जौनपुर के खैराड़ गांव में दुबड़ी मेला एक खास प्रकार का मेला मनाया जाता है. गांव की महिलाएं सबसे पहले अपने ग्राम देवता नाग देवता की पूजा करते हैं| क्षेत्र मे जो फसलें इन दिनों तैयार हो रही हैं उन सभी फसलों के पेड़ खेतों से लाकर उनको एक साथ बांधा जाता है| उसके बाद उसे गांव के सार्वजनिक चौक पर खड़कर उसकी पुजा की जाती है, जिसे दुबड़ी कहते हैं|
मान्यता है यह भी है कि गुजरे दौर में जब गांवों की आर्थिकी पूरी तरह से पशुपालन और खेती किसानी पर निर्भर हुआ करती थी उस दौर में भादौ के महिने में दुर्गा अष्टमी के दिन सभी फसलों के पौधों को समूह के रूप मे इकट्ठा किया जाता था। फसलों के समूह को गांव में पूजा जाता था। खेतों मे लहलहाती हरी फसलों के पौधों को एक जगह पर इक्ट्ठा करने को ही दुबड़ी कहा जाता था।
दुबड़ी की पुजा के बाद गांव के युवा ऐसे टूट पड़ते है जैसे मानो कोई खजाना मिल गया हो. उसके बाद देर रात तक युवा हो या बुजुर्ग सभी लोग देर तक लोग गीतों में खूब तांदी रासों लगाकर मेले की खुशी मनाते हैं|
इस दौरान जौनपुर की सांस्कृतिक छटा देखते ही बनती है। रंग-बिरंगी परंपरागत पोशाकों में सजी-धजी महिलाएं और पुरुष जौनपुर के मशहूर तांदी नृत्य की लय मे लोक गीतो की धुन के साथ थिरकते हैं।
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