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    शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

    मूली मक्का मक्कारी में कहीं खो गयी ऋषि मुनियों की तपो- स्थली जौनपुर |

    मूली मक्का मक्कारी में कहीं खो गया  ऋषि मुनियों की तपस्या स्थली जौनपुर  | 

     https://www.youtube.com/payameamn
    जौनपुर शहर गोमती नदी के किनारे बसा एक सुंदर शहर है जो अपना एक वि‍शि‍ष्‍ट ऐति‍हासि‍क, धार्मिक  एवं राजनैति‍क अस्‍ति‍त्‍व रखता है| यहाँ पे गोमती नदी की सुन्दरता आज भी देखते ही बनती है और आज भी इसके शांतिमय  तट लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं | कभी यह तट तपस्‍वी, ऋषि‍यों एवं महाऋषि‍यों के चि‍न्‍तन व मनन का एक प्रमुख  स्‍थल हुआ करता था था। इसी कारण से आज भी गोमती किनारे यहाँ बहुत से मंदिर देखे जा सकते हैं जहां जा के शांति का एहसास हुआ करता है |


     https://www.youtube.com/payameamnयहीं महर्षि‍ यमदग्‍नि‍ अपने पुत्र परशुराम के साथ रहा करते थे | बौध सभ्यता से ले कर रघुवंशी क्षत्रि‍यों वत्‍सगोत्री, दुर्गवंशी तथा व्‍यास क्षत्रि‍य,भरो एवं सोइरि‍यों का यहाँ राज रहा है | कन्नौज से राजा  जयचंद जब यहाँ आया तो गोमती नदी की सुन्दरता से मोहित हो के उसने यहाँ अपना एक महल जाफराबाद जौनपुर में नदी किनारे बनाया जिसके खंडहर आज भी मौजूद हैं | कभी महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली व शर्की सल्तनत की राजधानी रहा जौनपुर आज भी अपने ऐतिहासिक एवं नक्काशीदार इमारतों के कारण न केवल प्रदेश में बल्कि पूरे भारत वर्ष में अपना एक अलग वजूद रखता है. प्राचीन काल से शैक्षिक व ऐतिहासिक दृष्टि से समृद्धिशाली शिराजे हिन्द जौनपुर नगर में आज भी कई ऐसी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतें है जो इस बात का पुख्ता सबूत प्रस्तुत करती है कि यह नगर आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पूर्ण सुसज्जित नगर रहा होगा।

     https://www.youtube.com/payameamnयह दुःख का विषय है की जौनपुर को इतिहासकारों ने केवल तुगलक , मुग़ल और शार्की राज्य से जोड़ के देखा लेकिन उसके पहले के इतिहास को पूरे तौर पे नज़रंदाज़ किया और यही कराण है की आज जो जौनपुर जमैथा परशुराम की जन्मस्थली रहा हो वहाँ पे कोई उनके नाम को नहीं जानता| कभी महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली रहा जौनपुर का नाम आज उस समय भी दर्ज नहीं किया जाता जब महर्षि यमदग्नि के बारे में लोग बातें करते हैं | महर्षि यमदग्नि की चर्चा होती है तो हरियाणा का जाजनापुर गाँव का नाम आता है अरूणाचल प्रदेश का परशुराम कुण्ड का नाम आता है लेकिन  परशुराम क जन्मस्थली जौनपुर का नाम नहीं आया करता| आप कह सकते हैं की अयोध्या के राजा दशरथ और श्री रामचंद्र के समकालीन का इतिहास भी मिलता है |


     https://www.youtube.com/payameamn
    जौनपुर से केवल ४ किलोमीटर की दूरी पे एक गाँव  है जमैथा जो महार्षि यमदग्नि की तपोस्थली थी | महार्षि यमदग्नि के पुत्र परशुराम थे जिन्हें भगवन विष्णु का छठवां अवतार माना जाता है| इतिहास कारों में एक सहमती तो नहीं लेकिन एक मत यह भी है की उस समय जौनपुर का नाम यमदग्निपुर था और यह इलाका "अयोध्यापुरम" के नाम से जाना जाता था |पत्नी से नाराज परशुराम के पिता यमदग्नि ने अपने सभी पुत्रों से बारी-बारी अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर देने को कहा।





    जिसमें परशुराम ने पिता की आज्ञा का पालन किया और यहीं पर माता रेणुका का सिर काटकर हत्या कर दिया। आज्ञाकारी पुत्र परशुराम से खुश हो के पिता यमदग्नि ऋषि ने उन्हें वरदान देना चाहा तो उन्हीने अपनी माता रेणुका को पुनर्जीवित करने का वरदान माँगा जो पूर्ण हुआ | परशुराम ने अपनी मां के लिए पिता से अखंड का वरदान मांगा। जिससे माता रेणुका को अखंडो देवी कहा जाने लगा। अखड़ो देवी अर्थात अखंडी देवी मां रेणुका हैं। जिनकी पूजा आज भी जमैथा गांव में की जाती है। यही पे एक मदिर है जो बाबा परमहंस की समाधि है | गाँव के लोग बताते हैं की अठारहवीं शताब्दी में यमदग्नि की तपोभूमि जमैथा में बाबा परमहंस का आगमन हुआ। यहीं रहकर वह अपनी साधना करते रहे। सन् 1904 में  उन्होंने पद्मासन लगाकर अपनी नाभि से अग्नि पुंज प्रज्ज्वलित कर खुद को अग्नि में समाहित कर लिया।

     http://www.hamarajaunpur.com/2017/10/shreeram.html
    जमैथा गांव जफराबाद (जौनपुर) की मिंट्टी पावन है क्योंकि यहां भगवान राम ने यमदग्नि की तपोभूमि पर दो बार अपना पांव रखा था। पहली बार अपने गुरु वशिष्ठ के साथ बचपन में राजा कीर्तिवीर जो यमदग्नि के तप को भंग करता था उसका वध करने और दूसरी बार 14 वर्ष का वनवास जाते समय यमदग्नि से मिलते हुए गए।

    जौनपुर का केवल जमैथा ही नहीं शाहगंज और करार बीर पे रामचंद्र जी के आगमन के सुबूत आज भी मौजूद हैं | शाहगंज में आज भी चूड़ी मेला लगता है जिसके पीछे इतिहास यह है की रामचंद्र जी वनवास से लौटते समय यहाँ से गुज़रे और सीता जी ने यही पे साध्वी के वस्त्र त्याग करते हुए श्रृंगार किया और चूड़ी खरीदी और जौनपुर किले से सटे हुए करार बीर पे रामचंद्र जी का आगमन हुआ और उसके महल को तोड़ के उसका वध किया |

    इस विषय पे अभी और भी शोध की आवश्यकता है और मुझे ऐसा लगता है की जौनपुर का धार्मिक महत्व अयोध्या काशी से कम नहीं होगा |

    आज भी यह जौनपुर तलाश रहा है ऐसी शक्सियतों को तो इसे इसकी अस्ल पहचान दिला सकें | जौनपुर गोमती के किनारे जहां कभी ऋषि मुनि तप किया करते थे आज भी सुंदर घाट वहाँ नहीं बन सके हैं और प्राचीन मंदिरों के आस पास गोमती किनारे लोग मलमूत्र त्याग करते हैं | आशा है आने वाला वक़्त जौनपुर को उसकी सही पहचान देगा और सप्रदायिक सौहाद्र की पहचान रहे जौनपुर की शान पूरे विश्व तक पहुंचेगी और यह पर्यटकों का भारत में सबसे पसंदीदा स्थान बनेगा | हमारा जौनपुर डॉट कॉम की टीम काफी समय से जौनपुर को पर्यटक स्थल घोषित करवाने के प्रयास में लगी है और हर स्तर पे इसके सम्बंधित विभागों से बात चीत कर रही है और आशा है जल्द इसका नतीजा भी आयगा |

    ..लेखक एस एम् मासूम





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