आदि गंगा गोमती के पावन तट पर बसा जौनपुर भारत के इतिहास में अपना विषेष स्थान रखता है। जौनपुर एक दशक तक शार्की राज की राजधानी रहा है और उस समय यह खूब फुला फला | इतिहास के जानकार मानते हैं की शार्की समय के पहले भी यह बोद्ध धर्म के लोगों का एक बड़ा व्यापार केंद्र जौनपुर हुआ करता था |
जौनपुर में चारों तरफ आपको शार्की ,मुग़ल और तुगलक के समय के किले, मस्जिद, शाही पुल, महलात, और क़ब्रों पे बने रौज़े देखने को मिलेंगे जिनमे से बहुत ऐसे भी हैं जिनका अब नाम ओ निशान नहीं रहा और बहुत से ऐसे भी हैं जो अब खंडहर की शक्ल ले चुके हैं और ख़त्म होने की कगार पे हैं | जौनपुर की इस बर्बादी का अधिक ज़िम्मेदार इब्राहीम लोधी था जिसने इस शानदार जौनपुर को खंडहर में बड़ा दिया | इसे भारतवर्ष का मध्युगीन पेरिस तक कहा गया है और शिराज-ए-हिन्द होने का गौरव भी प्राप्त हैं।
यहाँ इन किलों और मस्जिदों के साथ साथ आपको शार्की और मुग़ल समय के बने कुछ धार्मिक स्थल भी मिलेंगे जिनके बारे में अक्सर पर्यटकों को जानकारी नहीं होती | इन्ही इमारतों में इमाम हुसैन (अ.स) की शान में बने ख़ूबसूरत इमामबाड़े जौनपुर में देखने को मिलते हैं | जिनमे से ख़ास हैं इमाम पुर अ इमामबाडा, हमजा पुर का इमामबाड़ा , शाह का पंजा इत्यादि जो की देखने लायक है |
यह इमामबाड़े पर्यटकों की नज़र में नहीं आते क्यूँ की लोग इनके बारे में नहीं जानते | जिस प्रकार से मस्जिद अल्लाह की इबादत की जगह है उसे प्रकार से इमामबाड़े भी इबादत की जगह है जहां हम अल्लाह के चुने हुए इमामो के बारे में पूरी दुनिया को बताते हैं और उनकी क़ुरबानी और मकसद ,और उनके द्वारा दिए गए इंसानियत के पैग़ाम को लोगों पहुंचाते हैं|
इमामबाडा कर्बला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन (अ.स) के रौज़े की छवि, छाया, नकल या शबीह है |ताजिया इमाम हुसैन (अ.स) की कब्र की और ‘अलम’ इमाम हुसैन (अ.स) के भाई हजरत अब्बास जो उनके सेनापति भी थे उनके झंडे की छाया या शबीह है |जब यजीद जैसे ज़ालिम बादशाह ने इस्लाम धर्म के नाम पे दहशतगर्दी और ज़ुल्म का इस्लाम चलाया तो उस समय यह दो चेहरे वाले मुसलमान इतने ताक़तवर हो चुके थे की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के घर वालों पे ही हमला करने लगे थे और दुनिया में यह पैग़ाम जाने लगा था की इस्लाम जालिमों का धर्म है | ऐसे में वो मुसलमान जो हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने से और उनकी बेटी फातिमा (स.अ),नवासे इमाम हुसैन (अ.स) से मुहब्बत करते थे और जालिमाना इस्लाम से तंग आ चुके थे उन्होंने “आशूर खाना “ बनाया जहां दुनिया का हर इंसान चाहे वो किसी भी धर्म को हो आ जा सकता था और मुसलमानों से सीधे संपर्क कर सकता था | इसी आशूर खाने को बाद में इमाम बाड़ा या इमामबारगाह कहा जाने लगा | हिन्दुस्तान में आज भी इन इमामबाड़ो में हजारों हिन्दू आते हैं और इमाम हुसैन (अ.स) को श्रधांजलि अर्पित करते हैं |
जौनपुर में चारों तरफ आपको शार्की ,मुग़ल और तुगलक के समय के किले, मस्जिद, शाही पुल, महलात, और क़ब्रों पे बने रौज़े देखने को मिलेंगे जिनमे से बहुत ऐसे भी हैं जिनका अब नाम ओ निशान नहीं रहा और बहुत से ऐसे भी हैं जो अब खंडहर की शक्ल ले चुके हैं और ख़त्म होने की कगार पे हैं | जौनपुर की इस बर्बादी का अधिक ज़िम्मेदार इब्राहीम लोधी था जिसने इस शानदार जौनपुर को खंडहर में बड़ा दिया | इसे भारतवर्ष का मध्युगीन पेरिस तक कहा गया है और शिराज-ए-हिन्द होने का गौरव भी प्राप्त हैं।
यहाँ इन किलों और मस्जिदों के साथ साथ आपको शार्की और मुग़ल समय के बने कुछ धार्मिक स्थल भी मिलेंगे जिनके बारे में अक्सर पर्यटकों को जानकारी नहीं होती | इन्ही इमारतों में इमाम हुसैन (अ.स) की शान में बने ख़ूबसूरत इमामबाड़े जौनपुर में देखने को मिलते हैं | जिनमे से ख़ास हैं इमाम पुर अ इमामबाडा, हमजा पुर का इमामबाड़ा , शाह का पंजा इत्यादि जो की देखने लायक है |
यह इमामबाड़े पर्यटकों की नज़र में नहीं आते क्यूँ की लोग इनके बारे में नहीं जानते | जिस प्रकार से मस्जिद अल्लाह की इबादत की जगह है उसे प्रकार से इमामबाड़े भी इबादत की जगह है जहां हम अल्लाह के चुने हुए इमामो के बारे में पूरी दुनिया को बताते हैं और उनकी क़ुरबानी और मकसद ,और उनके द्वारा दिए गए इंसानियत के पैग़ाम को लोगों पहुंचाते हैं|
इमामबाडा कर्बला में मौजूद हजरत इमाम हुसैन (अ.स) के रौज़े की छवि, छाया, नकल या शबीह है |ताजिया इमाम हुसैन (अ.स) की कब्र की और ‘अलम’ इमाम हुसैन (अ.स) के भाई हजरत अब्बास जो उनके सेनापति भी थे उनके झंडे की छाया या शबीह है |जब यजीद जैसे ज़ालिम बादशाह ने इस्लाम धर्म के नाम पे दहशतगर्दी और ज़ुल्म का इस्लाम चलाया तो उस समय यह दो चेहरे वाले मुसलमान इतने ताक़तवर हो चुके थे की हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के घर वालों पे ही हमला करने लगे थे और दुनिया में यह पैग़ाम जाने लगा था की इस्लाम जालिमों का धर्म है | ऐसे में वो मुसलमान जो हजरत मुहम्मद (स.अ.व) के घराने से और उनकी बेटी फातिमा (स.अ),नवासे इमाम हुसैन (अ.स) से मुहब्बत करते थे और जालिमाना इस्लाम से तंग आ चुके थे उन्होंने “आशूर खाना “ बनाया जहां दुनिया का हर इंसान चाहे वो किसी भी धर्म को हो आ जा सकता था और मुसलमानों से सीधे संपर्क कर सकता था | इसी आशूर खाने को बाद में इमाम बाड़ा या इमामबारगाह कहा जाने लगा | हिन्दुस्तान में आज भी इन इमामबाड़ो में हजारों हिन्दू आते हैं और इमाम हुसैन (अ.स) को श्रधांजलि अर्पित करते हैं |
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