जौनपुर शहर में गोमती तट पर स्थित इस दुर्ग का र्निमाण फिरोज शाह ने 1362 में कराया था। इस दुर्ग के भीतरी फाटक 26.5 फीट उंचा तथा 16 फीट चौड़ा है। केन्द्रीय फाटक 36 फीट उंचा है। इसके उपर एक विशाल गुम्बद बना है। वर्तमान में इसका पूर्वी द्वार तथा अन्दर की तरफ मेहराबे आदि ही बची है, जो इसकी भव्यता की गाथा कहती है। इसके सामने के शानदार फाटक को मुनीम खां ने सुरक्षा की दृष्टि से बनवाया था तथा इसे नीले एवं पीले पत्थरों से सजाया गया था। अन्दर तुर्की शैली का हमाम एवं एक मस्जिद भी है। इस दुर्ग से गोमती नदी एवं नगर का मनोहर दृश्य दिखायी देता है। इब्राहिम बरबक द्वारा बनवाई गई मस्जिद की बनावट में हिन्दु एवं बौद्ध शिल्प कला की छाप है.W.W. Hunter ने लिखा की गोमती के दखिनी किनारे पे बना किला एक टीले पे पत्थरों की दीवारों से बना किला है जिसमे बौद्ध और हिन्दू मदिरों से निकाले गए पथ्थरों का इस्तेमाल किया गया है |
किले में तुर्की हमाम जिसे भूलभुलैया भी कहा जाता है उसके करीब एक बंगाली तरीके की मस्जिद भी मौजूद है और उसी के पास एक मीनार है जिसपे इसे बनाने वाले इब्राहीम नयेब बर्बक का नाम १३७७ खुदा हुआ है |
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