जौनपुर अपने समय काल में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण राज्य के रूप में प्रतिष्ठित था तथा इसका अपने आसपास के कई राज्यों के साथ घना रिश्ता भी था। ग्वालियर के रिश्ते पर मियाँ मुहम्मद सईद ने अपनी पुस्तक द शर्की सल्तनत ऑफ जौनपुर में विस्तार से लिखा है। जिसमें लोदियों व शर्कियों तथा इनके बीच के कई बिन्दुओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। ग्वालियर व जौनपुर का गायन के क्षेत्र में भी एक अभिन्न रिश्ता है, जौनपुर से ही राग जौनपुरी ग्वालियर गयी और वहाँ पर उसका विकास मानसिंह के देख-रेख में हुआ।
मध्य प्रदेश के ग्वालियर में लधेड़ी गेट को शहर का बुलंद दरवाजा कहा जाता है। राज्य पुरातत्व संरक्षित इस स्मारक का निर्माण ग्वालियर रियासत के तत्कालीन राजा कल्याण मल ने कराया था। बागियों की फांसी से लेकर गढ़े हुए खजाने की अफवाहों के गवाह इस लधेड़ी गेट दोस्ती की एक मिसाल है| इस गेट का निर्माण ग्वालियर के राजा कल्याणमल तोमर जो की राजा मान सिंह तोमर के पिता थे ने करवाया था। यह द्वार जौनपुर के हुसैन शाह शर्की के आवभगत के लिये बनवाया गया था तथा यहाँ पर हुशैन शाह शर्की रुके भी थे।लधेड़ी गेट जौनपुर के हुसैन शाह शर्क़ी के ग्वालियर से दोस्ती और गहरी रिश्तों की पहचान बना हुआ आज भी खड़ा है |
1466 में, ग्वालियर शासक कीर्तिसिंह ने दिल्ली के खिलाफ युद्ध में जौनपुर शासक हुसैन शाह शर्की का समर्थन किया था। ग्वालियर शासक ने हुसैन शाह को केवल पुरुषों और धन नहीं दिए, बल्कि दिल्ली पर आक्रमण के दौरान उन्हें कल्पी में सहयोग भी दिया था। इस कृत्य ने ग्वालियर को बहलोल लोदी का शत्रु बना दिया। लोदियों ने 1479 में हुसैन शर्की को हराया, लेकिन ग्वालियर पर हमला करने के लिए 1486 में किर्तीसिंह के उत्तराधिकारी कल्याणमल्ल की मृत्यु तक इंतजार किया। यही वह काल था जब हुशैन शाह ग्वालियर आया था। वर्तमान काल में इस स्थान को यवनपुर भी कहा जाता है जो की जौनपुर का प्राचीन नाम था। यहाँ पर अब मात्र एक तरफ का ही हिस्सा इस द्वार का बचा हुआ है।
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