जौनपुर का इतिहास अपने आपमें बहुत से रहस्यों को समेटे हुए है | आज लखनऊ में मैंने काशी नरेश महाराजा विभूति नारायण के दीवान अली जामिन जैदी के दोनों पुत्र मुहम्मद जामिन और अहमद जामिन से मुलकात लखनऊ में की जो की विदेश से लखनऊ कुछ घंटो के लिय आये थे |
बात चीत कुछ घंटो चली जिसमे मुख्यतया उन पुराने दिनों की बातें हुयी जब उनके पिता दीवान काशी नरेश हुआ करते थे और वो लोग रथयात्रा का हिस्सा हुआ करते थे | उन्होंने बताया की "
आज़ादी के पहले तक बनारस एक ऐसी रियासत रही है जहां हमेशा से जौनपुर की सय्यद परिवार के दीवान रहे हैं | जिसमे पहले दीवान और प्रधान मंत्री बनारस एस्टेट के बने जौनपुर कजगांव निवासी सय्यद गुलशन अली और इनकी अहमियत केवल इसी बात से पता चलती है इतिहासकार सयेद नकी हसन अपनी किताब "My nostagic Journey" में लिखते हैं की जब मौलाना सय्यद गुलशन अली के देहांत की खबर उस समय के राजा बनारस इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह ने सुनी तो उन्होंने अपना कीमती मुकुट उठा के ज़मीन पे फेंक दिया और रोते हुए बोले आज मेरे पिता का देहांत हो गया |
महाराजा इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के बाद १८८९ में महराजा प्रभु नारण सिंह राजा बने और उसके बाद १९३१ में उनके देहांत के बाद आदित्य नारायण सिंह महाराजा बने | इसी के साथ साथ दीवान मौलाना गुलशन अली के बाद उनके बेटे सैय्येद अली मुहम्मद और उसके बाद सय्यद मोहम्मद नजमुद्दीन दीवान बनारस स्टेट रहे |
मुहम्मद जामिन बताते है की महाराजा आदित्य नारायण के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने ही परवार से सात साल का बच्चा गोद ले लिया था जो उनके देहांत के समय बहुत छोटे थे | महाराजा आदित्य नारायण सिंह १८३९ में रुबाब जामिन के पिता जौनपुर निवासी खान बहादुर अली जामिन को दीवान काशी नरेश बना चुके थे | अपने अंतिम समय में राजा आदित्य नारायण सिंह ने दीवान अली जामिन साहब को बुलाया और अपने १२ साल के पुत्र विभूति नारायण का हाथ उनके हाथ में दे दिया |
अंग्रेजों ने खान बहादुर अली जामिन को बनारस एस्टेट का सेक्रेट्री बना दिया और जुलाई १९४७ में आजादी के बाद खान बहादुर अली जामिन ने सत्ता विभूति नारायण के हाथ सौप दी और दीवान काशी नरेश का पद संभाल लिया | लेकिन १९४८ में सेहत की खराबी के कारण अवकाश प्राप्त कर के अपने वतन चले गए और इस प्रकार बनारस एस्टेट से सय्यद दीवान बनने का सिलसिला ख़त्म हुआ | दीवान काशी नरेश खान बहादुर अली जामिन का परिवार मुरादाबाद से होता हुआ कनाडा इत्यादि देश की तरफ रोज़गार के सिलसिले में चला गया लेकिन वे सभी आज भी अपने वतन कजगांव जौनपुर से जुड़े हुए हैं |
बात चीत कुछ घंटो चली जिसमे मुख्यतया उन पुराने दिनों की बातें हुयी जब उनके पिता दीवान काशी नरेश हुआ करते थे और वो लोग रथयात्रा का हिस्सा हुआ करते थे | उन्होंने बताया की "

महाराजा इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के बाद १८८९ में महराजा प्रभु नारण सिंह राजा बने और उसके बाद १९३१ में उनके देहांत के बाद आदित्य नारायण सिंह महाराजा बने | इसी के साथ साथ दीवान मौलाना गुलशन अली के बाद उनके बेटे सैय्येद अली मुहम्मद और उसके बाद सय्यद मोहम्मद नजमुद्दीन दीवान बनारस स्टेट रहे |
अंग्रेजों ने खान बहादुर अली जामिन को बनारस एस्टेट का सेक्रेट्री बना दिया और जुलाई १९४७ में आजादी के बाद खान बहादुर अली जामिन ने सत्ता विभूति नारायण के हाथ सौप दी और दीवान काशी नरेश का पद संभाल लिया | लेकिन १९४८ में सेहत की खराबी के कारण अवकाश प्राप्त कर के अपने वतन चले गए और इस प्रकार बनारस एस्टेट से सय्यद दीवान बनने का सिलसिला ख़त्म हुआ | दीवान काशी नरेश खान बहादुर अली जामिन का परिवार मुरादाबाद से होता हुआ कनाडा इत्यादि देश की तरफ रोज़गार के सिलसिले में चला गया लेकिन वे सभी आज भी अपने वतन कजगांव जौनपुर से जुड़े हुए हैं |

Discover Jaunpur (English ), Jaunpur Photo Album
Admin and Founder
S.M.Masoom
Cont:9452060283
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें
हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
संचालक
एस एम् मासूम