जौनपुर शहर और आस पास के इलाके में गाँव का पूरा मज़ा आता है | जिन लोगों ने अपना कुछ वर्ष यहाँ बिताया है और आज कर्म भूमि किसी बड़े शहर या महानगरों को बना चुके हैं उनके दिल से पूछिए जब जब वो गाँव आते हैं अपने पुराने सुनहरे दिनों को २-४ दिनों में ही जीने की कोशिश करते दिखाई दिया करते हैं |
शहरी जीवन ने लोगों की वेशभूषा , रहन सहन के एक गहरा असर डाला है जो गाँव और शहरों के अंतर को साफ़ ज़ाहिर करती है | जहां शहरों की पहचान पेंट शर्ट ताई, सूट ,कार, एयर कंडीशन , चमकते टाइल्स वाले घर और दफ्तर, प्लास्टिक स्माइल ,जींस और टाइटस में घूमती महिलाएं और गगन चुम्बी इमारतें, चमकती सडकें, व्यस्त जीवन इत्यादि बन चुकी हैं वहीं गाँव आज भी पहचाना जाता है धोती कुरता, पजामा ,पगड़ी , गमछा ,साइकिल , मोटर साइकिल , घूंघट, शर्म हया , प्रेम से मिलना, खेत खलिहान, नाले कीचड , खटिया , खटोला, स्टूल, बेंच ,टूटी फूटी सडकें और वक़्त ही वक़्त होने से |
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एस.एम्.मासूम मुंबई से जौनपुर तक |
यकीनन सुविधाओं के अभाव के बावजूद जो मानसिक शांति गाँव में मिला करती है वो शहरों के व्यस्त जीवन में सुख सुविधाओं के बाद भी नहीं मिल पाती | आज का इंसान सुख सुविधा और मानसिक शांति दोनों की तलाश में कभी गाँव से शहर और कभी शहर से गाँव की तरफ भागता जाता जाता है और यह अंतहीन भाग दौड़ में उलझा चुपके से यकायक दुनिया से चला जाता है |
ऐसा केवल इसलिए हैं क्यूंकि गाँव में रोज़गार की कमी है जिस मजबूरी के चलते उसे शहरों को अपनी कर्म भूमि बनाना पड़ता है जहां वो मानसिक शांति खो के धन दौलत और सुख सुविधाओं को खरीद लेता है और एक समय आता है की वो उन सुख सुविधाओं के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर पाता | फिर तलाश करता है उस मानसिक शांति की जो उसे उसके गाँव में मिला करती थी | ऐसा हालात में वो भागता है गाँव की तरफ और कुछ दिन मानसिक शांति हासिल करने के बाद फिर से सुख सुविधाओं से भरी शहरी जीवन में लौट जाता है और वहाँ बैठ के गाँव की, भाईचारे की ,रीति रिवाजों की कहानी अपनी औलादों को सुनाते सुनाते दुनिया से चला जाता है |
हमारे आने वाले नस्लें अपने वतन और अपने गाँव में ही रोज़गार पाएं और मानसिक शान्ति भी इसी कोशिश में हम भी लगे हैं आप भी लगें | मिल के साथ साथ काम करें तब कहीं जाके यह सपना पूरा होगा |
BAHUT ACCHI POST BHAYI . GAANV KEE YAAD DILA DI AAPNE TO .
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