २०१४ की बुलेटिन -- काकोरी कांड के क्रांतिकारियों को याद करते हुए– ब्लॉग बुलेटिन -- में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ...
      एक निवेदन--- यदि आप फेसबुक पर हैं तो कृपया ब्लॉग बुलेटिन ग्रुप से जुड़कर अपनी पोस्ट की जानकारी सबके साथ साझा करें.
      सादर आभार!

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    एस एम् मासूम

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