जौनपुर। शहर के मोहल्ला मखदूम शाहअडहन चाहरसू स्थित मस्जिद में आयोजित मजलिस (शोक सभा ) को संम्बोन्धित करते हुये जौनपुर के मशहूर इतिहासकार लेखक और इस्लामी मामलो जानकार ज़ाकिर ए अहलेबैत जनाब एस एम मासूम ने कहा कि पैगम्बर ए इस्लाम के नवासे हजरत इमाम हुसैन को केवल इस लिए शहीद कर दिया गया कि वो जुल्म को इस्लाम का हिस्सा नही मानते थे और अपनी बात को लोगो के सामने अहिंसात्मक तरिके से रखने में विश्वास रखते थे लेकिन इस्लाम धर्म के नाम पे जुल्म करने वालो ने उन्हे भूखा प्यासा करबला में शहीद कर दिया और जुल्म इतना बढ़ा कि उनके 6 महिने के बच्चे का भी तीरो से गला छेद दिया और उनके घर की औरतो व बच्चो को कैद करके धूप व रेत में जलती जमीन पर कैदी बनाकर बैठने पर मजबूर कर दिया और उनके घराने वालो के सर काट के नोके नैज़े पे बुलन्द किया।
करबला वालो की शहादत के यह बात खुल के सामने आ गयी कि जुल्म इस्लाम का हिस्सा नही है और इस्लाम धर्म के नाम पे जुल्म करने वाले ढ़ोगी होते है जो सत्ता हासिल करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते है और उसे बदनाम किया करते है तभी तो महात्मा गांधी ने कहा कि उन्होने अहिंसा के रास्ते से जीत हासिल करने का सबक हजरत इमाम हुसैन से सीखा। किसी भी लड़ाई मे जीत उसकी हुआ करती है जिसका मकसद जीवित रहें और अहिंसा का पैगाम ही सच्चा इस्लाम है यह पैगाम करबला में हजरत इमाम हुसैन ने दे के साबित कर दिया और आज पूरी दुनिया मे हर जाति धर्म के लोग हजरत इमाम हुसैन को अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार मोहर्रम में श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
मजलिस में मुख्य रूप से मुस्तफा षमसी ए एम डेज़ी, सै0 परवेज हसन, इसरार हुसैन एडवोकेट, तालिब रजा षकिल एडवोकेट, जरगाम एडवोकेट, हसीन अहमद, नईम हैदर, डा0 राहिल, सैफ नासिर रज़ा गुड्डू, इत्यादि लोग उपस्थित रहें।
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करबला वालो की शहादत के यह बात खुल के सामने आ गयी कि जुल्म इस्लाम का हिस्सा नही है और इस्लाम धर्म के नाम पे जुल्म करने वाले ढ़ोगी होते है जो सत्ता हासिल करने के लिए धर्म का इस्तेमाल करते है और उसे बदनाम किया करते है तभी तो महात्मा गांधी ने कहा कि उन्होने अहिंसा के रास्ते से जीत हासिल करने का सबक हजरत इमाम हुसैन से सीखा। किसी भी लड़ाई मे जीत उसकी हुआ करती है जिसका मकसद जीवित रहें और अहिंसा का पैगाम ही सच्चा इस्लाम है यह पैगाम करबला में हजरत इमाम हुसैन ने दे के साबित कर दिया और आज पूरी दुनिया मे हर जाति धर्म के लोग हजरत इमाम हुसैन को अपनी-अपनी परम्परा के अनुसार मोहर्रम में श्रद्धांजलि अर्पित करते है।
मजलिस में मुख्य रूप से मुस्तफा षमसी ए एम डेज़ी, सै0 परवेज हसन, इसरार हुसैन एडवोकेट, तालिब रजा षकिल एडवोकेट, जरगाम एडवोकेट, हसीन अहमद, नईम हैदर, डा0 राहिल, सैफ नासिर रज़ा गुड्डू, इत्यादि लोग उपस्थित रहें।
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