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    गुरुवार, 25 अक्तूबर 2018

    जानिये जौनपुर पानदरीबा का ऐतिहासिक चेहल्लुम क्यों मनाया जाता है |

    जौनपुर शिराज ए हिंद का ऐतिहासिक चेहल्लुम जो हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम द्वारा अपने परिवार के मित्रों के साथ कर्बला में दी गई शहादत की याद में सैकड़ों वर्षो से अपनी सभ्य परंपराओं के अनुरूप इमामबाड़ा शेख मोहम्मद इस्लाम बाजार भुआ  पान दरीबा रोड पर मनाया जाता है । इस वर्ष यह चेहल्लुम  28 एवं 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा ।

    जौनपुर  का तारीखी  चहल्लुम १८ सफ़र को हर साल होता है जिसमे शाम ८ बजे ताजिया रखा  जाता  है और जैसे ही नौहा "चेहल्लुम  तेरा करने  के लिए आयी हूँ भैया " शुरू  होता  है  हर अज़ादार  की  आँखों  में  आंसू  भर  आते  है  । रात भर  अन्जुमनें  लगती  है मातम  होता है और सुबह  होते  होते  सलाम ऐ आखिर "हुसैन बेकसो मजलूम बेवतन  को सलाम " शुरू  जब होता  है तो ऐसा कोई नहीं होता वहाँ जो  हुसैन की शहादत ,जनाब ऐ जैनब  की  और इमाम सज्जाद पे  हुए ज़ुल्म को याद करके आंसू ना बहा रहा हो । इस तारीखी चेहल्लुम  में कई लाख हिन्दू और मुसलमान इमाम हुसैन (अ.स) को श्रधांजलि देने को हर साल जमा होते है ।
    चेहल्लुम  तेरा करने  के लिए आयी हूँ भैया

    दूसरे दिन 29 अक्टूबर को कार्यक्रम का आरंभ दोपहर 1:00 बजे मजलिस से होगा बाद समाप्ति मजलिस इमाम बारगाह शेख मोहम्मद इस्लाम से एक ऐतिहासिक तुरबत निकाली जाएगी जो एक जुलूस के रूप में अपने निर्धारित रास्ते पान दरीबा रोड काज़ी की गली , मस्जिद तला रोड , पुरानी बाजार से होता हुआ सदर इमामबारगाह जौनपुर पर समाप्त होगा ।यह चेहल्लुम इस्लाम का चौक पानदरीबा में मनाया जाता है और इसमें सभी सम्प्रदाय के लोग जमा होते हैं जिनका मानना है की यहां मांगी गयी मुराद कभी रद्द नहीं हुआ करती |

    इस चेहल्लुम  से एक मुअज्ज़ा  भी  जुडा  हुआ है जो बुज़ुर्ग और अज़ादारी के इतिहासकार बताते हैं |

    शेख मोहम्मद इस्लाम साहब हर साल शब् ऐ आशूर अपने घर  के सामने चौक पे ताजिया इमाम हुसैन (अ.स) का रखा करते थे | एक साल शेख मोहम्मद इस्लाम, शब् ऐ आशूर अपने घर के सामने चौक पे ताजिया रख के इमामबाडा चम्मन मैं ज़ाकिरी के लिये गए | वहाँ से सब्जी बाज़ार मदद अली के अज़ाखाने गए और बाद नजरो नियाज़ कर के जब अपने घर वापस आ रहे थे तो काजी मोहम्मद जमिउल्लाह के बेटे मुल्ला खालिलुल्लाह काजी जौनपुर ने उनको दंगे फसाद की डर से गिरफ्तार कर लिया | यह वाकेया बाज़ार अलिफ़ खान उर्फ़ काजी की गली मैं हुआ | बहुत सिफारिश की गयी की उन्हें छोड़ दिया जाये लेकिन काजी पे कोई असर न हुआ| शेख मोहम्मद इस्लाम के भाई अली और उनकी जोज़ा ने ख्वाहिश की के अपने चौक का ताजिया दफ़न कर दिया जाए लेकिन शेख मोहम्मद इस्लाम साहब ने इजाज़त न दी और ताजिया जीनत ऐ चौक बना रहा|
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    उनकी बीवी दिन रात मासूम (अ.स) और शहीद ए कर्बला के वास्ते से दुआ करती रहीं और शेख मोहम्मद इस्लाम क़ैद खाने के अंदरूनी हिस्से मैं आपकी बेगुनाही की फरियाद अल्लाह से करते और रोते रहते थे|  १९ सफ़र को शेख मोहम्मद इस्लाम पे जब की वोह दुआ मैं मसरूफ थे अचानक बेहोशी तारी हो गयी और उनको एक आवाज़ सुनाई दी " जाओ तुम आज़ाद हो". उनकी यही बशारत उनकी जौजा ने अपने घर मैं भी सुनी और शेख इस्लाम के भाई को बताया| शेख मोहम्मद इस्लाम जब होश मैं आये तो देखा उनकी बेडियाँ खुली हैं और क़ैद खाने का दरवाज़ा भी खुला है. जब वो बाहर निकल रहे थे तो पहरेदारों ने उनको रोका और काजी को खबर दी | काजी ने उनको नहीं रोका और आज़ाद कर दिया| शेख मोहम्मद इस्लाम बस वहीं से लोगों को खबर देते हुए घर आये |जब मोमिनीन जमा हो गए , मजलिस की और वोह ताजिया जो शब् ऐ आशूर चौक पे रखा गया था, वोह चौक मुहम्मद इस्लाम से सदर इमामबारा बहुत करीब है लेकिन इस ख्याल से के औरतें भी, अपने घरों से ज़िआरत कर सकें काजी जमील उल्लाह साहब जो काजी जौनपुर के भाई थे उन्होंने ने यह ख्वाहिश ज़ाहिर की के, यह जुलूस उनके दरवाज़े से गुज़रे इसलिये ताजिया उठा तो चौक मुहम्मद इस्लाम , बाज़ार भुआ से मोहल्ला  चत्तर, मुहल्लाह कोठिया, मोहल्ला टोला, मुहल्लाह बार दुअरिया, मोहल्ला हमाम दरवाज़ा, मोहल्ला शेख महामिद, मोहल्ला अजमेरी,मोहल्ला बाज़ार अलिफ़ खान, काजी की गली,मोहल्ला उमर खान, ज़ेर ऐ मस्जिद कलां, मोहल्ला अर्ज़क,मोहल्ला नकी फाटक, मोहल्ला बाग ऐ हाशिम,,मोहल्ला दलियाना टोला, मुहल्लाह शेख बुरहानुद्दीन पुरा, मुहल्लाह मकदूम शाह बडे, मोहल्ला बाज़ार टोला, रानी बाज़ार,मोहल्ला नासिर ख्वान,छत्री घाट, मोहल्ला नवाब गाजी का कुवां,मोहल्ला जगदीशपुर,बेगम गंज , होता हुआ सदर इमामबाडा तक आया और दफ़न कर दिया गया|


    इस जुलूस का यह रास्ता मुस्तकिल हो गया जो की अब तक है| १९ सफ़र का यह ताजिया शेख मुहम्मद इस्लाम से हर साल उसी तारीख को उठने लगा . बाज़ रवायतों से यह भी ज़ाहिर है की, असीराने ऐ कर्बला क़ैद से रिहा हो के, १९ सफ़र को कर्बला मैं पहुंचे थे|शहर के और भी अज़ाखानो के ताजिया भी, इसी तारिख मैं उठने लगे.और सब के सब एक एक कर के ,इस्लाम के चौक वाले ताजिए के साथ रास्ते मैं, शामिल होते चले गए| आगे इस्लाम का ताजिया होता है, और उसके बाद दूसरे अज़ाखानो के ताजिए रहते हैं.|यह जुलूस शाम को सदर इमामबाडा पहुच के तमाम होता है. मोमिनीन की कई अन्जुमनें मातम , गिरया और नौहा ख्वानी करती हुई साथ साथ चलती हैं. . मजमा कसीर होता है|


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