जौनपुर को फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने १३६१ में अपने चचेरे भाई मुहम्मद पुत्र तुग़लक़ उर्फ़ जूना खा के नाम पे बसाया और एक क़िले का निर्माण किया । जौनपुर बंगाल और दिल्ली बीच में स्थित है । १३६३ तक तुग़लक़ राज्य की कमर टूट चुकी थी और तुग़लक़ ने दिल्ली से अलग हो के शर्क़ी राज्य बनाया जिसकी राजधानी जौनपुर को बना दिया ।
१४०२ इ में इब्राहिम शाह शर्क़ी राज्य का बादशाह बना जिसने १४४४ ई ० तक बहुत ही वैभव पूर्वक राज किया । शर्क़ी शासन काल में जौनपुर को " दरुसोरूर शिराज़ ऐ हिन्द " कहा जाता था । वैसे तो जौनपुर शिक्षा दीक्षा के मामले में मुगलो के समय से बड़ी अहमियत रखता था । मुग़लो के समय में ही यहां बहुत से मदरसे और खानकाहे बनी लेकिन शार्की समय में जौनपुर की उन्नति सबसे अधिक हुयी ।
इब्राहिम शाह एक विद्वान और न्याय पसंद बादशाह था जिसके समय में प्रजा की सुख शान्ति के लिए क़ानून बने और बड़े बड़े महलात और मस्जिदें बनायी गयी । शर्क़ी में इब्राहिम शाह के बाद आने वाले बादशाह महमूद शाह, मुहम्मद शाह और हुसैन शाह ने भी जौनपुर को वही शान दिलायी जिसका नतीजा ये हुआ की ये राज्य भारत का सबसे बडा , खुशहाल और सुदर राज्य माना जाने लगा और इसकी राजधानी जौनपुर को शिराज़ ऐ हिन्द कहा जाने लगा ।
इस की ख्याती इतनी बढती गयी कि मिस्र, इरान ,अफगानिस्तान इत्यादी जगहो से लोग यहा पढने आने लगे । आज जो जौनपुर दिखता है वो पहले जैसा नही और कल के महलात , मस्जिद और मक़बरे खंडहर में बदल चुके है या बद्हाल हालत मे है ।
यदि आपको जौनपुर घूमने का अवसर मिले तो आपको दिखेगा कि हर गली ,मोहल्ले,और मोड़ पे प्राचीन मक़बरे, दिखाई देंगे । इनमे शाहज़ादो,बादशाहो,सेनापतियों,जर्नलों, सूबेदारों,सूफियों,तथा अनेक ज्ञानियो की समाधियाँ हैं लेकिन मृत्यु के निर्मम हाथो ने इनका अंत कर दिया ।
लेकिन दुःख उस समय होता है जब जीर्ण शीर्ण मकबरों कर खंडहर को देखते हैं तो ना तो किसी पे कोई नाम लिखा है और ना ही उन्हें कोई सँभालने वाला है जबकि यही वो लोग हैं जिन्होंने जौनपुर को शीराज़ ऐ हिन्द बनाया । अब यह नगर टूटी फूटी समाधियों ,मक़बरों, मस्जिदो, गुम्बदों, के अवशेषों का शहर बन के रह गया है ।
शर्क़ी राज्य में जितना इस जौनपुर का महत्व था उतना इस दौर में नहीं रह गया बल्कि अब ये एक ऐसा शहर होता जा रहा है जहां से लोग रोज़गार की तलाश में पलायन करते जा रहे हैं ।
आज भी यदि इस जौनपुर की मस्जिदो, मंदिरो और पुराने मक़बरों की देख भाल की जाय तो ये एक सुंदर पर्यटन छेत्र में बदल सकता है । अगले लेख में आपके सामने होगा कीर्तिलता का वर्णन ।
१४०२ इ में इब्राहिम शाह शर्क़ी राज्य का बादशाह बना जिसने १४४४ ई ० तक बहुत ही वैभव पूर्वक राज किया । शर्क़ी शासन काल में जौनपुर को " दरुसोरूर शिराज़ ऐ हिन्द " कहा जाता था । वैसे तो जौनपुर शिक्षा दीक्षा के मामले में मुगलो के समय से बड़ी अहमियत रखता था । मुग़लो के समय में ही यहां बहुत से मदरसे और खानकाहे बनी लेकिन शार्की समय में जौनपुर की उन्नति सबसे अधिक हुयी ।
इब्राहिम शाह एक विद्वान और न्याय पसंद बादशाह था जिसके समय में प्रजा की सुख शान्ति के लिए क़ानून बने और बड़े बड़े महलात और मस्जिदें बनायी गयी । शर्क़ी में इब्राहिम शाह के बाद आने वाले बादशाह महमूद शाह, मुहम्मद शाह और हुसैन शाह ने भी जौनपुर को वही शान दिलायी जिसका नतीजा ये हुआ की ये राज्य भारत का सबसे बडा , खुशहाल और सुदर राज्य माना जाने लगा और इसकी राजधानी जौनपुर को शिराज़ ऐ हिन्द कहा जाने लगा ।
इस की ख्याती इतनी बढती गयी कि मिस्र, इरान ,अफगानिस्तान इत्यादी जगहो से लोग यहा पढने आने लगे । आज जो जौनपुर दिखता है वो पहले जैसा नही और कल के महलात , मस्जिद और मक़बरे खंडहर में बदल चुके है या बद्हाल हालत मे है ।
यदि आपको जौनपुर घूमने का अवसर मिले तो आपको दिखेगा कि हर गली ,मोहल्ले,और मोड़ पे प्राचीन मक़बरे, दिखाई देंगे । इनमे शाहज़ादो,बादशाहो,सेनापतियों,जर्नलों, सूबेदारों,सूफियों,तथा अनेक ज्ञानियो की समाधियाँ हैं लेकिन मृत्यु के निर्मम हाथो ने इनका अंत कर दिया ।
लेकिन दुःख उस समय होता है जब जीर्ण शीर्ण मकबरों कर खंडहर को देखते हैं तो ना तो किसी पे कोई नाम लिखा है और ना ही उन्हें कोई सँभालने वाला है जबकि यही वो लोग हैं जिन्होंने जौनपुर को शीराज़ ऐ हिन्द बनाया । अब यह नगर टूटी फूटी समाधियों ,मक़बरों, मस्जिदो, गुम्बदों, के अवशेषों का शहर बन के रह गया है ।
शर्क़ी राज्य में जितना इस जौनपुर का महत्व था उतना इस दौर में नहीं रह गया बल्कि अब ये एक ऐसा शहर होता जा रहा है जहां से लोग रोज़गार की तलाश में पलायन करते जा रहे हैं ।
आज भी यदि इस जौनपुर की मस्जिदो, मंदिरो और पुराने मक़बरों की देख भाल की जाय तो ये एक सुंदर पर्यटन छेत्र में बदल सकता है । अगले लेख में आपके सामने होगा कीर्तिलता का वर्णन ।
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