जौनपुर में शिया मुसलमानों की नमाज़ ऐ जुमा सबसे पहले खालिस मुखलिस मस्जिद में हुयी थी |
पुराने जौनपुर के दरिया किनारे के कुछ इलाके शर्की लोगों की ख़ास पसंद रहे थे | पानदरीबा रोड पे आपको पुराने समय की बहुत सी इमारतें मिलेंगी जिनमे से बहुत से इमामबारगाह जो इमाम हुसैन (अ.स) की याद में बनाए गए थे ,मिलेंगे | यहाँ पान दरीबा रोड पे मकबरा सयेद काजिम अली से सटी हुई एक मस्जिद मौजूद है जिसे खालिस मुखलिस या चार ऊँगली मस्जिद कहते हैं | शर्की सुलतान इब्राहिम शाह के दो सरदार इस इलाके में आया जाया करते थे कि एक दिन उनकी मुलाक़ात जनाब सैयेद उस्मान शिराज़ी साहब से हुई जो की एक सूफी थे और इरान से जौनपुर तैमूर के आक्रमण से बचते दिल्ली होते हुए आये थे और यहाँ की सुन्दरता देख यहीं बस गए | सयेद उस्मान शिराज़ी साहब से यह दोनों सरदार खालिस मुखलिस इतना खुश हुए की उनकी शान में इस मस्जिद की तामील करवायी |
इस मस्जिद की एक ख़ास बात यह भी है की जौनपुर में शिया मुसलमानों को नमाज़ ऐ जुमा सबसे पहले इसी मस्जिद में हमारे खानदान के बुज़ुर्ग सय्यद दीदार अली साहब ने शुरू की जो पेश ऐ नमाज़ भी थे फिर उसके बाद काजिम अली साहब ने नमाज़ पढवाई और उसके बाद जाहिद साहब मरहूम इस नमाज़ ऐ जुमा को नवाब बाग स्थित शिया जामा मस्जिद ले गए जहां आज तक नमाज़ ऐ जुमा होती है |
.......इतिहासकार सय्यद मोहम्मद खैरुद्दीन

पुराने जौनपुर के दरिया किनारे के कुछ इलाके शर्की लोगों की ख़ास पसंद रहे थे | पानदरीबा रोड पे आपको पुराने समय की बहुत सी इमारतें मिलेंगी जिनमे से बहुत से इमामबारगाह जो इमाम हुसैन (अ.स) की याद में बनाए गए थे ,मिलेंगे | यहाँ पान दरीबा रोड पे मकबरा सयेद काजिम अली से सटी हुई एक मस्जिद मौजूद है जिसे खालिस मुखलिस या चार ऊँगली मस्जिद कहते हैं | शर्की सुलतान इब्राहिम शाह के दो सरदार इस इलाके में आया जाया करते थे कि एक दिन उनकी मुलाक़ात जनाब सैयेद उस्मान शिराज़ी साहब से हुई जो की एक सूफी थे और इरान से जौनपुर तैमूर के आक्रमण से बचते दिल्ली होते हुए आये थे और यहाँ की सुन्दरता देख यहीं बस गए | सयेद उस्मान शिराज़ी साहब से यह दोनों सरदार खालिस मुखलिस इतना खुश हुए की उनकी शान में इस मस्जिद की तामील करवायी |
इस मस्जिद की एक ख़ास बात यह भी है की जौनपुर में शिया मुसलमानों को नमाज़ ऐ जुमा सबसे पहले इसी मस्जिद में हमारे खानदान के बुज़ुर्ग सय्यद दीदार अली साहब ने शुरू की जो पेश ऐ नमाज़ भी थे फिर उसके बाद काजिम अली साहब ने नमाज़ पढवाई और उसके बाद जाहिद साहब मरहूम इस नमाज़ ऐ जुमा को नवाब बाग स्थित शिया जामा मस्जिद ले गए जहां आज तक नमाज़ ऐ जुमा होती है |
.......इतिहासकार सय्यद मोहम्मद खैरुद्दीन

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