नई सुबह की गर्मजोशी से स्वागत करने की हम भारतीयों में बहुत पुरानी परम्परा रही है। जितनें भी प्राचीन मनीषी,कवि और विचारक रहे वे भी समय-समय पर इस बिंदु पर जन मानस को आगाह भी करते रहे। आर्ष कवि कालिदास और भारत में द्वितीय नगरीकरण के जनक भगवान गौतम बुद्ध जी को भी इस विषय में अपना मत देना पड़ा था। आप दोनों का मानना था कि प्रबुद्धजन परीक्षण के उपरान्त ही किसी बिंदु को ग्रहण करते हैं न कि इसलिए कि यह हर तरह से श्रेष्ठ है। भारत में रचने -बसने वाली हर संस्कृति -धर्मं का स्वागत भी इसी तरह बहुत गर्मजोशी से हुआ परन्तु अंततः उनका क्या हश्र हुआ । कई धर्म -संस्कृति समेत बहुत सारे पंथ और नीति -निर्देशक इस श्रेणी में आते हैं जिसका नामोल्लेख कर मैं एक नये विवाद को जन्म नहीं देना चाहता। यहाँ तक कि जब विदेशी आक्रान्ताओं नें भारत पर अपना कब्जा जमाना चाहा तो अपनी रणनीति के जरिये अपनी सेनाओं के आगे बहुरुपियों की टोली को भूत-बेताल-राक्षस के वेश में जनता के सामनें प्रस्तुत करते चलते रहे और उनके स्वागत में हमारा जनमानस मारे डर के गाँव के गाँव खाली करता रहा और अनेक अवसरों पर बिना युद्ध के ही भू -भाग पर उनका कब्ज़ा होता रहा।
आज -कल देश की राजनीति में एक नई पार्टी की भी इसी तर्ज़ पर खूब चर्चा -स्वागत है। वस्तुतः जहां तक मेरा मानना है यह भी तुरत -फुरत अल्प सेवाभाव भाव से सत्ता का मेवा प्राप्त करने का ही साधन ही अंत में साबित होने वाला है। इस अभियान में कुछ एक शीर्षस्थ ही लोग हैं जिनमें समाज सेवा और लोंगो के दर्द से लेना देना है बाकि तो उस नाम के सहारे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की सिद्धि में ही लगे हैं। यह राजनीतिक दल लोंगों की अव्यक्त भावनाओं से जुड़ा है लेकिन आज-कल वही लोग इस दल से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए ज्यादा सक्रिय दिख हैं जिन्हे लगता है कि दशक दो दशक नहीं बल्कि कुछ-एक महीनों की ही समाज सेवा में सत्ता का अमृत मिलने वाला है। इस दल से जुड़े सच्चे बन्दे तो अभी भी नेपथ्य में ही हैं। मैं पूर्वांचल के पिछड़े इलाके के एक गाँव में हूँ यहाँ तो अधिकांशतया राजनीति में वही सफल होता आया है जो जितना ज्यादा झूठ बोले और सब्ज़बाग दिखाए। हमारे यहाँ तो पिछले पंचायत चुनाव परधानी में भी उसी नें फतह हासिल की जिसने जितनी जिम्मेदारी से सबसे ज्यादा झूठे वायदे किये। सच्चे बन्दों के आंसुओं को भी देखने वाला कोई न था।
…… आम आदमी तो बेचारा ही रहेगा। ………
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से ,
मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता।।
लेखक डॉ मनोज मिश्रा
आज -कल देश की राजनीति में एक नई पार्टी की भी इसी तर्ज़ पर खूब चर्चा -स्वागत है। वस्तुतः जहां तक मेरा मानना है यह भी तुरत -फुरत अल्प सेवाभाव भाव से सत्ता का मेवा प्राप्त करने का ही साधन ही अंत में साबित होने वाला है। इस अभियान में कुछ एक शीर्षस्थ ही लोग हैं जिनमें समाज सेवा और लोंगो के दर्द से लेना देना है बाकि तो उस नाम के सहारे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की सिद्धि में ही लगे हैं। यह राजनीतिक दल लोंगों की अव्यक्त भावनाओं से जुड़ा है लेकिन आज-कल वही लोग इस दल से लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए ज्यादा सक्रिय दिख हैं जिन्हे लगता है कि दशक दो दशक नहीं बल्कि कुछ-एक महीनों की ही समाज सेवा में सत्ता का अमृत मिलने वाला है। इस दल से जुड़े सच्चे बन्दे तो अभी भी नेपथ्य में ही हैं। मैं पूर्वांचल के पिछड़े इलाके के एक गाँव में हूँ यहाँ तो अधिकांशतया राजनीति में वही सफल होता आया है जो जितना ज्यादा झूठ बोले और सब्ज़बाग दिखाए। हमारे यहाँ तो पिछले पंचायत चुनाव परधानी में भी उसी नें फतह हासिल की जिसने जितनी जिम्मेदारी से सबसे ज्यादा झूठे वायदे किये। सच्चे बन्दों के आंसुओं को भी देखने वाला कोई न था।
…… आम आदमी तो बेचारा ही रहेगा। ………
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से ,
मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता।।
लेखक डॉ मनोज मिश्रा
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