राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पत्नी शुभ्रा का निधन |
नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की पत्नी शुभ्रा मुखर्जी का आज निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार थीं। रवींद्र संगीत की प्रतिष्ठित गायिका शुभ्रा 74 वर्ष की थी। उन्होंने आज सुबह 10 बजकर 51 मिनट पर आर्मी रिसर्च एंड रेफरल हास्पिटल में अंतिम सांस ली। वह 11 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहीं।
राष्ट्रपति भवन के प्रवक्ता वेणु राजमणि ने एक बयान में कहा, ‘ गहरे दुख के साथ यह सूचित किया जाता है कि देश की प्रथम महिला श्रीमती शुभ्रा मुखर्जी का आज सुबह (18 अगस्त 2015) को निधन हो गया । उनका स्वर्गवास सुबह 10 बजकर 51 मिनट पर हुआ।’ शुभ्रा मुखर्जी को सात अगस्त को आर्मी हास्पिटल में उस समय भर्ती कराया गया था जब उन्होंने सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी की शिकायत की थी। इसके बाद से ही उन्हें सघन उपचार कक्ष (आईसीयू) में रखा गया था।
शुभ्रा के परिवार में उनके पति, दो बेटे अभिजीत (कांग्रेस सांसद) और
इंद्रजीत और एक बेटी शर्मिष्ठा हैं। शार्मिष्ठा ने दिल्ली विधानसभा चुनाव
में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा था। हालांकि उन्हें जीत नहीं मिल पाई
थी। पत्नी के स्वास्थ्य की स्थिति की जानकारी मिलने के बाद मुखर्जी अपने
ओडिशा दौरे को बीच में रोक कर सात अगस्त को ही दिल्ली लौट आए थे। मुखर्जी
और शुभ्रा का विवाह 13 जुलाई 1957 में हुआ था। भारत की प्रथम महिला जेसोर
की हैं, जो कि अब बांग्लादेश में आता है। 10 साल की उम्र में वह कोलकाता आ
गई थीं।
25 जुलाई 2012 में प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति पद संभाले जाने की पूर्व संध्या पर शुभ्रा ने अपने पति के राजनीतिक करियर के इस गौरवपूर्ण क्षण में कहा था, ‘हम आजकल के जोड़ों की तरह नहीं है। यह रोमांस वाला रिश्ता नहीं है और हम अपनी भावनाओं को खुल्लमखुल्ला प्रकट नहीं करते।’ शुभ्रा का जन्म 17 सितंबर 1940 को जेसोर (अब बांग्लादेश में) हुआ था। उन्होंने स्नातक स्तर तक पढ़ाई की थी और वह भारत के राष्ट्रकवि गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर की बड़ी प्रशंसक थीं।
शुभ्रा रवींद्र संगीत की गायिका थीं और उन्होंने लंबे समय तक सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि यूरोप, एशिया और अफ्रीका में भी कवि की नृत्य-नाटिकाओं की प्रस्तुति दी थी। शुभ्रा ने ‘गीतांजलि ट्रूप’ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य रवींद्रनाथ टैगोर की विचारधारा का प्रचार उनके गीतों और नृत्य-नाटिकाओं के जरिए करना था। इस ट्रूप की सभी प्रस्तुतियों के निर्माण के पीछे वह एक मार्गदर्शक बल थीं।
संगीत के प्रति प्रेम रखने के अलावा शुभ्रा को चित्रकारी से भी लगाव था। बेहद कुशल चित्रकार शुभ्रा कई सामूहिक और एकल प्रदर्शनियों में अपने हुनर को प्रदर्शित कर चुकी हैं। वह अपनी मां को अपनी रचनात्मक प्रेरणा का स्रोत मानती थीं। उनकी मां भी एक चित्रकार थीं। शुभ्रा ने दो किताबें भी लिखी हैं। इनमें से एक किताब ‘चोखेर अलोए’ है, जो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनकी करीबी बातचीत का विवरण है। दूसरी किताब ‘चेना अचेनाई चिन’ है, जो कि उनकी चीन यात्रा का वृत्तांत है। शुभ्रा ने जब प्रथम महिला के तौर पर राष्ट्रपति भवन में कदम रखा था, तब वह अपने साथ अपना हारमोनियम और तानपुरा भी लाई थीं। ये वाद्ययंत्र उन्हें संगीत सम्राट डी एल रॉय ने भेंट किए थे।
25 जुलाई 2012 में प्रणब मुखर्जी द्वारा राष्ट्रपति पद संभाले जाने की पूर्व संध्या पर शुभ्रा ने अपने पति के राजनीतिक करियर के इस गौरवपूर्ण क्षण में कहा था, ‘हम आजकल के जोड़ों की तरह नहीं है। यह रोमांस वाला रिश्ता नहीं है और हम अपनी भावनाओं को खुल्लमखुल्ला प्रकट नहीं करते।’ शुभ्रा का जन्म 17 सितंबर 1940 को जेसोर (अब बांग्लादेश में) हुआ था। उन्होंने स्नातक स्तर तक पढ़ाई की थी और वह भारत के राष्ट्रकवि गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर की बड़ी प्रशंसक थीं।
शुभ्रा रवींद्र संगीत की गायिका थीं और उन्होंने लंबे समय तक सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि यूरोप, एशिया और अफ्रीका में भी कवि की नृत्य-नाटिकाओं की प्रस्तुति दी थी। शुभ्रा ने ‘गीतांजलि ट्रूप’ की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य रवींद्रनाथ टैगोर की विचारधारा का प्रचार उनके गीतों और नृत्य-नाटिकाओं के जरिए करना था। इस ट्रूप की सभी प्रस्तुतियों के निर्माण के पीछे वह एक मार्गदर्शक बल थीं।
संगीत के प्रति प्रेम रखने के अलावा शुभ्रा को चित्रकारी से भी लगाव था। बेहद कुशल चित्रकार शुभ्रा कई सामूहिक और एकल प्रदर्शनियों में अपने हुनर को प्रदर्शित कर चुकी हैं। वह अपनी मां को अपनी रचनात्मक प्रेरणा का स्रोत मानती थीं। उनकी मां भी एक चित्रकार थीं। शुभ्रा ने दो किताबें भी लिखी हैं। इनमें से एक किताब ‘चोखेर अलोए’ है, जो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ उनकी करीबी बातचीत का विवरण है। दूसरी किताब ‘चेना अचेनाई चिन’ है, जो कि उनकी चीन यात्रा का वृत्तांत है। शुभ्रा ने जब प्रथम महिला के तौर पर राष्ट्रपति भवन में कदम रखा था, तब वह अपने साथ अपना हारमोनियम और तानपुरा भी लाई थीं। ये वाद्ययंत्र उन्हें संगीत सम्राट डी एल रॉय ने भेंट किए थे।
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