जौनपुर शहर के साथ साथ इस बार आस पास के गाँव का रुख किया मैंने और कुछ गाँव की तसवीरें वहाँ का रहन सहन वहाँ का इतिहास सब कैमरे में क़ैद करता रहा जिस से उन्हें आप तक पहुंचा सकूँ | मछलीशहर के बाद जा पहुंचा जौनपुर और आज़मगढ़ के बॉर्डर पे बसे गाँव गौरा बादशाहपुर जिसका पुराना नाम गौरा था और औरंगज़ेब के वहाँ आ के जाने के बाद उसका नाम गौरा बादशाहपुर पड़ गया |
कर्बला जो aurnagzeb के दौर में बनी |
अभी जो इतिहास गौरा बादशाहपुर का बताने जा रहा हूँ वो वहाँ के रहने वालों की ज़बानी सुना हुआ इतिहास है जो इतिहास की किताबों से अलग हो सकता है | वहाँ पे मुझे लगभग ३०० वर्ष पुराने या कह लें मुग़ल दौर के बने मस्जिद और कर्बला मिली और कुछ पुराने मंदिर मिले जो पुराने तो हैं लेकिन उनसे जुडी किवदंतियां बताती हैं की उसी गाँव के कुछ बाबा और संतों की याद में या उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर है जिनका अधिक इतिहास वहाँ के लोग नहीं जानते |
वहाँ के इतिहास की तलाश में मैं जा पहुंचा कैसर अब्बास रिज़वी साहब के घर जिनके अनुसार उनका घराना यहाँ औरंगज़ेब से समय से यहाँ रह रहा है | उनका कहना है की उनके पुरखे सैयेद नूरुल्लाह जो औरंगज़ेब के किसी बड़े ओहदेदार के भाई था नाराज़गी में जौनपुर के गौरा गाँव में आ गए जिन्हें तलाशते हुए उनके भाई और औरंगज़ेब दोनों का आना यहाँ हुआ |
सैयेद नूरुल्लाह एक पहुंचे हुए संत थे जिन्होंने यहाँ आने के बाद यहाँ से जाना स्वीकार नहीं किया तो औरंगज़ेब ने उन्हें यहाँ पे ५७९ बीघा जमीन दे दी और वो यही बस गए | यहाँ बसने के बाद उन्होंने यहाँ कर्बला और मस्जिद बनवाई जो अभी मौजूद है | उसी समय से यहाँ का नाम गौरा से गौरा बादशाहपुर पड़ गया |
Qabr Syed Noorullah |
सैयेद नूरुल्लाह साहब की कब्र वहीँ उनके घर के पास जिसे बमैला भी कहा जाता है मौजूद है और वहाँ लोग मुरादें मांगते और चादरें चढाते हैं |
कैसर अब्बास रिज़वी साहब के अनुसार ५७९ बीघा ज़मीन देने का औरंगज़ेब का फरमान आज भी उनके घराने में मौजूद है |
More than 250 years old Shiv mandir |
गौरा बादशाहपुर की कर्बला के ही पास में एक तालाब और मंदिर है जो उसी दौर का बताया जाता है जिसके इतिहास में किसी नागा बाबा का ज़िक्र आता है लेकिन मंदिर शिव मंदिर है जहां तलब और मंदिर का द्रश्य बहुत से सुंदर दिखता है |
Eidgaah build 300 years back |
क़ब्र सय्यद नूरुल्लाह