जौनपुर रियासत की स्थापना तीन नवंबर १९९७ में शियो लाल दुबे जी ने की जो एक धनी बैंकर श्री मोती लाल दुबे के पुत्र थे | शिव लाल दुबे जी अमौली फतेहपुर के रहने वाले थे |१७९७ में उन्हें ताल्लुका बदलापुर “राजा बहादुर “ के खिताब के साथ मिला | उनकी म्रत्यु 90 वर्ष की आयु में सन १८३६ में हो गयी ,उस समय रायपुर राज्य आजमगढ़,बनारस,गोरखपुर,मिर्ज़ा पुर तक पहिल चुकी थी | राजा शिव लाल दत्त की म्रत्यु के बाद उनके पौत्र राजा राम गुलाम जी ने राज्य का काम काज संभाला जबकि उनके पिता राजा बाल दत्त जी अभी जिंदा थे |
राजा राम गुलाम जी की म्रत्यु सन १८४३ में हुई और उनके पिता राजा बाल दत्त ने राज्य की ज़िम्मेदारी संभल ली |रजा बाल दत्त के बाद उनके दुसरे पुत्र लछमन गुलाम राजा बने लेकिन उनकी कोई संतान न होने के कारण सन १८४५ में राजा बाल दत्त की पत्नी रानी तिलक कुंवर के साथ में राज पाट का काम आ गया |
१९१६ में राजा श्री कृष्ण दत्त १९४४ में राजा यद्वेंदर दत्त १९९९ में आज के राजा अवनींद्र दत्त इस राज्य की देख भाल कर रहे हैं |
जौनपुर में आज भी दशहरे के दिन राजा की दरबार लगती हैं। राजा पूरे राजशाही वेश भूषा धरण करके राज सिघासन पर आसिन होकर अस्त्र शस्त्र का पूंजन करते हैं। यहां के राजा अवनीन्द्र दत्त दूबे विजय दशमी के दिन अपना दरबार लगाकर पहले शस्त्र पूंजन करते हैं उसके उनके परम्परागत दरबारी लगान देते हैं। राज दरबार समाप्त होने के बाद जौनपुर के बादशाह हाथी घोड़े बैण्ड बाजे के साथ रावण दहन करने चल पड़ते हैं। उनके पीछे चलने वाली गाडि़यों का काफिला जौनपुर राज की इतिहास की यादे ताजा करा देती हैं। राजा अवनीन्द्र दत्त के अनुसार यह परम्परा आज की नही बल्की सदियों पुरानी हैं। उनके पूर्वजों ने इस आयोजन की नीव डाली थी आज भी उसी परम्परा को जीवित रखे हुए हैं। जौनपुर हवेली में दशहरे के दिन लगने वाला यह दरबार जहां राज घराने की परम्परा जीवित है वही आज के लोगों को राजशाही परम्परा का याद भी दिलाती हैं।
I had seen the major transformation of this domain from biGiNing days. Now it's very informative and powerful source of promoting jaunpur as an historical city. Great job mr mm masoom,👍
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