आज के समाज में ऐसे लोगों की आवश्यकता महसूस की जा रही है जो सामाजिक सरोकारों से जुड़ के काम करें और समाज में व्याप्त बुराईयों , भ्रष्टाचार, अनुचित रस्मो इत्यादि के खिलाफ इमादारी से आवाज़ उठाएं | आज समाज में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है क्यूँ की आज समाज का वैश्वीकरण हो चूका है लेकिन हमारे भारत के महानगरों को छोड़ बाकी के समाज की मानसिकता में में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया है |
सामाजिक सरोकारों से जुड़ के काम करने के लिए आपके पास सामाजिक समस्याओं का ज्ञान होना चाहिए और उसके साथ साथ आप अपनी आवाज़ लोगों तक कैसे पहुँचायेंगे यह भी आप को मालूम होना चाहिये | आप यदि अच्छे लेखक है तो आप एक ब्लॉगर की हैसीयत से अपनी पहचान बना सकते हैं और अपनी आवाज़ लोगों तक पहुंचा सकते हैं लेकिन लेखनी के साथ साथ ज़मीनी स्तर पे यदि आपको अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाना नहीं आया तो आप समाज में कोई ख़ास बदलाव नहीं ला पायेंगे क्यूँ की अधिकतर समस्याओं का अम्बार जहां है वहाँ अज्ञानता भी है और सोशल मीडिया से दूरी भी है |
आप यदि नेता है या पत्रकार है तब भी आप सामाजिक सरोकारों से जुड़ के काम कर सकते हैं और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ बदलाव लाने की कोशिश कर सकते हैं | यह हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है की अक्सर सामाजिक बदलाव और यहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार इत्यादि के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली संस्थाएं तो बन जाती है लेकिन उनका मकसद हकीकत में अपनी पहचान बनाना हुआ करता है सामाजिक बदलाव लाना नहीं होता और यही कारण है की हजारों संस्थाओं के होने के बाद भी समाज में कोई ख़ास बदलाव नहीं लाया जा सका है |
जौनपुर जैसे छोटे शहरों और आस पास के गाँव में सामाजिक समस्याओं का अम्बार है | कहीं पारिवारिक झगड़े तो कहीं कुरीतियाँ तो कहीं पानी का प्रदूषण तो कहीं झोला छाप डॉक्टरों की जान लेवा दवाएं तो कहीं नर्सिंग होम की लूट तो कहीं बलात्कार तो कही शराब और अन्य प्रकार के नशे तो कहीं महिलाओं पे अत्याचार तो कहीं रिश्वत खोरी इत्यादि |
आज ऐसे लोगों की कमी हमारे जौनपुर में भी महसूस की जा रहे है जो केवल अपने नाम के लिए नहीं बल्कि समस्याओं को हल करने के मकसद से आगे आयें और समाज में बदलाव लाने की कोशिश करें | अक्सर लोग सोशल शब्द को मीडिया से जुडा देख के 5-10 फेसबुक पेज बना के खुद को "सोशल एक्टिविस्ट " के नाम से मशहूर कर देते हैं जबकि "सोशल एक्टिविस्ट " के लिए ज़मीनी स्तर पे सामाजिक सरोकारों से जुड़ के काम करना होता है और सोशल मीडिया में समस्याओं को उठाने के लिए आपकी लेखनी सशक्त और समस्याओं का गहरा ज्ञान होना आवश्यक होता है | जब तक हमारे समाज के समझदार और तजुर्बेकार लोग एक क साथ जुड़ के सामाजिक सरोकारों पे काम करने के लिए आगे नहीं आयेंगे तक तक इसी तरह से सामाजिक सरोकारों के नाम पे बेवकूफ बनाने वाली संस्थाएं और लोग सस्ती शोहरत के लिए खुद को डिग्रियां बांटते रहेंगे और समाज को बेवकूफ बनाते रहेंगे |
यहाँ मैं एक बात कहता चलूँ की ऐसा नहीं है की भारत के जौनपुर जैसे छोटे शहरों या आस पास के गाँव में अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता नहीं है , संस्थाएं नहीं हैं या लोगों ने काम नहीं किया या सोशल एक्टिविस्ट नहीं है | बहुत से हैं लेकिन उनकी संख्या इतनी कम है की बदलाव किसी ख़ास इलाके या मुद्दे तक ही सिमट के रह जाता है और ऐसी इमानदार संस्थाओं को लोगों का अधिक सहयोग नहीं मिल पाता क्यूँ की ऐसी सस्थाओं से जुड़ के काम करने में ना धन की कमाई अधिक है और ना ही शोहरत और आज के अधिकतर लोग धन और सस्ती शोहरत के लिए काम करना पसंद किया करते हैं |
आज जौनपुर को ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो इमानदार और तजुर्बेकार हों और साथ में लेखनी में इतना दम हो की लोगों को मुद्दे की तरफ आकर्षित कर सकें और सही मायने में "सोशल एक्टिविस्ट "कहलाने के काबिल हों |
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सामाजिक सरोकारों से जुड़ के काम करने के लिए आपके पास सामाजिक समस्याओं का ज्ञान होना चाहिए और उसके साथ साथ आप अपनी आवाज़ लोगों तक कैसे पहुँचायेंगे यह भी आप को मालूम होना चाहिये | आप यदि अच्छे लेखक है तो आप एक ब्लॉगर की हैसीयत से अपनी पहचान बना सकते हैं और अपनी आवाज़ लोगों तक पहुंचा सकते हैं लेकिन लेखनी के साथ साथ ज़मीनी स्तर पे यदि आपको अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाना नहीं आया तो आप समाज में कोई ख़ास बदलाव नहीं ला पायेंगे क्यूँ की अधिकतर समस्याओं का अम्बार जहां है वहाँ अज्ञानता भी है और सोशल मीडिया से दूरी भी है |
आप यदि नेता है या पत्रकार है तब भी आप सामाजिक सरोकारों से जुड़ के काम कर सकते हैं और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ बदलाव लाने की कोशिश कर सकते हैं | यह हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है की अक्सर सामाजिक बदलाव और यहाँ व्याप्त भ्रष्टाचार इत्यादि के खिलाफ आवाज़ उठाने वाली संस्थाएं तो बन जाती है लेकिन उनका मकसद हकीकत में अपनी पहचान बनाना हुआ करता है सामाजिक बदलाव लाना नहीं होता और यही कारण है की हजारों संस्थाओं के होने के बाद भी समाज में कोई ख़ास बदलाव नहीं लाया जा सका है |
जौनपुर जैसे छोटे शहरों और आस पास के गाँव में सामाजिक समस्याओं का अम्बार है | कहीं पारिवारिक झगड़े तो कहीं कुरीतियाँ तो कहीं पानी का प्रदूषण तो कहीं झोला छाप डॉक्टरों की जान लेवा दवाएं तो कहीं नर्सिंग होम की लूट तो कहीं बलात्कार तो कही शराब और अन्य प्रकार के नशे तो कहीं महिलाओं पे अत्याचार तो कहीं रिश्वत खोरी इत्यादि |
यहाँ मैं एक बात कहता चलूँ की ऐसा नहीं है की भारत के जौनपुर जैसे छोटे शहरों या आस पास के गाँव में अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता नहीं है , संस्थाएं नहीं हैं या लोगों ने काम नहीं किया या सोशल एक्टिविस्ट नहीं है | बहुत से हैं लेकिन उनकी संख्या इतनी कम है की बदलाव किसी ख़ास इलाके या मुद्दे तक ही सिमट के रह जाता है और ऐसी इमानदार संस्थाओं को लोगों का अधिक सहयोग नहीं मिल पाता क्यूँ की ऐसी सस्थाओं से जुड़ के काम करने में ना धन की कमाई अधिक है और ना ही शोहरत और आज के अधिकतर लोग धन और सस्ती शोहरत के लिए काम करना पसंद किया करते हैं |
आज जौनपुर को ऐसे लोगों की आवश्यकता है जो इमानदार और तजुर्बेकार हों और साथ में लेखनी में इतना दम हो की लोगों को मुद्दे की तरफ आकर्षित कर सकें और सही मायने में "सोशल एक्टिविस्ट "कहलाने के काबिल हों |
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