एक हिंदू एक मुस्लिम यानि दो राजों का राज
अहले इल्मो-फ़ज़्ल का था जमघटा
हुक्म चलता था यहां शाहाने शरक़ी का कभी
फिर हुकूमत हो गई शाही मुग़ल सुल्तान की
दानिशो-हिकमत का यहां था ग़लग़ला
अहले इल्मो-फ़ज़्ल का था जमघटा
हुक्म चलता था यहां शाहाने शरक़ी का कभी
फिर हुकूमत हो गई शाही मुग़ल सुल्तान की
दानिशो-हिकमत का यहां था ग़लग़ला
खि़त्ता ए यूनान इसको जानिए
देखिए मस्जिद अटाला और कहिए वाह वाह
सरवरों की सरवरी पहचानिए
शायरों की शायरी है आज भी
दूसरों से कम नहीं थी कम नहीं है आज भी
देखिए मस्जिद अटाला और कहिए वाह वाह
सरवरों की सरवरी पहचानिए
शायरों की शायरी है आज भी
दूसरों से कम नहीं थी कम नहीं है आज भी
आते आते हुक्मरानी आई आलमगीर की
जिसको औरंगज़ेब भी कहते हैं लोग
आदिलो-मुन्सिफ़ था ग़ाज़ी उसको रिआया थी अज़ीज़
हां जौनपुरी रिआया यूं परेशां हाल थी
जो नदी गुज़री हुई है शहर से
धीरे धीरे बढ़ते बढ़ते थी वबाले जान भी
बेबसी बेचारगी में मुब्तला थी ज़िंदगी
रफ़्ता रफ़्ता बात पहुंची हज़रत ए सुल्तान तक
शाह के इंजीनियर थे हुक्म की तामील में
रोज़ो शब कोशां रहे हर वक्त सरगरदां रहे
हुक्म मामूली न था फ़रमाने औरंगज़ेब था
ऐसा पुल तामीर हो जिसकी न हो कोई मिसाल
नाम रौशन हो हर इक मज़्दूर का
ईंट गारे और पत्थर की हक़ीक़त कुछ नहीं
दिल अगर कारीगरों का मुख़लिसो बेबाक हो
है वही पुल जो बना था तीन सदियों पेशतर
किस मसाले से बनाया पत्थरों को जोड़कर
आज तक कोई समझ पाया नहीं
कीमियागर सर पटकते रह गए
थे वही सब संगो खि़श्त लेकिन जौनपुरी दिमाग़ ?
और शाही परवरिश के साथ वो नामो नुमूद
आज तक पैदा न कर पाया कोई भी नामवर
एक भी पत्थर निकल जाए अगर
जोड़ने वाला कोई पैदा नहीं
शहर के कारीगरों को कीजिए झुक कर सलाम
काम से रौशन हुआ करता है नाम
शायर
अनीस मुनीरी , एम. ए.
दीवान - रम ए आहू
पृष्ठ सं. 136-138
किताब मिलने का पता
मदरसा क़ासिम उल उलूम
अंसार नगर, रखियाल रोड
अहमदाबाद 23
अनीस मुनीरी , एम. ए.
दीवान - रम ए आहू
पृष्ठ सं. 136-138
किताब मिलने का पता
मदरसा क़ासिम उल उलूम
अंसार नगर, रखियाल रोड
अहमदाबाद 23
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