प्रकृति का प्रभाव इतना अधिक होता है कि वर्ष में परिवर्तित होने वाले मौसम में
भी मनुष्य के मन-मस्तिष्क को प्रभावित एवं परिवर्तित करते हैं। शोध से ज्ञात होता
है कि वे लोग जो मानसिक समस्याओं में घिरे हुए हैं, वसंत ऋतु में उनकी स्थिति अच्छी
हो जाती है। वसंत ऋतु में रंगों की विविधता भी मानव के व्यवहार और उसके मनोबल को
प्रभावित करती है। नीला आसमान, हरी-भरी धरती, रंग-बिरंगे फूल तथा सुन्दर कलियां यह
सब मनुष्य के शरीर और उसकी आत्मा पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस बारे में
मनोविशेषज्ञ डा. इब्राहीमी का कहना है कि जिस प्रकार से देखा जाता है कि वसंत ऋतु
के दौरान हमारे इर्दगिर्द हरा, नीला, लाल और पीले रंग अधिकता से दिखाई देते हैं और
हमारी आत्मा तथा शरीर पर इन रंगों का उल्लखनीय प्रभाव पड़ता है। आकाश का नीला रंग
शांति, सहमति, स्वभाव में नर्मी तथा प्रेम का आभास कराता है। हरा रंग, संबन्ध की
भावना तथा आत्म सम्मान की भावना को ऊंचा रखता है। लाल रंग कामना, उत्साह तथा आशा,
विशेष प्रकार के आंतरिक झुकाव को उभारता है। सूर्य का पीले रंग का प्रकाश और
कलियों की चटक, प्रभुल्लता, भविष्य के बारे में सकारात्मक सोच तथा कुछ कर गुज़रने
की भावना उत्पन्न करती है। बसंत ऋतु में पाए जाने वाले रंग प्रसन्नता की भावना,
प्रेम, सक्रियता, सफलता और इसी प्रकार की विशेषताओं का कारण बनते हैं। यह सब सदगुण
हैं जिनको हम सदा विकसित करने के प्रयास में रहते हैं।
यह भी एक वास्तविकता है कि वसंत के सुन्दर मौसम में प्रकृति में फैले संगीत को सुनने से मनुष्य के भीतर विशेष प्रकार के आनंद का आभास होता है। जैसे पत्तों के आपस में टकराने की आवाज़, चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें या फिर बहने वाली नदियों से उत्पन्न होने वाली सुन्दर आवाज़ आदि। संभवतः यही कारण है कि बहुत से कवियों और कलाकारों ने बसंत ऋतु में प्राकृति के दर्शन से बहुत कुछ सीखा और जो बाद में उनकी कविताओं या कलाकृतियों का स्रोत बने।
वसंत में जौनपुर की याद अधिक आती है क्यूँ की यह पत्तों के आपस में टकराने की आवाज़, चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें या फिर बहने वाली नदियों से उत्पन्न होने वाली सुन्दर आवाज़ , रंगबिरंगे फूलों की महक का मज़ा जो जौनपुर में आता है वो मुंबई में कहाँ ?
मौसम के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना है कि आती हुई सर्दी से बचो अर्थात अपने शरीर की रक्षा करो जबकि जाती हुई सर्दी अर्थात वसंत के आगमन का स्वागत करो। पतझड़ में अपने शरीर को कपड़ों से ढांपो और वसंत के आगमन पर इन कपड़ों की संख्या को कम करो। इसका कारण यह है कि शीत ऋतु शरीर के साथ वैसा ही करती है जैसे वृक्षों के साथ। जाड़े के आरंभ में वृक्षों के पत्ते गिर जाते हैं और पेड़ सूख जाते हैं और अंत में वह उन्हें पुनः जन्म देता है और उनमें पत्ते पुनः उगते हैं। इस बात की समीक्षा में इब्ने अबिल हदीद, आरंभिक सर्दी से शरीर का सामना होने को एसे व्यक्ति से संज्ञा देते हैं जो एकदम से किसी बहुत गर्म स्थान से निकलकर एक बहुत ही ठंडे घर में प्रविष्ट हुआ हो किंतु वसंत ऋतु की आरंभिक ठंड, क्षति का कारण नहीं बनती। इसका कारण यह है कि मनुष्य का शरीर शीत ऋतु में अधिक से अधिक ठंड सहन करने का आदी हो चुका होता है।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने एक साथी मुफ़ज़्ज़ल से गर्मी और जाड़े के लाभों का उल्लेख करते हुए उनको इनसे पाठ लेने का विषय बताया और उसे ईश्वर के कुशल प्रबंधन का तर्क कहा है। इस संदर्भ में वे कहते हैं कि हे मुफ़ज़्ज़ल तुम जाड़े और गर्मी के मौसम को पाठ लेने की दृष्टि से देखो जो एक के बाद एक करके आते हैं। यह मौसम अपनी विशेषताओं के साथ पूरे वर्ष के दौरान विविध प्रकार की जलवायु को अस्तित्व देते हैं। यह मौसम शरीर के सुदृढ़ बनने का कारण बनते हैं। तुमको इस बारे में ग़ौर करना चाहिए कि इन मौसमों में से एक, किस प्रकार से धीरे-धीरे आता है और दूसरा धीरे-धीरे चला जाता है। इनमें से यदि कोई मौसम एकदम से आ जाए तो वह बीमारियों और शरीर को क्षति पहुंचाने का कारण बन सकता है।
मानव जीवन में वनस्पतियों और वृक्षों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हरी-भरी वनस्पतियों को देखने और इस प्रकार के सुन्दर दृष्यों पर ध्यान देने की इस्लाम में बहुत सिफ़ारिश की गई है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कुछ कथनों में हरे-भरे दृश्यों को देखने के लाभों और उनके माध्यम से हताशा और निराशा जैसी बीमारियों के उपचार की बात कही गई है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि वह चीज़ जो चेहरे को प्रकाशमई बनाती है वह हरी-भरी वनस्पातियों को देखना है। इस संदर्भ में प्रस्तुत कथनों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मनुष्य जब भी हरे-भरे वृक्षों, हरी-भरी वनस्पतियों और हरियाली को देखता है तो उसे विशेष प्रकार की शांति प्राप्त होती है और वह उनसे लाभान्वित होता है। इससे उसके मन को शांति मिलती है और वह प्रभुल्लता का आभास करता है।
यह भी एक वास्तविकता है कि वसंत के सुन्दर मौसम में प्रकृति में फैले संगीत को सुनने से मनुष्य के भीतर विशेष प्रकार के आनंद का आभास होता है। जैसे पत्तों के आपस में टकराने की आवाज़, चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें या फिर बहने वाली नदियों से उत्पन्न होने वाली सुन्दर आवाज़ आदि। संभवतः यही कारण है कि बहुत से कवियों और कलाकारों ने बसंत ऋतु में प्राकृति के दर्शन से बहुत कुछ सीखा और जो बाद में उनकी कविताओं या कलाकृतियों का स्रोत बने।
वसंत में जौनपुर की याद अधिक आती है क्यूँ की यह पत्तों के आपस में टकराने की आवाज़, चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें या फिर बहने वाली नदियों से उत्पन्न होने वाली सुन्दर आवाज़ , रंगबिरंगे फूलों की महक का मज़ा जो जौनपुर में आता है वो मुंबई में कहाँ ?
मौसम के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना है कि आती हुई सर्दी से बचो अर्थात अपने शरीर की रक्षा करो जबकि जाती हुई सर्दी अर्थात वसंत के आगमन का स्वागत करो। पतझड़ में अपने शरीर को कपड़ों से ढांपो और वसंत के आगमन पर इन कपड़ों की संख्या को कम करो। इसका कारण यह है कि शीत ऋतु शरीर के साथ वैसा ही करती है जैसे वृक्षों के साथ। जाड़े के आरंभ में वृक्षों के पत्ते गिर जाते हैं और पेड़ सूख जाते हैं और अंत में वह उन्हें पुनः जन्म देता है और उनमें पत्ते पुनः उगते हैं। इस बात की समीक्षा में इब्ने अबिल हदीद, आरंभिक सर्दी से शरीर का सामना होने को एसे व्यक्ति से संज्ञा देते हैं जो एकदम से किसी बहुत गर्म स्थान से निकलकर एक बहुत ही ठंडे घर में प्रविष्ट हुआ हो किंतु वसंत ऋतु की आरंभिक ठंड, क्षति का कारण नहीं बनती। इसका कारण यह है कि मनुष्य का शरीर शीत ऋतु में अधिक से अधिक ठंड सहन करने का आदी हो चुका होता है।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने एक साथी मुफ़ज़्ज़ल से गर्मी और जाड़े के लाभों का उल्लेख करते हुए उनको इनसे पाठ लेने का विषय बताया और उसे ईश्वर के कुशल प्रबंधन का तर्क कहा है। इस संदर्भ में वे कहते हैं कि हे मुफ़ज़्ज़ल तुम जाड़े और गर्मी के मौसम को पाठ लेने की दृष्टि से देखो जो एक के बाद एक करके आते हैं। यह मौसम अपनी विशेषताओं के साथ पूरे वर्ष के दौरान विविध प्रकार की जलवायु को अस्तित्व देते हैं। यह मौसम शरीर के सुदृढ़ बनने का कारण बनते हैं। तुमको इस बारे में ग़ौर करना चाहिए कि इन मौसमों में से एक, किस प्रकार से धीरे-धीरे आता है और दूसरा धीरे-धीरे चला जाता है। इनमें से यदि कोई मौसम एकदम से आ जाए तो वह बीमारियों और शरीर को क्षति पहुंचाने का कारण बन सकता है।
मानव जीवन में वनस्पतियों और वृक्षों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हरी-भरी वनस्पतियों को देखने और इस प्रकार के सुन्दर दृष्यों पर ध्यान देने की इस्लाम में बहुत सिफ़ारिश की गई है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कुछ कथनों में हरे-भरे दृश्यों को देखने के लाभों और उनके माध्यम से हताशा और निराशा जैसी बीमारियों के उपचार की बात कही गई है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि वह चीज़ जो चेहरे को प्रकाशमई बनाती है वह हरी-भरी वनस्पातियों को देखना है। इस संदर्भ में प्रस्तुत कथनों से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मनुष्य जब भी हरे-भरे वृक्षों, हरी-भरी वनस्पतियों और हरियाली को देखता है तो उसे विशेष प्रकार की शांति प्राप्त होती है और वह उनसे लाभान्वित होता है। इससे उसके मन को शांति मिलती है और वह प्रभुल्लता का आभास करता है।
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