ज़ुल्जिनाह क्या है और अज़ादारी ऐ हुसैन में इसका क्या महत्व है ?
मुहर्रम के महीने में हम सभी इमाम हुसैन की याद में निकलते जुलूस को देखा करते हैं जिसमे आलम, ताजिया के साथ साथ एक घोडा होता है जिसपे लाल निशाँ के साथ तीर लगे होते हैं | यह उस घोड़े ज़ुल्जिनाह की निशानी है जिसे ले के इमाम हुसैन कर्बला में ज़ुल्म के खिलाफ लड़ाई मर शहीद हुए थे |हज़रत मुहम्मद (स अ व ) के घोड़े का नाम ज़ुल्जिनाह था जिसे उन्होंने एक अरबी नाम हारिस से खरीदा था । ज़ुल्जिनाह का पहले नाम मुर्तज़िज़ था ।
जब इस ज़ुल्जिनाह को खरीदा गया था तो इमाम हुसैन बहुत छोटे ( ४ साल ) के थे । एक दिन हज़रत मुहम्मद (स अ व ) ने इमाम हुसैन से पूछा क्या इस घोड़े पे बैठोगे तो उन्होंने कहा हाँ बैठूंगा । अभी बात हो ही रही थी की ज़ुल्जिनाह खुद से ज़मीन पे बैठ गया और इमाम हुसैन उस पे बैठ गए फिर थोड़ी दूर तक घूमने के बाद ज़ुल्जिनाह वापस आया और अपने पैरों के समेत के झुक के बैठ गया और इमाम हुसैन उसपे से उतर गए । इस नज़ारे के देख के हज़रत मुहम्मद (स अ व )रोने लगे और उस के साथ तो सहाबा थे वो भी रो उठे । सब ने पुछा या रसूलल्लाह क्या सबब है आपके रोने का तो जवाब दिया एक दिन ऐसा भी आएगा की हुसैन ज़ख़्मी होगा और घोड़े से खुद से उतर भी ना सकेगा तो यह ज़ुल्जिनाह उसे जलती रेत पे ऐसे ही आराम से उतारेगा जैसे आज उतारा है । Hussain, The Saviour Of Islam”, by S.V. Mir Ahmed Ali, pg. 186-187.
जब कर्बला में इमाम हुसैन (अ स ) ज़ुल्जिनाह से गिरे तो ज़ुल्जिनाह ने उनके ऊपर आते तीरों से उन्हें बचाने की कोशिश की । Manaqib Ali-AbiTalib by ibn Shahr Ashub (4:58)
उसके बाद ज़ुल्जिनाह ने अपने सर पे हुसैन का खून लगाया और खेमे की तरफ भाग जहां जनाब ऐ ज़ैनब ने उसे पकड़ा और रोने लगी । इस बात का ज़िक्र की ज़ुल्जिनाह खेमे की तरफ भाग बिहारुल अनवार में भी मिलता है ।
वहाँ से ये ज़ुल्जिनाह भागता हुआ नहर ऐ फुरात की तरफ गया और ग़ायब हो गया । Tazkira al-Shuhada of Mulla Habibullah Kashani (353)
इमाम हुसैन ( अ स ) के सीने में जब तीन भाल का तीर लगा और वो ज़ुल्जिनाह से गिरे तो वो रोने लगा और उसने इमाम के जिस्म को मुह से प्यार किया और उनके खून को अपने माथे पे मल लिया और खेमे की तरफ भाग जबकि उसकी जीन नीचे गिर के साथ साथ खींची चली आ रही थी । Ref : [1] Maghtalo Alhussein (God bless him), Abu Mokhnaf, Page N.148-149,[2] Maalio-al-Sebtein, Volume N.2, Page N.51-52, [3]Aldamato Alsakeba, Volume N.4, Page N.364-365
ज़ुल्जिनाह जिसका असल नाम मुर्तज़िज़ था उस वक़्त खरीदा गया था जब इमाम हुसैन सिर्फ चार साल के थे और ये ज़ुल्जिनाह इतना वफादार था और हुसैन से मुहब्बत करता था की उनकी शहादत पे आंसू बहाने लगा उन्हें दुश्मनो के तीरो से हुसैन को बचाने लगा और कुछ ना बन सका तो खेमे में उनका हाल बयान करने अपने माथे पे इमाम हुसैन का खून लगा के आ गया । जब ज़ुल्जिनाह समझ गया की अब इमाम नहीं रहे तो वो नहर ऐ फुरात की तरफ भागता हुआ ग़ायब हो गया ।
इसी वफादारी और मुहब्बत को याद करते हुए आज हर अज़ादारी के जुलूस में ज़ुल्जिनाह ज़रूर रहता है जिसके ऊपर लाल खून जैसे रंग का कपड़ा होता है और जिस्म पे तीर लगे होते हैं ।
सैय्यद अहसान अख्विंद मीर जो ईरान के शाह तह्मस्प की फ़ौज में थे हुमायूँ के साथ हिन्दुस्तान आये और जौनपुर में आकर बस गए | उन्होंने बहुत से इमामबाड़े बनवाये जो आज भी मौजूद हैं और उन्होंने ही इस अज़ादारी में " ज़ुल्जिनाह "निकालने का तरीका शामिल किया जो ईरान में पहले से ही मौजूद था | राजा इदारत जहां जो सय्यिद अहसन अख्विंद मीर की नस्ल से हैं उन्होंने भी मस्जिदों और इमाम बाड़ों की तामील करवायी | REF: ibid PG 50-53
ज़ुल्जिनाह रन्नो जौनपुर |
ज़ुल्जिनाह पान दरीबा जौनपुर |
जब इस ज़ुल्जिनाह को खरीदा गया था तो इमाम हुसैन बहुत छोटे ( ४ साल ) के थे । एक दिन हज़रत मुहम्मद (स अ व ) ने इमाम हुसैन से पूछा क्या इस घोड़े पे बैठोगे तो उन्होंने कहा हाँ बैठूंगा । अभी बात हो ही रही थी की ज़ुल्जिनाह खुद से ज़मीन पे बैठ गया और इमाम हुसैन उस पे बैठ गए फिर थोड़ी दूर तक घूमने के बाद ज़ुल्जिनाह वापस आया और अपने पैरों के समेत के झुक के बैठ गया और इमाम हुसैन उसपे से उतर गए । इस नज़ारे के देख के हज़रत मुहम्मद (स अ व )रोने लगे और उस के साथ तो सहाबा थे वो भी रो उठे । सब ने पुछा या रसूलल्लाह क्या सबब है आपके रोने का तो जवाब दिया एक दिन ऐसा भी आएगा की हुसैन ज़ख़्मी होगा और घोड़े से खुद से उतर भी ना सकेगा तो यह ज़ुल्जिनाह उसे जलती रेत पे ऐसे ही आराम से उतारेगा जैसे आज उतारा है । Hussain, The Saviour Of Islam”, by S.V. Mir Ahmed Ali, pg. 186-187.
जब कर्बला में इमाम हुसैन (अ स ) ज़ुल्जिनाह से गिरे तो ज़ुल्जिनाह ने उनके ऊपर आते तीरों से उन्हें बचाने की कोशिश की । Manaqib Ali-AbiTalib by ibn Shahr Ashub (4:58)
उसके बाद ज़ुल्जिनाह ने अपने सर पे हुसैन का खून लगाया और खेमे की तरफ भाग जहां जनाब ऐ ज़ैनब ने उसे पकड़ा और रोने लगी । इस बात का ज़िक्र की ज़ुल्जिनाह खेमे की तरफ भाग बिहारुल अनवार में भी मिलता है ।
वहाँ से ये ज़ुल्जिनाह भागता हुआ नहर ऐ फुरात की तरफ गया और ग़ायब हो गया । Tazkira al-Shuhada of Mulla Habibullah Kashani (353)
इमाम हुसैन ( अ स ) के सीने में जब तीन भाल का तीर लगा और वो ज़ुल्जिनाह से गिरे तो वो रोने लगा और उसने इमाम के जिस्म को मुह से प्यार किया और उनके खून को अपने माथे पे मल लिया और खेमे की तरफ भाग जबकि उसकी जीन नीचे गिर के साथ साथ खींची चली आ रही थी । Ref : [1] Maghtalo Alhussein (God bless him), Abu Mokhnaf, Page N.148-149,[2] Maalio-al-Sebtein, Volume N.2, Page N.51-52, [3]Aldamato Alsakeba, Volume N.4, Page N.364-365
ज़ुल्जिनाह जिसका असल नाम मुर्तज़िज़ था उस वक़्त खरीदा गया था जब इमाम हुसैन सिर्फ चार साल के थे और ये ज़ुल्जिनाह इतना वफादार था और हुसैन से मुहब्बत करता था की उनकी शहादत पे आंसू बहाने लगा उन्हें दुश्मनो के तीरो से हुसैन को बचाने लगा और कुछ ना बन सका तो खेमे में उनका हाल बयान करने अपने माथे पे इमाम हुसैन का खून लगा के आ गया । जब ज़ुल्जिनाह समझ गया की अब इमाम नहीं रहे तो वो नहर ऐ फुरात की तरफ भागता हुआ ग़ायब हो गया ।
इसी वफादारी और मुहब्बत को याद करते हुए आज हर अज़ादारी के जुलूस में ज़ुल्जिनाह ज़रूर रहता है जिसके ऊपर लाल खून जैसे रंग का कपड़ा होता है और जिस्म पे तीर लगे होते हैं ।
सैय्यद अहसान अख्विंद मीर जो ईरान के शाह तह्मस्प की फ़ौज में थे हुमायूँ के साथ हिन्दुस्तान आये और जौनपुर में आकर बस गए | उन्होंने बहुत से इमामबाड़े बनवाये जो आज भी मौजूद हैं और उन्होंने ही इस अज़ादारी में " ज़ुल्जिनाह "निकालने का तरीका शामिल किया जो ईरान में पहले से ही मौजूद था | राजा इदारत जहां जो सय्यिद अहसन अख्विंद मीर की नस्ल से हैं उन्होंने भी मस्जिदों और इमाम बाड़ों की तामील करवायी | REF: ibid PG 50-53
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Zuljinah Kajgaon Jaunpur |
Zuljinaah , darvesh Jaunpur |
Zuljinaah Sipaah jaunpur |
Zuljinaah pandariba jaunpur |
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