
निश्चित रूप से बेअसत से पूर्व भी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम की जीवन शैली व उनके व्यवहार में बहुत से आध्यात्मिक लक्षण देखे जा सकते थे उन्होंने युवास्था पवित्रता, सच्चाई, उदारता तथा नैतिकता के साथ व्यतीत की।
इस महत्वपूर्ण घटना के १३ वर्ष बाद पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम ने मक्का नगर से मदीना पलायन किया जिसके बाद इस्लामी कैलैन्डर अर्थात हिजरी कैलेन्डर का आरंभ हुआ।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम, ने तौरैत की जो उनसे पूर्व हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर उतरी थी, पुष्टि की और इसी प्रकार अपने बाद एक ऐसे ईश्वरीय दूत के आगमन की सूचना दी थी जिसका नाम अहमद होगा। याद रहे अहमद, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम का दूसरा नाम है।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के बारे में यहूदियों और ईसाइयों के धर्म ग्रंथों में पहले ही सूचना दी जा चुकी थी।
क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत नंबर २१३ में जो कुछ कहा गया है उसका आशय यह है कि लोग आरंभ में एक थे किंतु बाद में उनमें दूरी व फूट उत्पन्न हो गयी और इसी दौरान अल्लाह ने अपने दूतों को भेजा जो लोगों को शुभ सूचना और चेतावनी देते हैं तथा उन पर एसी आसमानी किताबें भी उतारीं जो सत्य की ओर बुलाने वाली हैं ताकि ईश्वरीय दूत इन ग्रंथों के आधार पर लोगों के झगड़ों का निपटारा करें। क़ुरआन के आधार पर पैग़म्बरों और ईश्वरीय दूतों को भेजने का एक अन्य उद्देश्य, मनुष्य को पवित्रता के मार्ग और उसके स्थान व परिणाम से अवगत कराना है ताकि इस प्रकार से मनुष्य की वह योग्यताएं फले फूलें जो ईश्वर ने उसके अस्तित्व में निहित रखी हैं। बेअसत, मनुष्य को अज्ञानता के अंधकारों, बुरी लतों, बुरे स्वभाव, मानव के मन मस्तिष्क पर छा जाने वाली ग़लत धारणाओं तथा अत्याचार व उल्लंघन के अधंयारों से निकाल कर प्रकाश की ओर बढ़ाती और मार्गदर्शन करती है।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम की बेअसत अर्थात मनुष्य के मार्गदर्शन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य, मानव समाज में भाईचारे को प्रचलित करना तथा स्नेह व सहिष्णुता व सह्रदयता जैसी मानवीय भावनाओं को, जो उस काल की अज्ञानता के अंधकारों में कहीं लुप्त हो गयी थीं पुनर्जीवन प्रदान करना था ।
यह वोह दिन है जब इंसान को अपनी अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस करना चहिये और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के उद्देश्य को आगे बढ़ाते हुए , समाज मैं भाईचारे को प्रचलित करना चाहिए जिस से शांति स्थापित हो।

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