जौनपुर को फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने उस समय बसाया जब यह बौद्ध महलों और मठों के खंडहर की शक्ल में उजड़ा पड़ा हुआ था | जौनपुर शहर के बंगाल और दिल्ली के मध्य में होने के कारण फ़िरोज़ शाह ने सं १३६१ इ में इसे बसाया | उस दौर का यह शहर बहुत ही महत्वपूर्ण था क्यों की इसके पश्चिम में प्रतापगढ़ और इलाहाबाद पूर्व में आजमगढ़ और गाज़ीपुर ,उत्तर में सुल्तानपुर और दछिन में बनारस और मिर्ज़ापुर है |
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गज सिंह मूर्ती (शार्दुल) |

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सदर इमामबाड़ा |
जौनपुर का सुनहरा दौर उस समय आया जब १४०२ में इब्राहिम शाह शर्क़ी राज्य का बादशाह बना क्यों की इब्राहिम शाह एक बड़ा विद्वान और निर्माण का शौक रखने वाला बादशाह था जिसके राज में अमन और शांति उसकी पहचान थी | तैमूर के आक्रमण के दौरान शांत प्रदेश की तलाश में जौनपुर की तरफ १४०० से अधिक संत और ग्यानी आये जिनका स्वागत इब्राहिम शाह ने किया और उन संतो सूफियों ने जौनपुर को ज्ञान के छत्र में विश्व प्रसिद्द कर दिया और दूर दूर से लोग यहां ज्ञान प्राप्त करने के लिए आने लगे और जौनपुर शीराज़ ऐ हिन्द कहलाने लगा |
आज भी आप अगर जौनपुर को आस पास से देखें तो आपको चारों तरफ मक़बरे प्राचीन गुम्बदें और समाधियां नज़र आएंगी जो उन लोगों की हैं जिन्होंने इसे शीराज़ ऐ हिन्द बनवाया लेकिन दुःख की बात यह है की आज अधिकतर खंडहरों में बदल चुका है |
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शाही पुल |
एक शतक से अधिक समय तक शर्क़ी राज्य की राजधानी रहे जौनपुर में आज भी शिल्प कला के और सुलेख कला के नमूने देखने को मिल जायेंगे | जिसमे शामिल हैं बड़ी मस्जिद , अटाला मस्जिद , लाल दरवाज़ा ,खालिस मुख्लिस मस्जिद, झंझरी मस्जिद, शाही क़िला ,शाही पुल और सैकड़ों समाधियां,क़ब्रें और मक़बरे के साथ साथ बौद्ध समय की पहचान गज सिंह मूर्ती भी मौजूद है | लेकिन जब आप ध्यान से देखेंगे तो आप पाएंगे की सब कहीं न कहीं से टूट फूट के शिकार हुए हैं जो शर्क़ी राज्य के पतन के बाद आये सिकंदर लोधी की देंन है |
फिर आया मुगलों का दौर जिसमे शाही पुल , और खानकाहे और कुछ प्रसिद्ध मंदिर वजूद में आये और इस प्रकार यह जौनपुर केवल विद्या का केंद्र नहीं बल्कि विद्वानों और कलाकारों का ऐसा इलाक़ा बना की आज भी शीराज़ ऐ हिन्द इसकी पहचान बना हुआ है | तुग़लक़ समय और मुगलो में समय के ऐतिहासिक इमामबाड़े भी आप को जौनपुर शहर में जगह जगह मिल जायेंगे जिनपे बनी नक़्क़ासशी और सुलेख कला ने नमूने आज भी नायाब हैं |
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शिवाला |
फिरोज़ शाह तुग़लक़ के पहले के इतिहास के अधिकतर इतिहास की किताबें मौन हैं लेकिन यहां पे मौजूद बौद्ध धर्म के निशानात और राजा दशरत के समकालीन यमदग्नि ऋषि और परशुराम की जमैथा की कथाएं बता रही हैं की जौनपुर हिन्दू धर्म में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है जिसके आस पास प्रतापगढ़ में पांडवों के आने के निशाँन अजगरा में मिलते हैं और इसी के साथ साथ अयोध्या काशी ,बनारस ,मिर्ज़ापुर जैसे धार्मिक महत्व वाले शहर सटे हुए है |
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ज़ुलक़दर मंज़िल |
जौनपुर में जहां रामचंद्र जी का आगमन कई बार हुआ और यहीं पे सीता ने अपना वनवास ख़त्म करते हुए चूड़ियाँ पहनी | जमैथा परशुराम जी की जन्मस्थली के रूप में मौजूद है तो उधर महल में दुर्वासा ऋषि का आश्रम और शाहगंज पे आज भी लगता चूड़ी मेला जहां सीताजी ने वनवास में पहने योगियों के रूप को बदलते हुए चूड़ियां पहनी थी आज भी इसके धार्मिक महत्व को पबैता रहा है | यह वो इलाक़ा है जहां ऋषि मुनियों,बादशाहों सूफियों सबको शांति मिला करती थी और गोमती किनारे आज भी आपको पुराने मंदिर ,मस्जिद, मज़ारें देखने को मिल जाएंगी और जौनपुर के स्वर्णिम इतिहास को आज भी बयान कर रहे हैं और उनके टूटे अवशेष एक आवाज़ दे रहे हैं की आओ मुझे फिर से एक जीवन दो मैं तुम्हे ज्ञान अमन और शांति से भरा शहर दूँगा |
जौनपुर शर्क़ी राज्य के बाद अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहरों को बचाने में ना कामयाब रहा है और आज आवश्यकता है इसे पुनर्जीवित करते हुए पर्यटकों के आने योग्य बनाने की जिस से जौनपुर फिर से विश्वपटल में सितारों क तरह चमक सके | लेकिन जौनपुर अपने "ज्ञान के स्त्रोत" और शीराज़ ऐ हिन्द जैसी पहचान को आज भी सशक्त तरीके से आगे बढ़ाने में कामयाब है |

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