पिछली लिखी कजली पर मिले प्यार से अभिभूत हूँ। उसे कविता कोष के लोकगीत में शामिल किया गया है। मुझसे कई मित्रों ने एक और कजली लिखने की फ़रमाईश की थी जिसे आज मैं पूरी कर रहा हूँ। प्रस्तुत कजली की धुन पूर्व से अलग है। आनंद लीजियेगा।
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सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,
मड़ईया के छवावे ननदी।
घर में बाटी हम अकेली
कउनो संगी ना सहेली
पापी पपिहा बोले बीचोबीच अटरिया
मड़ईया के छवावे ननदी।
सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,
मड़ईया के छवावे ननदी।
चारो ओर बदरिया छाई
हरियर आँगन मोर झुराई
कइसे गाई जाये सावन में कजरिया
मड़ईया के छवावे ननदी।
सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,
मड़ईया के छवावे ननदी।
छानी छप्पर सब चूवेला
देहिया भींज भींज फूलेला
अगिया लागे तोहरी जुलुमी नोकरिया
मड़ईया के छवावे ननदी।
सईयां जाई बसे हैं पुरुबी नगरिया,
मड़ईया के छवावे ननदी।
++pawan++
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