जौनपुर की बाज़ार आज ऐसा नहीं जिसे व्यापार का केंद्र कहा जाय बस यह कह लें की आवश्यकता की हर वस्तु यहाँ मिल जाया करती है | लोग आज व्यापार को अपना रोज़गार बनाने में यहाँ सौ बार सोंचते हैं की पता नहीं धंधा चलेगा या नहीं ?
लेकिन आज का यह सुस्त व्यापारी शहर शार्की समय में मुख्या व्यापार का केंद्र हुआ करता था और इतिहासकारों के अनुसार बौध समय में भी जौनपुर का यह इलाका व्यापार का केंद्र रहा था | दुःख की बात यह है की कभी इतना बड़ा व्यापार का केंद्र रहा जौनपुर आज इतना पीछे क्यूँ है की अक्सर लोगों को शादी इत्यादि की खरीददारी के लिए बनारस या लखनऊ जाते देखा जाता है |
क्या कारन है की आज यहाँ व्यापारी जो भी माल लाते हैं वो बिकेगा की नहीं इसकी चिंता में रहते हैं | जहां तक मेरी समझ में आता है की जौनपुर शहर की आबादी जौनपुर के अधिक तरक्क़ी ना कर पाने की वजह से कम हो गयी हैं और लोग पलायन कर गए हैं |
व्यापारी अगर जागरूक हो तो व्यापार तो आज भी जौनपुर में बढ़ सकता है लेकिन यह एक अलग विषय है | चलिए आज मैं आप को कुछ नज़ारे विद्यापति के कीर्तिलता से दिखाता हूँ की कैसा था जौनपुर का व्यापार शार्की समय में ?
"जूनापुर नामक यह नगर आँखों का प्यारा तथा धन दौलत का भण्डार था । देखने में सुन्दर तथा प्रत्येक दृष्टिकोण से सुसज्जित था । कुओं और तालाबों का बाहुल्य था । पथ्थरों का फर्श ,पानी निकलने की भीतरी नालिया ,कृषि , फल फूल और पत्तों से हरी भरी लहलहाती हुयी आम और जामुन के पेड़ों की अवलियाँ ,भौंरो की गूँज मन को मोह लेती थीं ।
पान का बाजार ,नान बाई की दूकान ,मछली बाजार ,और व्यवसाय में व्यस्त लोग ऐसा लगता था हर समय एक जान समूह उमड़ा रहता था । " ……। कीर्तिलता
इस नगर की आबादी बहुत घनी थी । लाखों घोड़े और सहस्त्रो हाथी हर समाज मजूद रहते थे । दोनों ओर सोने ,चांदी की दुकाने थी । उस समय सम्पूर्ण आबादी सिपाह, चचकपुर ,पुरानी बाजार ,लाल दरवाज़ा, पान दरीबा,
तथा प्रेमराज पूर आदि मुहल्लों में सिमटी हुयी थॆ। व्यावसायी लोग जौनपुर की ख्याति और इब्राहिम शाह के स्वागत से इतने अधिक प्रभावित थे की अपना सामान यहां बेचने आया करते थे ।
" दोपहर की भीड़ को देख कर यही ज्ञात होता था की यहां सम्पूर्ण दुनिया की वस्तुएं यहां बिकने के लिए आ गयीं हैं । मनुष्यों का सर परस्पर टकराता था और एक का तिलक छूट दुसरे के लग जाता था । रास्ता चलने में महिलाओं की चूड़ियाँ टूट जाती थीं ।लोगों की भीड़ देख ऐसा आभास होता था जैसे समुन्दर उमड़ पड़ा हो । बेचने वाले जो भी सामान लाते सेकंडो में बिक जाता था ।
ब्राह्मण , कायस्थ , राजपूत, तथा अन्य बहुत सी जातियां ठसा ठस भरी रहती और सभी सज्जन और धनी थे ।
इब्राहिम शाह अपने महल के ऊपरी भाग में रहता था ।अपने घर आये हुए अथितियों के देख प्रसन्न होता था । "……। कीर्तिलता
इसी प्रकार बहुत से बाजार थे ।
शाहजहाँ इसे बड़े गौरव से शीराज़ ऐ हिन्द कहा करता था लेकिन आज इस जौनपुर का प्राचीन वैभव बिलकुल नष्ट को के रह गया है । इसमें कोई संदेह नहीं की जौनपुर अपने विद्या भंडारों को, अपनी धरोहरो को बचाने में नाकाम रहा है । आज आवश्यकता है इस धरोहरों को संरछित करनी की और इसे प्रयटको के आने योग्य बनाने की ।
लेखक और सर्वाधिकार सुरछित ---एस .एम मासूम
लेकिन आज का यह सुस्त व्यापारी शहर शार्की समय में मुख्या व्यापार का केंद्र हुआ करता था और इतिहासकारों के अनुसार बौध समय में भी जौनपुर का यह इलाका व्यापार का केंद्र रहा था | दुःख की बात यह है की कभी इतना बड़ा व्यापार का केंद्र रहा जौनपुर आज इतना पीछे क्यूँ है की अक्सर लोगों को शादी इत्यादि की खरीददारी के लिए बनारस या लखनऊ जाते देखा जाता है |
क्या कारन है की आज यहाँ व्यापारी जो भी माल लाते हैं वो बिकेगा की नहीं इसकी चिंता में रहते हैं | जहां तक मेरी समझ में आता है की जौनपुर शहर की आबादी जौनपुर के अधिक तरक्क़ी ना कर पाने की वजह से कम हो गयी हैं और लोग पलायन कर गए हैं |
व्यापारी अगर जागरूक हो तो व्यापार तो आज भी जौनपुर में बढ़ सकता है लेकिन यह एक अलग विषय है | चलिए आज मैं आप को कुछ नज़ारे विद्यापति के कीर्तिलता से दिखाता हूँ की कैसा था जौनपुर का व्यापार शार्की समय में ?
"जूनापुर नामक यह नगर आँखों का प्यारा तथा धन दौलत का भण्डार था । देखने में सुन्दर तथा प्रत्येक दृष्टिकोण से सुसज्जित था । कुओं और तालाबों का बाहुल्य था । पथ्थरों का फर्श ,पानी निकलने की भीतरी नालिया ,कृषि , फल फूल और पत्तों से हरी भरी लहलहाती हुयी आम और जामुन के पेड़ों की अवलियाँ ,भौंरो की गूँज मन को मोह लेती थीं ।
पान का बाजार ,नान बाई की दूकान ,मछली बाजार ,और व्यवसाय में व्यस्त लोग ऐसा लगता था हर समय एक जान समूह उमड़ा रहता था । " ……। कीर्तिलता
इस नगर की आबादी बहुत घनी थी । लाखों घोड़े और सहस्त्रो हाथी हर समाज मजूद रहते थे । दोनों ओर सोने ,चांदी की दुकाने थी । उस समय सम्पूर्ण आबादी सिपाह, चचकपुर ,पुरानी बाजार ,लाल दरवाज़ा, पान दरीबा,
तथा प्रेमराज पूर आदि मुहल्लों में सिमटी हुयी थॆ। व्यावसायी लोग जौनपुर की ख्याति और इब्राहिम शाह के स्वागत से इतने अधिक प्रभावित थे की अपना सामान यहां बेचने आया करते थे ।
" दोपहर की भीड़ को देख कर यही ज्ञात होता था की यहां सम्पूर्ण दुनिया की वस्तुएं यहां बिकने के लिए आ गयीं हैं । मनुष्यों का सर परस्पर टकराता था और एक का तिलक छूट दुसरे के लग जाता था । रास्ता चलने में महिलाओं की चूड़ियाँ टूट जाती थीं ।लोगों की भीड़ देख ऐसा आभास होता था जैसे समुन्दर उमड़ पड़ा हो । बेचने वाले जो भी सामान लाते सेकंडो में बिक जाता था ।
ब्राह्मण , कायस्थ , राजपूत, तथा अन्य बहुत सी जातियां ठसा ठस भरी रहती और सभी सज्जन और धनी थे ।
इब्राहिम शाह अपने महल के ऊपरी भाग में रहता था ।अपने घर आये हुए अथितियों के देख प्रसन्न होता था । "……। कीर्तिलता
इसी प्रकार बहुत से बाजार थे ।
शाहजहाँ इसे बड़े गौरव से शीराज़ ऐ हिन्द कहा करता था लेकिन आज इस जौनपुर का प्राचीन वैभव बिलकुल नष्ट को के रह गया है । इसमें कोई संदेह नहीं की जौनपुर अपने विद्या भंडारों को, अपनी धरोहरो को बचाने में नाकाम रहा है । आज आवश्यकता है इस धरोहरों को संरछित करनी की और इसे प्रयटको के आने योग्य बनाने की ।
लेखक और सर्वाधिकार सुरछित ---एस .एम मासूम
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