इब्राहिम शाह ने अपने समय में बहुत से शानदार महलात बनवाए और उनकी हिफाज़त के लिए अपनी सेना में एक तथ्था बनाया जिसके सेनापति सय्यिद मुख्लिस थे । इस जथ्थे में कोई भारतीय नहीं बल्कि अरबी और बलोची हुआ करते थे । यह जथ्था बाहर जंग करने को नहीं भेजा जाता था बल्कि ये इन महलात और दुर्ग की रक्षा का काम करता था ।
इब्राहिम शाह ने अपने समय में बहुत सी वाटिकाएं, भवन, दीवान खाने ,दरबार ख़ास, हौज़, पुल्ल मस्जिदें ,सड़के और सराय का निर्माण करवाया ।
मध्य नगर के उत्तर पश्चिम एक मील की दूरी पे जहां आज कल विशेष हौज़ स्थित है शार्की परिवार का शाही महल और सरकारी भवन हुआ करते थे जिन्हे इब्राहिम लोधी ने तोड़वा दिया । प्रत्येक भवन आपस में लगभग २०० गज़ की दूरी पे था । हौज़ ए ख़ास बादशाही महलो के निकट निर्मित हुआ था जो ८-१० एकड़ में फैला हुआ था । इस हौज़ में शार्की बेगमो के स्नान का विशेष प्रबंध किया गया था । परदे पे अधिक ध्यान दिया जाता था ।
शाही भवनो में लाल दरवाज़ा नामक भवन बहुत अधिक प्रसिद्ध था जिसका केंद्रीय द्वार प्रशस्त तथा बहुत ही ऊंचा था । इसमें लगे हुए फाटक को एक व्यक्ति खोल भी नहीं सकता था । लाल दरवाज़ा भवन में ऐसे बहुमूल्य और अनुपम लाल रंग के पत्थर जोड़े गए थे जो रात्रि में हलकी सी भी रौशनी पाते ही जगमगा उठते थे । यही कारण था इसका नाम इसका नाम लाल दरवाज़ा प्रसिद्ध हो गया । इसके दरवाज़े पे क़ुरआन की आयतें लिखी हुयी थी । इसे भी इब्राहिम लोधी ने पूरा तोड़ दिया ।
ख़ास हौज़ के दक्खिन पूर्व में एक शाही महल था जो शाही भवनो में सबसे सुंदर था जिसके केंद्रीय द्वार पे एक क़ुमक़ुमा लगा था जो मसाले से रात होते खुद से जल उठता था और इसकी रौशनी मीलो दूर तक जाती थी । । इसे रौशन महल कहा जाता था ।
इब्राहिम शाह ने इन महलो का निर्माण मुहम्मद खान की देख रेख में करवाया था । जौनपुर में बडीय मंज़िल ,लाल दरवाज़ा ,महलसरा,दरबार ऐ ख़ास, महिला मदरसा ,बारादरी और अन्य इमारते इनकी ही देख रेख में बनी हैं ।
बडीय मंज़िल लाल दरवाज़े के दख्खिन में स्थित थी जिसका निर्माण ख्वाजा जहां ने सर्व प्रथम किया था । इस भवन से ख़ास हौज़ तक जाने के लिए गुप्त रास्ता (सुरंग) बनायी गयी थी जिससे शार्की बेगम आया जाय करती थीं ।
अटाला मस्जिद (तुग़लक़ के बाद ) झंझरी मस्जिद , खालिस मुख्लिस मस्जिद इत्यादि का निर्माण भी शार्की समय में ही हुआ है ।
इब्राहिम शाह के बाद महमूद शाह भी भवन निर्माण में रूचि रखता था । उसने लाल दरवाज़ा मस्जिद और उसके आस पास भवन निर्मित करवाये । मस्जिद के उत्तर की ओर उसने एक महल बनवाया । ये लाल दरवाज़ा मस्जिद एक संत सय्यद अली दाऊद कुतुब्बुद्दीन शान में महमूद शाह की पत्नी बीबी राजे की की इच्छा से बनवाया था ।
यह भवन भी बहुत प्रसिद्ध हुआ और इसके आस पास पास मदरसा हुसैनिया ,मेहमान खाना ,हौज़ और बाग़ थे । लाल दरवाज़ा तरह गाह के महल में भी पत्थर लगे थे । राजे बीबी इस भवन में अपनी सहेलियों ,कनीज़ों,और कर्मचारियों के साथ रहती थी और ये महल उसी की के नाम से मशहूर था ।
सुलतान महमूद शाह का विवाह सैयद अलाउद्दीन बदायुनी की पुत्री बेगम राजे बीबी से हुआ था जो बनारस के एक गरीब घराने से सम्बन्ध रखती थी । राजे बीबी बड़ी विद्वान थी और राज काज अपने हाथ में लेके सुचारू ढंग से चलाया भी ।
इब्राहिम शाह ने अपने समय में बहुत सी वाटिकाएं, भवन, दीवान खाने ,दरबार ख़ास, हौज़, पुल्ल मस्जिदें ,सड़के और सराय का निर्माण करवाया ।
मध्य नगर के उत्तर पश्चिम एक मील की दूरी पे जहां आज कल विशेष हौज़ स्थित है शार्की परिवार का शाही महल और सरकारी भवन हुआ करते थे जिन्हे इब्राहिम लोधी ने तोड़वा दिया । प्रत्येक भवन आपस में लगभग २०० गज़ की दूरी पे था । हौज़ ए ख़ास बादशाही महलो के निकट निर्मित हुआ था जो ८-१० एकड़ में फैला हुआ था । इस हौज़ में शार्की बेगमो के स्नान का विशेष प्रबंध किया गया था । परदे पे अधिक ध्यान दिया जाता था ।
शाही भवनो में लाल दरवाज़ा नामक भवन बहुत अधिक प्रसिद्ध था जिसका केंद्रीय द्वार प्रशस्त तथा बहुत ही ऊंचा था । इसमें लगे हुए फाटक को एक व्यक्ति खोल भी नहीं सकता था । लाल दरवाज़ा भवन में ऐसे बहुमूल्य और अनुपम लाल रंग के पत्थर जोड़े गए थे जो रात्रि में हलकी सी भी रौशनी पाते ही जगमगा उठते थे । यही कारण था इसका नाम इसका नाम लाल दरवाज़ा प्रसिद्ध हो गया । इसके दरवाज़े पे क़ुरआन की आयतें लिखी हुयी थी । इसे भी इब्राहिम लोधी ने पूरा तोड़ दिया ।
ख़ास हौज़ के दक्खिन पूर्व में एक शाही महल था जो शाही भवनो में सबसे सुंदर था जिसके केंद्रीय द्वार पे एक क़ुमक़ुमा लगा था जो मसाले से रात होते खुद से जल उठता था और इसकी रौशनी मीलो दूर तक जाती थी । । इसे रौशन महल कहा जाता था ।
इब्राहिम शाह ने इन महलो का निर्माण मुहम्मद खान की देख रेख में करवाया था । जौनपुर में बडीय मंज़िल ,लाल दरवाज़ा ,महलसरा,दरबार ऐ ख़ास, महिला मदरसा ,बारादरी और अन्य इमारते इनकी ही देख रेख में बनी हैं ।
बडीय मंज़िल लाल दरवाज़े के दख्खिन में स्थित थी जिसका निर्माण ख्वाजा जहां ने सर्व प्रथम किया था । इस भवन से ख़ास हौज़ तक जाने के लिए गुप्त रास्ता (सुरंग) बनायी गयी थी जिससे शार्की बेगम आया जाय करती थीं ।
अटाला मस्जिद (तुग़लक़ के बाद ) झंझरी मस्जिद , खालिस मुख्लिस मस्जिद इत्यादि का निर्माण भी शार्की समय में ही हुआ है ।
इब्राहिम शाह के बाद महमूद शाह भी भवन निर्माण में रूचि रखता था । उसने लाल दरवाज़ा मस्जिद और उसके आस पास भवन निर्मित करवाये । मस्जिद के उत्तर की ओर उसने एक महल बनवाया । ये लाल दरवाज़ा मस्जिद एक संत सय्यद अली दाऊद कुतुब्बुद्दीन शान में महमूद शाह की पत्नी बीबी राजे की की इच्छा से बनवाया था ।
सुलतान महमूद शाह का विवाह सैयद अलाउद्दीन बदायुनी की पुत्री बेगम राजे बीबी से हुआ था जो बनारस के एक गरीब घराने से सम्बन्ध रखती थी । राजे बीबी बड़ी विद्वान थी और राज काज अपने हाथ में लेके सुचारू ढंग से चलाया भी ।
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