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Hanuman ghat mandir |
हनुमान घाट के इन मंदिरों के समूह से सटी हुयी एक अकबर के समय की मस्जिद भी है जिसे आज लाल मस्जिद के नाम से जाना जाता है |
हनुमान घाट पहुँचने के लिए शाही पुल के हम्माम वाले रास्ते से जो कसरी बाज़ार से आ रहा है गोमती किनारे उतरना पड़ता है | आज भी यह मंदिर शाही पुल से दिखाई देता है |हनुमान जी का मंदिर है जो पंचायती मंदिर कहा जाता है और इसके निर्माण में कसरी लोगो का हाथ है । यह मंदिर २०० से अधिक वर्ष पुराना है लेकिन आज जो बनावट देख रहे हैं यह भवन 100 वर्ष से अधिक पुराना नहीं लगता है | इसमें हनुमान जी की मूर्तियों के साथ साथ शंकर भगवान् , गणेश जी की मूर्तियाँ है | हर मंगलवार को यहाँ बहुत भीड़ हुआ करती है और शिवरात्रि, पूरनमासी या स्नान के अवसर पे यहाँ श्रधालुओं की भीड़ हुआ करती है |
आज इस मंदिर के आस पास के घाट साफ़ नहीं दीखते बस मंदिर का प्रांगन वहाँ के भगतगण साफ़ किया करते हैं | गोमती किनारे जबकि अच्छे घाट बने हैं लेकिन सफाई की कमी के कारण शाही पुल से वो सुन्दर नज़ारा नहीं दिख् पाता जो कभी दिखा करता था |
सत्यनारायण मंदिर के सामने मुझे पुजारी मिले जिन्हने कहा की आज लोगों को सफाई के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है क्यूँ की एक समाज था जब भक्त यहाँ आते थे तो सबसे पहले आस पास के इलाके की साफ़ सफाई किया करते थे और कोई यदि गन्दा करता तो लोग उसे रोका करते थे लेकिन आज ऐसा नहीं है |
पुरानी इतिहास की किताबों में लिखा है की हनुमान घाट पे पहुँचते ही आपको दायें और बायें मंदिरों का सुन्दर द्रश्य दीखता है जहां जहां पुजारी तिलक मुद्रा लगाय बैठे होते हैं स्नान करते और प्रार्थना करके जल चढाते लोग देवियाँ पीपल की छाँव में मूर्तियों पे श्रधा और प्रेम से झुक के जल चढ़ती नज़र आते हैं |आज हनुमान घाट पे यह द्रश्य नहीं दिखता |

हनुमान घाट से सटा हुआ एक मंदिर है जो सत्यनारायण मंदिर के नाम से जाना जाता है और यह मंदिर भी लगभग २०० वर्ष से अधिक पुराना है | इस मंदिर को इतिहास की किताबोक के अनुसार रत्तू लाल कसरी ने बनवाया था और वहाँ के पुजारियों के अनुसार उसी समय एक मस्जिद भी बनवाई गयी थी जो अपने आप में हिन्दू मुस्लिम भाईचारे का प्रतीक है |
सत्यनारायण मंदिर का दर बहुत सी सुन्दर शिल्प कला का प्रतीक है और वहाँ के लोगों का कहना है की यह राजस्थानी शिल्प कला है और इसके लिए राजस्थान से कारीगर बुलाय गए थे |
इस हनुमान और दुर्गा मंदिर के पूर्व में एक अकबर के समय की मस्जिद है जिसे आज लाल मस्जिद के नाम से जाना जाता है | जिसका निर्माण १५६८ ईस्वी के समय का बनाया जाता है |
मैं जब वहाँ पहुंचा तो मुझे यह देख के अच्छा लगा की उस मंदिर और मस्जिद के देख रेख करने वालों में आपसी भाईचारा इतना बढ़िया है की वे साथ साथ उठते बैठते हैं और आपस में मिल जुल के समस्याओं का समाधान करते हैं |
वहाँ मौजूद लोगों से बात चीत के अंश आप भी सुनिए |

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