वैसे तो जौनपुर का इतिहास ऐसे बहुत सी कथाओं से जुडा हुआ है जिसमे मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आगमन की बातें बतायी जाती है और जौनपुर का जमैथा गाँव तो परशुराम की जन्म स्थली है और वहाँ भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आगमन की कथाएँ मौजूद है | इतिहासकारों और जौनपुर वासीयों के अनुसार कम से कम तीन बार जौनपुर शहर के आस पास मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का आगमन हुआ जिसमे करार बीर का वध की कथा बहुत मशहूर है |
इनसे श्रंखला में यह भी कहा जाता है की कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी लंका विजय के बाद पावन नगरी अयोध्या लौट रहे थे। अयोध्या लौटते समय माता सीता जी ने संयासी के चोले को त्यागने के बाद अपने श्रृंगार के साजोसामान की खरीदारी इसी बाजार से की थी। तब से यह ऐतिहासिक चूड़ी का मेला लगता आ रहा है। इस ऐतिहासिक मेले की अनूठी रौनक यह है कि दशहरे से लेकर दीपावली तक आस पास के क्षेत्र के लोगों के लिए रोज त्योहार जैसा होता है। हिन्दू तो हिन्दू मुस्लिम समुदाय की महिलाएं भी बढ़ चढ़कर खूब खरीदारी करती हैं।
ये ऐतिहासिक चूड़ी का मेला हर वर्ष शाहगंज में करवा चौथ के दिन प्रारम्भ होकर धनतेरस की पूर्व रात्रि को समाप्त होता है |लगभग सप्ताह भर चलने वाला मेला अपने तरह का अनोखा मेला है। इस मेले में गैर जनपद से आये चूड़ी, सौंदर्य प्रसाधन, सैंडल, खिलौने, क्रॉकरी, आर्टिफिशल ज्वेलरी के दुकानदार अपना स्टाल लगा सैकड़ों वर्षों से मेले की शोभा बढ़ा रहे हैं। शाम ढलते ही क्षेत्र के आसपास की महिलाओं का सैलाब ऐतिहासिक चूड़ी मेले में उमड़ पड़ता है।
ऐतिहासिक चूड़ी मेले में वाराणसी से आये वर्तमान समय के सबसे पुराने चूड़ी व्यवसायी मो. असलम के मुताबिक वह लगभग तीन दशक से अनवरत मेले में दुकान लगाते हैं। हर वर्ष इस ऐतिहासिक सीता श्रृंगार मेला (चूड़ी मेला) का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस मेले में गंगा जमुनी संस्कृति की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है कि गैर जनपदों से आये लगभग सभी व्यवसायी मुस्लिम समुदाय के हैं और मुस्लिम समुदाय की महिलाएं भी मेले की रौनक बढ़ा रही हैं। इस बार चूड़ी मेले में बाहुबली कंगन, जुड़वा टू कंगन एवं योगी जी कुण्डल व बेगम जान सेट की धूम मची है। वाराणसी, अम्बेडकर नगर, जौनपुर, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ आदि स्थानों से आए चूड़ी, सौंदर्य प्रसाधन, सैंडल, खिलौने, क्रॉकरी, आर्टिफिशल ज्वेलरी व्यवसायी सादिक उर्फ गुड्डू, इरफान, शाहिद, काशिम, सुहेल कयूम, ताहिर एवं रहमत अली समेत दर्जनों व्यवसायी ऐतिहासिक चूड़ी मेले की शोभा बढ़ा रहे हैं।
इस ऐतिहासिक सीता श्रृंगार मेला (चूड़ी मेला) में नगरपालिका द्वारा पेयजल की व्यवस्था की जाती है। मेला महिला विशेष होने के कारण पुलिस प्रशासन के द्वारा सुरक्षा के मद्देनजर कड़ी चौकसी रखी जाती है। पुलिस के जवानों की विशेष ड्यूटी लगाई जाती है क्योंकि इस ऐतिहासिक मेले में मेले के दौरान पुरूष का प्रवेश निषेध है।
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ये ऐतिहासिक चूड़ी का मेला हर वर्ष शाहगंज में करवा चौथ के दिन प्रारम्भ होकर धनतेरस की पूर्व रात्रि को समाप्त होता है |लगभग सप्ताह भर चलने वाला मेला अपने तरह का अनोखा मेला है। इस मेले में गैर जनपद से आये चूड़ी, सौंदर्य प्रसाधन, सैंडल, खिलौने, क्रॉकरी, आर्टिफिशल ज्वेलरी के दुकानदार अपना स्टाल लगा सैकड़ों वर्षों से मेले की शोभा बढ़ा रहे हैं। शाम ढलते ही क्षेत्र के आसपास की महिलाओं का सैलाब ऐतिहासिक चूड़ी मेले में उमड़ पड़ता है।
ऐतिहासिक चूड़ी मेले में वाराणसी से आये वर्तमान समय के सबसे पुराने चूड़ी व्यवसायी मो. असलम के मुताबिक वह लगभग तीन दशक से अनवरत मेले में दुकान लगाते हैं। हर वर्ष इस ऐतिहासिक सीता श्रृंगार मेला (चूड़ी मेला) का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस मेले में गंगा जमुनी संस्कृति की एक अनोखी मिसाल देखने को मिलती है कि गैर जनपदों से आये लगभग सभी व्यवसायी मुस्लिम समुदाय के हैं और मुस्लिम समुदाय की महिलाएं भी मेले की रौनक बढ़ा रही हैं। इस बार चूड़ी मेले में बाहुबली कंगन, जुड़वा टू कंगन एवं योगी जी कुण्डल व बेगम जान सेट की धूम मची है। वाराणसी, अम्बेडकर नगर, जौनपुर, इलाहाबाद, कानपुर, लखनऊ आदि स्थानों से आए चूड़ी, सौंदर्य प्रसाधन, सैंडल, खिलौने, क्रॉकरी, आर्टिफिशल ज्वेलरी व्यवसायी सादिक उर्फ गुड्डू, इरफान, शाहिद, काशिम, सुहेल कयूम, ताहिर एवं रहमत अली समेत दर्जनों व्यवसायी ऐतिहासिक चूड़ी मेले की शोभा बढ़ा रहे हैं।
इस ऐतिहासिक सीता श्रृंगार मेला (चूड़ी मेला) में नगरपालिका द्वारा पेयजल की व्यवस्था की जाती है। मेला महिला विशेष होने के कारण पुलिस प्रशासन के द्वारा सुरक्षा के मद्देनजर कड़ी चौकसी रखी जाती है। पुलिस के जवानों की विशेष ड्यूटी लगाई जाती है क्योंकि इस ऐतिहासिक मेले में मेले के दौरान पुरूष का प्रवेश निषेध है।
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