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    मंगलवार, 18 अगस्त 2015

    प्रदेश के जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उठाया सख्त कदम |


    प्रदेश के जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने कहा है कि जब तक जन प्रतिनिधियोें, नौकरशाहों व अन्य उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों, न्यायाधीशों के बच्चे प्राइमरी स्कूलों में अनिवार्य रूप से नहीं पढ़ेंगे तब तक इन स्कूलोें की दशा नहीं सुधरेगी। हाईकोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव को आदेश दिया है कि वह अन्य अधिकारियों से परामर्श कर यह सुनिश्चित करें कि सरकारी, अर्द्धसरकारी विभागों के सेवकों, स्थानीय निकायोें के जन प्रतिनिधियों, न्यायपालिका एवं सरकारी खजाने से वेतन, मानदेय या धन प्राप्त करने वाले लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से बोर्ड द्वारा संचालित स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करें। ऐसा न करने वालों के खिलाफ दण्डात्मक उपबंध किये जाए।

     यदि कोई कान्वेंट स्कूल में अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजे तो उस स्कूल में दी जाने वाली फीस के बराबर धनराशि उसके द्वारा प्राप्त सरकारी खजाने में प्रतिमाह जमा करायी जाए। साथ ही ऐसे लोगांे इंक्रीमेंट, प्रोन्नति कुछ समय के लिए रोकने की व्यवस्था करने का आदेश देते हुए लागू किया जाए कोर्ट ने गणित व विज्ञान सहायक अध्यापकों की भर्ती की 1981 की नियमावली के नियम 14 के अन्तर्गत नये सिरे से अभ्यर्थियों की सूची तैयार करने का भी निर्देश दिया है तथा सूची में शामिल लोगों की नियुक्ति की जाए। कोर्ट ने मुख्य सचिव से छह माह बाद कृत कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने शिव कुमार पाठक कई अन्य की याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने सहायक अध्यापकों की भर्ती में 50 फीसदी सीधी व 50 फीसदी पदोन्नति से भर्ती के खिलाफ याचिकाओं पर हस्तक्षेप नहीं किया।

     कोर्ट ने प्रदेश के एक लाख 40 हजार जूनियर व सीनियर बेसिक स्कूलों में अध्यापकों के दो लाख 70 हजार खाली पदों सहित स्कूलों में पानी आदि मूलभूत सुविधाएं मुहैया न होने पर तीखी टिप्पणी की हैं। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में तीन तरह की शिक्षा व्यवस्था है। अंग्रेजी कान्वेंट स्कूल, मध्य वर्ग के प्राइवेट स्कूल तथा उ.प्र. बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा संचालित सरकारी स्कूल। अधिकारियों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए अनिवार्य न करने से इन स्कूलों की दुर्दशा है। इनमें न योग्य अध्यापक हैं और न ही मूलभूत सुविधा ले रहे बड़े लोगों के बच्चे अनिवार्य रूप से प्राथमिक शिक्षा के लिए जब तक ऐसे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ेंगे तब तक इनकी दशा में सुधार नहीं होगा। देश की आजादी के 65वर्ष बीत जाने के बाद भी इन स्कूलों मे मूलभूत सुविधाएं नहीं है। इसलिए सरकारी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों व राजकीय सहायता ले रहे लोगों के बच्चों को बोर्ड के स्कूलों में पढ़ाना अनिवार्य किया जाए।
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