सई नदी को मृत नदी के रूप मे तब्दील किया जा चुका है। यह तब्दीली और कही से नही आयी बल्कि वही के लोगो की वजह से आयी है। मै लगभग कुछ पहले जब नदी के किनारे गया था तो वहा नाम मात्र का पानी था। आस पास के लोगो से बात चीत के आधार पर ज्ञात हुआ कि बरसात के दिनो मे सई का पानी किनारे बसे गावो मे भर जाता है। सई नदी को ध्यान से देखने के बाद मुझे पता चलाकि यह नदी छिछली होती जा रही है। नदी के पुल के इस पार धीरदास धाम है जहा एक बाबा की समाधि बनी हुयी है। उस पार चुंगी है। हालांकि अब बन्द हो गयी है। चुंगी के नीचे की हलचल देखकर मै वहा देखा तो माजरा समझ मे आया। यहा जंगल माफियाओ क स्वर्ग दिखा मुझे। नदी के किनारे पेडो की कटान अपने चरम पर थी. पेड कटने से मिट्टी स्वतंत्र हो जाती है (जिसको जडे बाधे रहती थी) और नदी मे सीधे पहुचती है फिर नदी की तलहटी मे जमा होती रहती है। जिससे नदी उथली होने लगती है। यही चीज बाद मे नदी के सूखने और बाढ का कारण बनती है। इसी वजह से जीव जंतु और अन्य वनस्पतिया भी विकसित नही हो पाते और नतीजा नदी मृत्यु की ओर बढने लगती है।
लेखक : जानिए पवन जी के बारे में |
सोमवार, 19 जनवरी 2015
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