उर्दू साहित्य की उन्नति मैं देश के प्रत्येक जाती के व्यक्तियों का विशेष योगदान रहा है. इसमें मुस्लिम कविगण और साहित्यकारों के अतिरिक्त ग़ैर मुस्लिम कविगण, लेखकों और साहित्यकारों और विवेचना कारो के वो महान कारनामे दर्ज हैं, जिसपे उर्दू साहित्य को गर्व है.
सरज़मीन ए शिराज़ ए हिंद को यह गर्व प्राप्त है की यहाँ भी फ़ारसी और उर्दू साहित्य की उन्नति मैं बिना भेड़ भाव धर्म और जाती प्रत्येक व्यक्ति सम्मानित रहा.इस कड़ी मैं "रंगीन जौनपुरी" का नाम सर्वप्रथम आता है.
राजा हरिहर दत्त दुबे (रंगीन जौनपुरी) राज परिवार से सम्बंधित थे.यूं तो उनके प्रारम्भिक जीवन के विषय मैं अधिक विवरण का ज्ञान नहीं है किन्तु कुछ स्थानों मैं उनके बारे मैं मिलता है.
रंगीन जौनपुरी, घुबार जौनपुरी के शिष्य थे.यह ना केवल अच्छे कवि थे बल्कि विद्या के प्रेमी भी थे.उनके दरबार से बहुत से कविगण हमेशा लाभ प्राप्त किया करते थे.यह अक्सर अपनी हवेली मैं महफ़िल और मुशेरा का आयोजन करते और स्थानीय लोगों के अलावा देश के नामवर उस्ताद कविओं को भी आमंत्रित करते.
राज्गीन जौनपुरी की कविता सरल एवं रमणीक होती थी .यमर गुजरने के साथ साथ इनके विचारों मैं भी ठहराव की स्थिति पैदा हुई और उन्होंने तसब्बुक जैसे संकीर्ण विषय को अपना लिया और उमर के इस पडाव पे आते ही राजपाट अपने छोटे भाई के हवाले करके दक्षिण की और चल पड़े और वान्हीन रहने लगे .रंगीन का देहांत वंही सन १८९२ ई ० मैं हुआ.
रंगीन का कलाम ज़माने की नाक़द्री के कारण अधिक सुरछित ना रह सका .केवल कुछ शेर और गलें ही प्राप्त हो सकीं हैं अब तक.
आज इस बात की आवश्यकता है की देशवासी इस महान सपूत के बारे मैं शोध करें ताकि जो गुमनामी के अँधेरे मैं लुप्त है उजागर हो सके.
राजा हरिहर दत्त दुबे (रंगीन जौनपुरी) की एक ग़ज़ल पेश है.
अदाओं मैं फिर इस घर में वाह जानना आता है.
क़दम ले आरजू ए दिल कि साहिब ए खाना आता है.
वाह मस्त ए नाज़ बेखुद यूं सुए मैखाना आता है
बहकता लडखडाता झूमता मस्ताना आता है.
खड़ा हूँ सर-ब-काफ कब से नहीं लगती गले आकर.
तेरी तलवार को भी नाज़े मशुकाना आता है.
असर बिंईये दिल का है ऐसा देख ए हरदम.
लबों तक सीने से नाला भी अब बेताबना आता है.
ना दिल जलने को जाए किस तरह इन शम्मा रूयों मैं.
हमेशा होके बेखुद शम्मा पर परवाना आता है.
रूखे दिलकश पे बिखराए हुए जुल्फें वो कहते हैं.
यही है दाम जिसमें मुर्ग़े दिल बेदाना आता है.
दिले वहशी मुबारक तुझको सोने वक़्त जाग उठे .
तलब को तेरी उसके पास से परवाना आता है.
अदम के हाल को पूछूँ मैं किस से दिल को हैरत है.
पलट कर उस तरफ से कोई भी आया ना आता है.
छलकते शीश ओ सागर भरी कश्ती के लिए साक़ी.
हमारे वास्ते मैखाने का मैखाना आता है.
पकड़ना हस्ग्र मैं कातिल का दामन बे झिझक बढ़ कर.
ये वक्ते इम्तिहाँ है हिम्मते मरदाना आता है.
यह जज्बे इश्क कामिल है कि बज्मे नाज़ से उठ कर .
हमारे घर मैं ऐ रंगीन वाह बेताबना आता है.
कभी सुना नहीं -आभार !
जवाब देंहटाएंराजा हरिहर दत्त दुबे जी की कोशिशों के बारे में जानकर तबियत हरी हो गई।
जवाब देंहटाएंजबर्दस्त जौन्पुर के जबर्दस्त लोगो से परिचय कर्वने क शुक्रिय
जवाब देंहटाएंevery body thanks
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