जौनपुर के लिए बकरीद का पर्व ख़ास ऐतिहासिक महत्व रखता है |
कुर्बानी का पर्व ईद-उल-जुहा (बकरीद) हमारे मुस्लिम भाइयों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है जो साल में एक बार मनाया जाता है| इस पर्व का मकसद होता है की हर इंसान अपने जान-माल को अपने खुदा की अमानत समझे और उसकी रक्षा के लिए किसी भी त्याग या बलिदान के लिए तैयार रहे।
जौनपुर में यह पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है और सारे मुसलमान एक सप्ताह से ही बकरा खरीदने में लग जाते हैं और बकरीद के दिन की सुबह सुबह सभी कुर्बानी दे के मस्जिदों में नमाज़ अदा करते हैं | कुर्बानी करने के बाद इसे गरीबों और आस पड़ोस के लोगों में बाँट दिया जाता है |
जौनपुर के लिए इस पर्व इस लिए भी कुछ ख़ास हो जाता है क्यूँ की एक समय था जब यहाँ ज्ञान का समंदर बहता था और बहुत मशहूर है कि इब्राहिम शाह के दौर में ईद और बकरईद पे नौ सौ चौरासी विद्वानो की पालकियां निकला करती थी और इस महीने का असल नाम तो ज़िलहिज्ज है लेकिन यह महीना बकरीद का महीना इसलिए कहा जाता है की शार्की क्वीन बीबी राजे ने इसका नाम बकरीद रख दिया था |
इस पर्व से जुडा ये वाकेया है जिसको वजह से मुसलमान कुर्बानी का पर्व ईद-उल-जुहा (बकरीद) मनाते है |
एक रोज हज़रत इब्राहिम ने ख्वाब देखा की अल्लाह उनसे चाहता है की अल्लाह की राह में वो अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान कर दें । हजरत इब्राहीम इस ख्वाब को लेकर उलझन में पड़ गए क्योंकि उनकी सबसे प्यारी चीज उनका बेटा था।
हजरत इब्राहिम ने जब अल्लाह के हुक्म की बात अपने बेटे जनाब ऐ इस्माइल को बताई तो वह न केवल अपनी कुर्बानी के लिए राजी हो गया बल्कि उसने अपने पिता से यह आग्रह भी किया कि वह कुर्बानी के वक्त अपनी आंखों पर पट्टी बांध लें ताकि कहीं ऐसा न हो कि मोह में वह उनकी गर्दन पर छुरी न चला सकें और अल्लाह के हुक्म की नाफरमानी हो जाए। हजरत इब्राहिम ने ऐसा ही किया |
जब छुरी बेटे पे चलाने के बाद उन्होंने आँख की पट्टी खोली तो देखा कि मक्का के करीब मिना पर्वत की उस बलि वेदी पर उनका बेटा नहीं, बल्कि दुम्बा (कुछ परंपराओं में भेड़) था और उनका बेटा उनके सामने खड़ा था। तब से ही विश्वास की इस परीक्षा के सम्मान में दुनियाभर के मुसलमान इस अवसर पर अल्लाह में अपनी आस्था दिखाने के लिए जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
इस तरह अल्लाह ने जनाब ऐ इब्राहिम का इम्तिहान भी ले लिया जिसपे वो सफल रहे है अल्लाह रहम करने वाला है यह अल्लाह ने उनके बेटे जनाब ऐ इस्माइल की जगह दुम्बा ला के बता दिया| उस दिन से दुनिया के सारे मुसलमान क़ुरबानी कर के इस बात को लोगों को बताते हैं की अल्लाह के हुक्म से बड़ा कोई हुक्म नहीं और इतना रहम करने वाला है|
अल्लाह के दीन इस्लाम का पहला मकसद दुनिया से ज़ुल्म को मिटाना और प्रेम भाईचारे का समाज देना है |
लेखक एस एम् मासूम
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