सियासत की राहों पे चलना संभल कर | ---लेखक डॉ दिलीप कुमार सिंह
राजनीति में आने वाले कितने ही लोग “बिना पेंदी के लोटे जैसे हुआ करते हैं |इसमें पता नहीं कब आक़ा समर्पित से समर्पित कार्यकर्ताओं,पदाधिकारियों ,सांसदों,विधायकों को निकाल फेंके और यह भी पता नहीं होता की घोर से घोर दुश्मन कब मिल जाए | इसी समझने के लिए सपा –बसपा ,सपा-भाजपा,सपा-कांग्रेस ,भाजपा-ममता ,जयललिता-कांग्रेस जैसे गठजोड़ों को देखें |राजनीती में कोई भी चीज़ स्थाई अथवा अपनी नहीं हुआ करती |श्रीमती मेनका गांघी का उदाहरण द्रष्टव्य है जो कांग्रेसी खानदान से होते हुए भी घोर भाजपाई हैं और उनका बेटा वरुण गाँधी भी उनके साथ है |
आज राजनीति का मुख्य लक्षया सफलता प् के येनकेन प्रकारेण कुर्सी हथिया के अपना कल्याण करना रह गया है भले ही इसके लिए जनकल्याण,समाज कल्याण का नारा दिया जाए |विश्व राजनीती भी कुछ इस से अलग नहीं है जैसे अटल बिहारी बाजपेयी ने सम्बन्ध सुधारने के लिए पाकिस्तान की यात्रा की और उसके बाद ही कारगिल युद्ध हो गया |कभी नेहरु हिंदी चीनी भाई भाई का नारा लगवा के गदगद होते हैं तो दूसरी तरफ चीन भयंकर आक्रमण देश का लाखों वर्गमील हड़पकर बार बार भारत को धमका कर उसकी सीमाओं में घुसने की फ़िराक में रहता है }चीन अमरीका के सम्बन्ध एक दुसरे से अच्छे न होते हुए भी एक दुसरे से सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार है| बंगला देश को आज़ाद करवाने वाले भारत के लिए आज बांग्लादेश ही सरदर्द बना हुआ है |कभी घूर दुश्मन रहे पूर्वी अवं पश्चिमी जेर्मनी का तथा कई अन्य देशों का विलय हो चुका है | रूस का पतन अवं वेघ्तन हो चुका है | इसी को सियासत की कठिन राहें कहते हैं जिनपे संभल के चलना आवश्यक है |
लेखक :Dr. Dileep Kumar Singh Juri Judge, Member Lok Adalat,DLSA, Astrologist,Astronomist,Jurist,Vastu and Gem Kundli Expert. Cell:९४१५६२३५८३
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