भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अधिकतर कांग्रेस के नाम से प्रख्यात, भारत के दो प्रमुख राजनैतिक दलों में से एक हैं, जिन में अन्य भारतीय जनता पार्टी हैं। कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में २८ दिसंबर १८८५ में हुई थी;इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम (थियिसोफिकल सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। १९वी सदी के आखिर में और शुरूआती से लेकर मध्य २०वी सदी में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने १.५ करोड़ से अधिक सदस्यों और ७ करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में एक केन्द्रीय भागीदार बनी।
१९४७ में आजादी के बाद, कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन गई। आज़ादी से लेकर २०१६ तक, १६ आम चुनावों में से, कांग्रेस ने ६ में पूर्ण बहुमत जीता हैं और ४ में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया; अतः, कुल ४९ वर्षों तक वह केन्द्र सरकार का हिस्सा रही। भारत में, कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं; पहले जवाहरलाल नेहरू (१९४७-१९६५) थे और हाल ही में मनमोहन सिंह (२००४-२०१४) थे। २०१४ के आम चुनाव में, कांग्रेस ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया और ५४३ सदस्यीय लोक सभा में केवल ४४ सीट जीती।
ये हमारे देश की सबसे बड़ी व् सर्वाधिक समय तक देश में सत्ताधारी रही कांग्रेस पार्टी का संक्षिप्त सा इतिहास है और भविष्य के गर्भ में क्या क्या छुपा है ये तो आने वाली पीढ़ियां देखेंगी किन्तु अब की पीढ़ियां फ़िलहाल कांग्रेस का अंधकारमय वर्तमान देख रही हैं और सोच रही हैं कि कांग्रेस ख़त्म हो गयी है क्योंकि फिलवक्त भारत में ''मोदी युग ''चल रहा है और मोदी इस समय कांग्रेस मुक्त भारत का बीड़ा उठाये हुए हैं सोलहवीं लोकसभा के चुनावों के समय नरेन्द्र मोदी ने 'कांग्रेसमुक्त भारत' का नारा दिया जो काफी प्रभावी रहा। चुनावों में कांग्रेस की सीटें मात्र ४४ पर आकर सिमट गयीं, जिसे विपक्षी दल का दर्जा भी प्राप्त नहीं हुआ
और ऐसा नहीं है कि मोदी ये बीड़ा उठाने वाले पहले भारतीय हैं,देश को अपनी तरफ से हर काम में यह दिखाने वाले मोदी कि ''वे ही हैं जिनके समय में देश यहाँ नंबर वन और वहां नंबर वन ''स्वयं कांग्रेस से देश को मुक्ति का सपना दिखाने में पिछड़ गए और स्वयं दूसरे नंबर पर रह गए क्योंकि उनसे पहले यह सपना राम मनोहर लोहिया भी कुछ एहसानफरामोश भारतीयों को सपना दिखा चुके थे राम मनोहर लोहिया लोगों को आगाह करते आ रहे थे कि देश की हालत को सुधारने में काँग्रेस नाकाम रही है। काँग्रेस शासन नये समाज की रचना में सबसे बड़ा रोड़ा है। उसका सत्ता में बने रहना देश के लिये हितकर नहीं है। इसलिये लोहिया ने नारा दिया - "काँग्रेस हटाओ, देश बचाओ।"
1967 के आम चुनाव में एक बड़ा परिवर्तन हुआ। देश के 9 राज्यों - पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, केरल, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश में गैर काँग्रेसी सरकारें गठित हो गयीं। लोहिया इस परिवर्तन के प्रणेता और सूत्रधार बने।लेकिन लोहिया का यह सिलसिला यहीं थम भी गया क्योंकि 1971 के आम चुनाव में इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में कांग्रेस फिर से सत्ता सीन हो गयी और वह भी 518 में से 352 सीट के प्रचंड बहुमत से जबकि बहुमत के लिए केवल 260 सीट ही चाहियें थी ,
स्वतंत्रता से पूर्व भी कांग्रेस का गौरवशाली इतिहास रहा है ,भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके संस्थापक महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए ओ ह्यूम थे जिन्होंने कलकत्ते के व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था। अपने शुरुआती दिनों में काँग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्ग की संस्था का था। इसके शुरुआती सदस्य मुख्य रूप से बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी से लिये गये थे। काँग्रेस में स्वराज का लक्ष्य सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था।
1907 में काँग्रेस में दो दल बन चुके थे - गरम दल एवं नरम दल। गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल (जिन्हें लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे। नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी कर रहे थे। गरम दल पूर्ण स्वराज की माँग कर रहा था परन्तु नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था। प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन् 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गये और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिये अधिराजकीय पद (अर्थात डोमिनियन स्टेटस) की माँग की गयी।
परन्तु १९१५ में गाँधी जी के भारत आगमन के साथ काँग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया। चम्पारन एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन से अपनी पहली सफलता मिली। १९१९ में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के पश्चात गाँधी काँग्रेस के महासचिव बने। उनके मार्गदर्शन में काँग्रेस कुलीन वर्गीय संस्था से बदलकर एक जनसमुदाय संस्था बन गयी। तत्पश्चात् राष्ट्रीय नेताओं की एक नयी पीढ़ी आयी जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई एवं सुभाष चंद्र बोस आदि शामिल थे। गाँधी के नेतृत्व में प्रदेश काँग्रेस कमेटियों का निर्माण हुआ, काँग्रेस में सभी पदों के लिये चुनाव की शुरुआत हुई एवं कार्यवाहियों के लिये भारतीय भाषाओं का प्रयोग शुरू हुआ। काँग्रेस ने कई प्रान्तों में सामाजिक समस्याओं को हटाने के प्रयत्न किये जिनमें छुआछूत, पर्दाप्रथा एवं मद्यपान आदि शामिल थे।
राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए कांग्रेस को धन की कमी का सामना करना पड़ता था। गांधीजी ने एक करोड़ रुपये से अधिक का धन जमा किया और इसे बाल गंगाधर तिलकके स्मरणार्थ तिलक स्वराज कोष का नाम दिया। ४ आना का नाममात्र सदस्यता शुल्क भी शुरू किया गया था।
1947 में भारत की स्वतन्त्रता के बाद से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत के मुख्य राजनैतिक दलों में से एक रही है। इस दल के कई प्रमुख नेता भारत के प्रधानमन्त्री रह चुके हैं। जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, नेहरू की पुत्री इन्दिरा गाँधी एवं उनके नाती राजीव गाँधी इसी दल से थे। पूर्व भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ॰ मनमोहन सिंह भी इसी दल से ताल्लुक रखते हैं।कांग्रेस एक नागरिक राष्ट्रवादी पार्टी हैं, जो एक प्रकार के राष्ट्रवाद का अनुसरण करती हैं, जो आज़ादी, सहिष्णुता, समानता और वैयक्तिक अधिकारों जैसे मूल्यों का समर्थन करता हैं।[विकिपीडिया से साभार ]
स्वतंत्रता के बाद से आज तक कांग्रेस ने ही अधिकांशतया देश को संभाला है और इस कार्य में उसने पूरे समर्पण भाव से कार्य किया है हालाँकि कुछ घोटालों से भी उसका दामन कलंकित हुआ है जिसमे 1948 का जीप खरीद ,1951 का साईकिल आयात ,1958 का मुंध्रा मैस ,मारुति घोटाला ,बोफोर्स घोटाला आदि हैं लेकिन अगर देखा जाये तो घोटालों की स्थिति हर नयी सरकार में भी देखने को मिलती रहती हैं किन्तु अगर कांग्रेस द्वारा किया गया देश का विकास हम देखते हैं तो इन घोटालों को-
''काजल की कोठरी में कैसो ही जतन करो ,काजल का दाग भई लागे ही लागे,
सोचकर छोड़ ही दिए जाने को मन करता है क्योंकि हमारे धर्म शास्त्रों में भी पाप से नफरत करने को कहा गया है ,पापी से नहीं ,ऐसे ही ये भी कहा गया है ,
''कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ,मा कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते सङ्गोस्त्वकर्मणि ''
अर्थात कर्म किये जा फल की इच्छा मत रख रे इंसान ,जैसे कर्म करेगा वैसे फल देगा भगवान ''और यही हो रहा है कांग्रेस ने जो गलत किया उसका परिणाम वह भुगत रही है किन्तु यह कहना कि साठ वर्षों में कांग्रेस ने केवल लूटा ही लूटा है पूरी तरह से एहसानफरामोशी है और भारतीय जनता की बुद्धि विवेक का अपमान ,धीरे धीरे ही सही संक्षेप में ही सही मैं कांग्रेस के स्थापना दिवस पर अपने धर्मशास्त्रों की बातों का अनुसरण करते हुए कांग्रेस के देश प्रेम को याद करना चाहूंगी और कांग्रेस द्वारा देशहित के लिए किये गए कार्यों का आभार व्यक्त भी ,
स्वतंत्रता के बाद भारत को एक बिखरी अर्थव्यवस्था, व्यापक निरक्षरता और चौंकाने वाली गरीबी का सामना करना पड़ा।समकालीन अर्थशास्त्रियों ने भारत के आर्थिक विकास के इतिहास को दो चरणों में विभाजित किया है – पहला आजादी के बाद 45 साल का और दूसरा मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था के दो दशकों का। पहले के वर्षों में मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था के आर्थिक उदारीकरण के उन उदाहरणों से चिह्नित किया गया था जिसमें अर्थपूर्ण नीतियों की कमी के कारण आर्थिक विकास स्थिर हो गया था।भारत में उदारीकरण और निजीकरण की नीति की शुरूआत से आर्थिक सुधार आया है। एक लचीली औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति और एक सुगम एफडीआई नीति की वजह से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों से सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ देना शुरू कर दिया। 1991 के आर्थिक सुधारों के प्रमुख कारक एफडीआई के कारण भारत के आर्थिक विकास में वृद्धि हुई, सूचना प्रौद्योगिकी को अपनाने से घरेलू खपत में वृद्धि हुई और यह आर्थिक सुधारों का प्रमुख कारक ऍफ़डीआई कांग्रेस के ही अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की ही देन है
देश की सेवा क्षेत्र में प्रमुख विकास, टेली सेवाओं और सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा हुआ है। दो दशक पहले शुरू हुई यह प्रवृत्ति सबसे अच्छी है। कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में अपनी टेली सेवाओं और आईटी सेवाओं को आउटसोर्स करना जारी रखा हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के कारण विशेषज्ञता के अधिग्रहण ने हजारों नई नौकरियां दी हैं, जिससे घरेलू खपत में वृद्धि हुई है और स्वाभाविक रूप से, माँगों को पूरा करने के लिए अधिक विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हुआ है।वर्तमान समय में, भारतीय कर्मचारियों के 23% सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं जबकि यह प्रक्रिया 1980 के दशक में शुरू हुई। 60 के दशक में, इस क्षेत्र में रोजगार केवल 4.5% था। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन के अनुसार, 2008 में सेवा क्षेत्र में भारतीय जीडीपी का 63% हिस्सा था और यह आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।
1950 के दशक से, कृषि में प्रगति कुछ हद तक स्थिर रही है। 20 वीं शताब्दी की पहली छमाही में इस क्षेत्र की वृद्धि दर लगभग 1 प्रतिशत हुई।स्वतंत्रता के बाद के युग के दौरान, विकास दर में प्रति वर्ष 2.6 प्रतिशत की कमी आई थी। भारत में कृषि उत्पादन के लिए, कृषि उत्पादन में वृद्धि और अच्छी उपज वाली फसल की किस्मों की शुरूआत की गई। इस क्षेत्र में आयातित अनाज पर निर्भरता समाप्त करने का प्रबंध किया गया। यहाँ उपज और संरचनात्मक परिवर्तन दोनों के संदर्भ में प्रगति हुई है।शोध में लगातार निवेश, भूमि सुधार, क्रेडिट सुविधाओं के दायरे का विस्तार और ग्रामीण बुनियादी ढाँचे में सुधार कुछ अन्य निर्धारित कारक थे, जो देश में कृषि क्रांति लाए थे। देश कृषि-बायोटेक क्षेत्र में भी मजबूत हुआ है। राबोबैंक की रिपोर्ट से पता चलता है कि पिछले कुछ सालों से कृषि-जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र 30 प्रतिशत बढ़ गया है। देश के अनुवांशिक रूप से संशोधित / प्रौद्योगीकृत फसलों का प्रमुख उत्पादक बनने की भी संभावना है।
भारतीय परिवहन नेटवर्क दुनिया के सबसे बड़े परिवहन नेटवर्कों में से एक बन गया है, जिसकी सड़कों की कुल लंबाई 1951 ई0 में 0.399 मिलियन किलोमीटर थी जो जुलाई 2014 में बढ़कर 4.24 मिलियन किलोमीटर हो गई। इसके अलावा, देश के राष्ट्रीय राजमार्गों की कुल लंबाई 24,000 किलोमीटर (1947-69) थी, सरकारी प्रयासों से (2014) राज्य राजमार्गों और प्रमुख जिला सड़कों के नेटवर्क का 92851 किलोमीटर विस्तार हो गया है, जिसने प्रत्यक्ष रूप से औद्योगिक विकास में योगदान दिया है।जैसा कि भारत को अपने विकास को बढ़ाने के लिए बिजली की आवश्यकता है, इसके कारण बहु-आयामी परियोजनाओं को चलाने से ऊर्जा की उपलब्धता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। आजादी के लगभग सात दशकों के बाद, भारत एशिया में बिजली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 1947 में 1,362 मेगावाट से बिजली की उत्पादन क्षमता 2004 तक बढ़कर 1,13,506 मेगावाट हो गई है। कुल मिलाकर, 1992-93 से 2003-04 तक भारत में बिजली उत्पादन 558.1 बीयूएस से 301 अरब यूनिट (बीयूएस) बढ़ गया है। जब ग्रामीण विद्युतीकरण की बात आती है, तो भारत सरकार (2013 के आंकड़ों के अनुसार) 5,93,732 गाँवों को बिजली उपलब्ध कराने में कामयाब रही है, जब कि 1950 में 3061 गाँवों को बिजली प्राप्त थी।
व्यापक निरक्षरता से खुद को बाहर निकालकर, भारत ने अपनी शिक्षा प्रणाली को वैश्विक स्तर के समतुल्य लाने में कामयाबी हासिल कर ली है। आजादी के बाद स्कूलों की संख्या में आकस्मिक वृद्धि देखी गई। संसद ने 2002 में संविधान के 86 वें संशोधन को पारित करके 6-14 साल के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा का मौलिक अधिकार बनाया। स्वतंत्रता के बाद भारत की साक्षरता दर 12.02% थी जो 2011 में बढ़कर 74.04% हो गई।
यह क्षेत्र भारत की प्रमुख उपलब्धियों में से एक माना जाता है जिससे मृत्यु दर में कमी आयी है। जहाँ 1951 में जीवन प्रत्याशा 37 वर्ष थी, 2011 तक लगभग दोगुनी होकर 65 साल हो गई। 50 के दशकों के दौरान हुई मौतें में शिशु मृत्यु दर भी आधे से नीचे आ गई है। मातृ मृत्यु दर में भी इसी तरह का सुधार देखा गया है।एक लंबे संघर्ष के बाद, भारत को अंततः एक पोलियो मुक्त देश घोषित कर दिया गया। पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण, 1979 में 67% से घटकर 2006 में 44% हो गया। सरकार के प्रयासों की वजह से 2009 में तपेदिक मामलों की संख्या घटकर 185 पर पहुँच गई। एचआईवी संक्रमित लोगों के मामलों में भी कमी आयी है। सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय (सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 6%) बढ़ने के अलावा, सरकार ने 2020 तक सभी के लिए ‘हेल्थकेयर’ सहित महत्वाकांक्षी पहलों की शुरुआत की है और सबसे कम आय वाले समूह के तहत आने वाले लोगों को मुफ्त दवाओं के वितरण का शुभारंभ किया है।
स्वतंत्र भारत ने वैज्ञानिक विकास के लिए अपने मार्ग पर आत्मविश्वास बढ़ाया है। इसका कौशल महत्वाकांक्षी परियोजनाओं के क्रमिक स्केलिंग में प्रकट हो रहा है। भारत अपनी अंतरिक्ष उपलब्धियों पर गर्व करता है, जो 1975 में अपने पहले उपग्रह आर्यभट्ट के शुभारंभ के साथ शुरू हुआ।और तब भारत की प्रधानमंत्री कांग्रेस की ही श्रीमती इंदिरा गाँधी जी थी ,तब से भारत एक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में उभरा है जिसने सफलतापूर्वक विदेशी उपग्रहों का शुभारंभ किया है। मंगल ग्रह का पहला मिशन नवंबर 2013 में लॉन्च किया गया था, जो सफलतापूर्वक 24 सितंबर 2014 को ग्रह की कक्षा में पहुँच गया।भारत के दोनों परमाणु और मिसाइल कार्यक्रम आक्रामक रूप में है। इसके साथ-साथ देश की रक्षा शक्ति भी बढ़ी है। दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल “ब्रह्मोस” को रक्षा प्रणाली में शामिल किया गया है जिसे भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। आजादी के छह दशक से अधिक होने के बाद, भारत अब परमाणु और मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक स्वतंत्र बल का अधिकारी है।
क्या इतने योगदान के बाद भी हम यही कहेंगे कि कॉंग्रेस ने साठ सालों में देश के लिए कुछ नहीं किया है ?,क्या अब भी हमें कॉंग्रेस मुक्त भारत की सोचनी चाहिए ? वास्तव में आज की सरकार जो भी कर रही है उसकी नीव रखने वाली कॉंग्रेस है जैसे कॉंग्रेस आज विपक्ष में भाजपा का अनुसरण कर रही है वैसे ही भाजपा सत्ता में कॉंग्रेस का अनुसरण ही कर रही है क्योंकि इन दोनों दलों ने इन इन जगहों पर ही अपने आदर्श स्थापित किये हैं भाजपा का लम्बा अनुभव विपक्ष का है और कॉंग्रेस का सत्ता का ,इसलिए यह कहना, कि कॉंग्रेस विपक्ष में गलत कर रही है ,तो भाजपा पर ही लांछन लगाना होगा क्योंकि कॉंग्रेस भाजपा के पद चिन्हों पर है ऐसे ही जब यह कहा जाये कि भाजपा सत्ता में अच्छा कार्य कर रही है तो वास्तविक तारीफ कॉंग्रेस की है क्योंकि भाजपा कॉंग्रेस की ही नीतियों का पालन कर रही है ,नेहरू के सर बदनामी का ठीकरा फोड़ने वाले भाजपाई मोदी को पूजते हैं जबकि मोदी नेहरू का ही अनुसरण कर भारतीय जनता में लोकप्रिय होने का प्रयास कर रहे हैं ,वास्तव में कॉंग्रेस देश में इतना काम कर चुकी है कि अब औरों का काम केवल उसके कार्यों को मंजिल तक पहुँचाने का ही रह गया है और इसके बाद भी कॉंग्रेस मुक्त भारत की बात करते इन्हें लाज नहीं आती ,सच्चाई तो यह है कि आज भारत और कॉंग्रेस एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं और यदि हम कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं तो हम अपने घर को अपने ही हाथों ख़त्म करने की बात करते हैं ,कॉंग्रेस अपने स्थापना दिवस के साथ नए साल की खुशियां भी लाती है और ऐसे में हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम भी कॉंग्रेस को अच्छे भविष्य के लिए शुभकामनायें दें,मुबारकबाद दें और वह भी इन शब्दों में -
''ज़िंदगी की बहार देखो आप
ऐशे लेलो नहार देखो आप ,
एक ही साल की दुआ कैसी
साल बेहतर हज़ार देखो आप ,''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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