जौनपुर शहर एक ऐतिहासिक शहर है और शार्की, मुग़लों ,तुग़लक के साथ साथ बोद्ध ,शंकराचार्य , रामचंद्र जी, परशुराम , दुर्वासा इत्यादि की गवाही देता है जौनपुर का इतिहास | यहाँ के घाट अपने शांत वातावरण और प्रकृति की सुंदर आवाजों के के कारण हमेशा से रिश्यों मुनियों और सूफियों ,ज्ञानियों को आकर्षित करता रहा है |
शार्की समय के बाद जौनपुर में मुसलमानों का वो समुदाय जो ज्ञान की तरफ अधिक आकर्षित था यहाँ आ के बसने लगा और और एक समय आया की यहाँ ज्ञानियों की १४०० से अधिक पालकियां निकला करती थीं |
शार्की ज्ञानियों और कलाकारों की कद्र करते थे इसलिए उनकी शान बहुत से इलाके आबाद किये और साथ साथ उन इलाकों में मस्जिदें और इमामबाड़े भी बनवाये जो आज भी जौनपुर में हर जगह देखने को मिलते है और वहीँ से शिया मुस्लिम समुदाय हर साल मुहर्रम और सफ़र के महीने में इंसानियत का पैग़ाम देने के लिए जालिमो के ज़ुल्म का शिकार हुए हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के नवासे इमाम हुसैन (अ.) और उनके परिवार ,साहब के दुःख को याद करके आंसू बहाते हैं जिसे वो मजलिस का नाम देते हैं और अज़ादारी कहते हैं | केवल मजलिस ही नहीं इसके साथ साथ अज़ादारी का जुलूस भी निकालते हैं जिसका मकसद दुनिया को यह बताना हुआ करता है की हम जालिमो का साथ नहीं देते |
इसी सिलसिले में जौनपुर के बाज़ार भुआ इलाके में इस्लाम के चौक पे इमाम हुसैन (अ) का चेहल्लुम मनाया जाता है जिसमे आस पास के इलाके से दूर दूर से लोग इमाम हुसैन (अ) की याद में आते हैं | यह चेहल्लुम १८ सफ़र को मनाया जाता है और यहाँ लोगों की मन्नत जो भी अल्लाह से मांगी जाय ज़रूर पूरी हुआ करती है और इस मजमे में केवल मुस्लिम ही नहीं दूर दूर से हिन्दू भाई भी आते हैं अपनी मुरादों को ले के |
इस चेहल्लुम का इतिहास बहुत पुराना है और एक चमत्कार से जुडा हुआ है | एक थे शेख मोहम्मद इस्लाम जिनके नाम पे ही इमामबाड़ा है जहाँ से चेहल्लुम का जुलुस निकलता था | यह १० मुहर्रम की शब् एक ताजिया रखा करते थे लेकिन एक साल काजी मोहम्मद जमिउल्लाह के बेटे मुल्ला खालिलुल्लाह काजी जौनपुर ने इनको ग़लती से झगडे फसाद के डर से क़ैद कर लिया तो यह बहुत परेशान हुयी की अब ताजिया कैसे रखेंगे ?
उनकी बीवी ने १० मुहर्रम को ताजिया रख तो दिया लेकिन दफन आशूर के रोज़ नहीं किया और नीयत की के जब उनके पति आज़ाद हो के आयेंगे उस दिन ताजिया दफ़न करेंगे |
१९ सफ़र को शेख मोहम्मद इस्लाम पे जब की वोह दुआ मैं मसरूफ थे की अचानक उनको नींद आ गयी और उनको एक आवाज़ सुनाई दी " जाओ तुम आज़ाद हो". उनकी यही बशारत उनकी बीवी ने भी अपने घर मैं सुनी और शेख इस्लाम के भाई को बताया| शेख मोहम्मद इस्लाम जब होश मैं आये तो देखा उनकी बेडियाँ खुली हैं और क़ैद खाने का दरवाज़ा भी खुला है. जब वो बाहर निकल रहे थे तो पहरेदारों ने उनको रोका और काजी को खबर दी | काजी ने उनको नहीं रोका और आज़ाद कर दिया| शेख मोहम्मद इस्लाम बस वहीं से लोगों को खबर देते हुए घर आये |जब मोमिनीन जमा हो गए , मजलिस की और वोह ताजिया जो शब् ऐ आशूर चौक पे रखा गया था, वोह १९ सफ़र को उठा |
काजी जिसने मुहम्मद इस्लाम को क़ैद किया था आश्चर्यचकित रह गया यह देख के और उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ | उन काजी जमील उल्लाह साहब जो काजी जौनपुर के भाई थे उन्होंने ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की के, यह जुलूस उनके दरवाज़े से गुज़रे इसलिये ताजिया उठा तो चौक मुहम्मद इस्लाम , बाज़ार भुआ से मोहल्ला चत्तर, मुहल्लाह कोठिया, मोहल्ला टोला, मुहल्लाह बार दुअरिया, मोहल्ला हमाम दरवाज़ा, मोहल्ला शेख महामिद, मोहल्ला अजमेरी,मोहल्ला बाज़ार अलिफ़ खान, काजी की गली,मोहल्ला उमर खान, ज़ेर ऐ मस्जिद कलां, मोहल्ला अर्ज़क,मोहल्ला नकी फाटक, मोहल्ला बाग ऐ हाशिम,,मोहल्ला दलियाना टोला, मुहल्लाह शेख बुरहानुद्दीन पुरा, मुहल्लाह मकदूम शाह बडे, मोहल्ला बाज़ार टोला, रानी बाज़ार,मोहल्ला नासिर ख्वान,छत्री घाट, मोहल्ला नवाब गाजी का कुवां,मोहल्ला जगदीशपुर,बेगम गंज , होता हुआ सदर इमामबाडा तक आया और दफ़न कर दिया गया|
आज भी हर साल यह चेहल्लुम मनाया जाता है और हर धर्म के लाखों लोगों की मुरादें यहाँ पूरी हुआ करती है |
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