ये कहना अनुचित नहीं होगा की आज का युग फेक न्यूज़ और फेक व्यूज का युग है और इसके जाल में जाहिल तो छोडिये पढ़े लिखे भी फँस जाते हैं| वैसे तो कभी कभार फेक न्यूज़ का इस्तेमाल पूरे विश्व में किया जाता रहा है लेकिन अब सोशल मीडिया और वेब पोर्टल की आम आदमी पे पकड़ मज़बूत होने के कारण इसका चलन बढ़ता जा रहा है |
बहुत से वेबसाइट केवल इसी मकसद के लिए बनी है कि छल देते हुए ऐसी खबरें या लेख पेश करना है जो देखने और पढने में तो सच लगें लेकिन हो वो केवल एक चटपटा झूट | ऐसी भ्रमित करने वाली ख़बरों को ,विडियो और तस्वीरों को मज़ा ले के पढने वाले और शेयर करने वाले लोग अधिक होते हैं और इसी मानसिकता का फायदा लेते हुए वेबसाईट और मीडिया वाले आर्थिक और राजनैतिक फायदे के लिए काम करते है |
वैसे तो उन्नीसवीं सदी के प्रारंभ से पहले ही विश्व में चटपटी हैडलाइन के साथ अप्रमाणिक ख़बरों का चलन अपने अखबार की अधिक बिक्री के लिए शुरू हो चूका था और बहुत बार ऐसी खबरें विश्व में राजनैतिक उथल पुथल का कारण भी बनी | आज भी आपको अख़बारों में या वेबपोर्टल पे चटपटे शीर्षक के साथ साधारण सी खबर पढने को मिल जायगी जो इस "येलो पत्रकारिता" के उस पुराने चलन का ही असर है | आप कह सकते हाँ की ये फेक न्यूज़ पुरानी "येलो पत्रकारिता" का संशोधित रूप है जिसमे झूट को ऐसे पेश किया जाता है की वो सत्य लगने लगे |
भारत में भी इस तरह के प्रयोग किये जाते रहे हैं लेकिन व्यापक रूप से इसका अधिक इस्तेमाल २०१५ के बाद देखा जाने लगा है |अब यह पता करना पाठको के लिए एक चुनोती बनता जा रहा है की वो जिस खबर को, तस्वीर को या विडियो को देख रहे हैं वो सही है या केवल एक अफवाह या सच झूट का मिश्रण है |
हमारे देश में भूत प्रेत और परियों की कहानियों पे विश्वास करने वाले बहुत हैं और अंधविश्वास की पकड़ धर्म के नाम पे बहुत मज़बूत है जिसका फायदा समय समय पे फेक न्यूज़ वाले लिया करते हैं | वैसे तो इन फेक न्यूज़ के राजनैतिक इस्तेमाल के बहुत से उदाहरण हैं लेकिन सन २००० के शुरू होते ही सबसे पहले यादगार प्रयोग इस फेक न्यूज़ का "मुह नोच्वा" या "मंकी मैंन"के रूप में हुआ जो बाद में अफवाह साबित हुआ लेकिन उस खबर को हर बड़े और छोटे अखबारों ने अफवाह को सत्य मानते हुए उसपे विश्वास भी किया और उसे फैलाया भी |
आज भारत में भोतिक और राजनीतिक फायदे के लिए या किसी राजनैतिक विचारधारा से प्रेरित हो कर बनाई गयी बहुत सी वेबसाइट मौजूद हैं, जो न्यूज़ या संगठन के भेष में आपके साथ छल कर रही हैं और उनके नाम इस तरह से रखे गए हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि कोई न्यूज़ संगठन होगा | आज इन झूटी वेबसाईट और सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और व्हात्सप्प ग्रुप जिनसे फैली झूटी ख़बरों ,विडियो ,तस्वीर इत्यादि के समाज पे असर को रोकना मुश्किल हो जाता है क्यूँ की जब तक इनका पता लगता है तक तक इनका असर बहुत दूर तक पहुँच चुका होता है |
इस फेक न्यूज़ के चंगुल से आज बड़े बड़े अखबार, न्यूज़ टीवी चैनल, न्यू मीडिया , सोशल मीडिया कोई नहीं बच पा रहा है और इसका ताज़ा उदाहरण है " चोटी कटवा " की खबरें जिनका आस्तित्व ही नहीं है और मुह नोच्वा की तरह जल्द ही झूठा साबित होते हुए ख़त्म हो जायगा लेकिन तब तक बहुत से लोग अच्छा धन कमा चुके होंगे और यह भी जान चुके होंगे की भारत में इसका असर अंधविश्वास के चलते बहुत तेज़ी से हुआ करता है |
इन दो वर्षों में देखने में आया है की इस फेक न्यूज़ का असर हमारे समाज पे भी पड़ने लगा है क्यूँ की इसका इस्तेमाल, राजनीति में बहुत तेज़ी से होने लगा है और ये धर्म के नाम साजिशों और अफवाहों को फैलाने का एक आसान रास्ता बन चूका है |
विज्ञापन की दुनिया में, स्वास्थ से सम्बंधित लेखों इत्यादि में आजकल झूठे दावे और अंतरजाल पे भ्रमित करने वाले लेख ,इलाज और जोक को भरमार होती जा रही है जिनके ज़रिये धन कमाया जा रहा है |
दुःख की बात यह है की आज पूरी दुनिया में फेक न्यूज के इस कारोबार' पर चिंताएं हैं, वहीं भारत में शक्तिशाली मीडिया इंडस्ट्री के होने बावजूद लोगों में इसपे रोक लगाने के विषय में अभी कोई भी ख़ास क़दम नहीं उठाये जा रहे हैं बल्कि अक्सर यह मीडिया वाले अभी इसके इस्तेमाल से नाम और धन कमाने के नए नए रास्ते तलाश करने में ही लगे दिखायी देते है |
भारत वासियों को खबरें और लेख पढ़ते समय जागरूक और चौकन्ना रहना होगा और किसी भी खबर को पढ़ के उसे फैलाने से पहले यह देखना आवश्यक है की इसकी प्रमाणिकता क्या है ?
यह एक संवेदनशील और नाज़ुक समस्या है जिसपे समय रहते काबू नहीं पाया गया तो इसके दुष्परिणाम भी देश वासियों की और हमारे समाज को भुगतने पड सकते हैं |
एस एम् मासूम
बहुत से वेबसाइट केवल इसी मकसद के लिए बनी है कि छल देते हुए ऐसी खबरें या लेख पेश करना है जो देखने और पढने में तो सच लगें लेकिन हो वो केवल एक चटपटा झूट | ऐसी भ्रमित करने वाली ख़बरों को ,विडियो और तस्वीरों को मज़ा ले के पढने वाले और शेयर करने वाले लोग अधिक होते हैं और इसी मानसिकता का फायदा लेते हुए वेबसाईट और मीडिया वाले आर्थिक और राजनैतिक फायदे के लिए काम करते है |
भारत में भी इस तरह के प्रयोग किये जाते रहे हैं लेकिन व्यापक रूप से इसका अधिक इस्तेमाल २०१५ के बाद देखा जाने लगा है |अब यह पता करना पाठको के लिए एक चुनोती बनता जा रहा है की वो जिस खबर को, तस्वीर को या विडियो को देख रहे हैं वो सही है या केवल एक अफवाह या सच झूट का मिश्रण है |
हमारे देश में भूत प्रेत और परियों की कहानियों पे विश्वास करने वाले बहुत हैं और अंधविश्वास की पकड़ धर्म के नाम पे बहुत मज़बूत है जिसका फायदा समय समय पे फेक न्यूज़ वाले लिया करते हैं | वैसे तो इन फेक न्यूज़ के राजनैतिक इस्तेमाल के बहुत से उदाहरण हैं लेकिन सन २००० के शुरू होते ही सबसे पहले यादगार प्रयोग इस फेक न्यूज़ का "मुह नोच्वा" या "मंकी मैंन"के रूप में हुआ जो बाद में अफवाह साबित हुआ लेकिन उस खबर को हर बड़े और छोटे अखबारों ने अफवाह को सत्य मानते हुए उसपे विश्वास भी किया और उसे फैलाया भी |
आज भारत में भोतिक और राजनीतिक फायदे के लिए या किसी राजनैतिक विचारधारा से प्रेरित हो कर बनाई गयी बहुत सी वेबसाइट मौजूद हैं, जो न्यूज़ या संगठन के भेष में आपके साथ छल कर रही हैं और उनके नाम इस तरह से रखे गए हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि कोई न्यूज़ संगठन होगा | आज इन झूटी वेबसाईट और सोशल मीडिया जैसे फेसबुक और व्हात्सप्प ग्रुप जिनसे फैली झूटी ख़बरों ,विडियो ,तस्वीर इत्यादि के समाज पे असर को रोकना मुश्किल हो जाता है क्यूँ की जब तक इनका पता लगता है तक तक इनका असर बहुत दूर तक पहुँच चुका होता है |
इस फेक न्यूज़ के चंगुल से आज बड़े बड़े अखबार, न्यूज़ टीवी चैनल, न्यू मीडिया , सोशल मीडिया कोई नहीं बच पा रहा है और इसका ताज़ा उदाहरण है " चोटी कटवा " की खबरें जिनका आस्तित्व ही नहीं है और मुह नोच्वा की तरह जल्द ही झूठा साबित होते हुए ख़त्म हो जायगा लेकिन तब तक बहुत से लोग अच्छा धन कमा चुके होंगे और यह भी जान चुके होंगे की भारत में इसका असर अंधविश्वास के चलते बहुत तेज़ी से हुआ करता है |
इन दो वर्षों में देखने में आया है की इस फेक न्यूज़ का असर हमारे समाज पे भी पड़ने लगा है क्यूँ की इसका इस्तेमाल, राजनीति में बहुत तेज़ी से होने लगा है और ये धर्म के नाम साजिशों और अफवाहों को फैलाने का एक आसान रास्ता बन चूका है |
विज्ञापन की दुनिया में, स्वास्थ से सम्बंधित लेखों इत्यादि में आजकल झूठे दावे और अंतरजाल पे भ्रमित करने वाले लेख ,इलाज और जोक को भरमार होती जा रही है जिनके ज़रिये धन कमाया जा रहा है |
दुःख की बात यह है की आज पूरी दुनिया में फेक न्यूज के इस कारोबार' पर चिंताएं हैं, वहीं भारत में शक्तिशाली मीडिया इंडस्ट्री के होने बावजूद लोगों में इसपे रोक लगाने के विषय में अभी कोई भी ख़ास क़दम नहीं उठाये जा रहे हैं बल्कि अक्सर यह मीडिया वाले अभी इसके इस्तेमाल से नाम और धन कमाने के नए नए रास्ते तलाश करने में ही लगे दिखायी देते है |
भारत वासियों को खबरें और लेख पढ़ते समय जागरूक और चौकन्ना रहना होगा और किसी भी खबर को पढ़ के उसे फैलाने से पहले यह देखना आवश्यक है की इसकी प्रमाणिकता क्या है ?
यह एक संवेदनशील और नाज़ुक समस्या है जिसपे समय रहते काबू नहीं पाया गया तो इसके दुष्परिणाम भी देश वासियों की और हमारे समाज को भुगतने पड सकते हैं |
एस एम् मासूम
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