डॉ लाल रत्नाकर जी दुनिया के मशहूर चित्रकार हैं जिन्हें न जाने कितने अवार्ड्स से अब तक नवाज़ा जा चुका है |
डॉ लाल रत्नाकर जी एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद में एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष चित्रकला विभाग, हैं |
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डॉ लाल रत्नाकर जी ने एक साक्षात्कारमें कहा था कि बचपन में कला दीर्घाओं के नाम पर पत्थर के कोल्हू की दीवारें, असवारी और मटके के चित्र, मिसिराइन के भित्ति चित्र आकर्षित ही नहीं, सृजन के लिए प्रेरित भी करते थे. गांव की लिपी-पुती दीवारों पर गेरू या कोयले के टुकड़े से कुछ आकार देकर जो आनंद मिलता था, वह सुख कैनवास पर काम करने से कहीं ज्यादा था. स्कूल की पढ़ाई के साथ-साथ रेखाएं ज्यादा सकून देती रहीं और यहीं से निकली कलात्मक अनुभूति की अभिव्यक्ति, जो अक्षरों से ज्यादा सहज प्रतीत होने लगी. एक तरफ विज्ञान की विभिन्न शाखाओं की जटिलता वहीं दूसरी ओर चित्रकारी की सरलता. ऐसे में सहज था चित्रकला का वरण. तब तक इस बात से अनभिज्ञता ही थी कि इस का भविष्य क्या होगा. जाहिर है, उत्साह बना रहा.ग्रेजुएशन के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और गोरखपुर विश्वविद्यालय में आवेदन दिया और दोनों जगह चयन भी हो गया. अंतत: गोरखपुर विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग में प्रवेश लिया और यहीं मिले कलागुरू श्री जितेन्द्र कुमार. सच कहें तो कला को जानने-समझने की शुरुवात यहीं से हुई. फिर कानपुर से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कलाकुल पद्मश्री राय कृष्ण दास का सानिध्य, श्री आनन्द कृष्ण जी के निर्देशन में पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोक कला पर शोध, फिर देश के अलग-अलग हिस्सों में कला प्रदर्शनियों का आयोजन...तो कला के विद्यार्थी के रुप में आज भी यह यात्रा जारी है. कला के विविध अछूते विषयों को जानने और उन पर काम करने की जो उर्जा मेरे अंदर बनी और बची हुई है, उनमें वह सब शामिल है, जिन्हें अपने बचपन में देखते हुए मैं इस संसार में दाखिल हुआ.
डॉ साहब एक सफल चित्रकार के साथ साथ एक कवी भी हैं और उनकी कविताएँ भी उनके चित्रों की तरह जीविन हैं | अपने वतन जौनपुर से उन्हें बहुत प्रेम है और अपने गाँव को आज भी याद करते नहीं थकते | जब भी समय मिलता है अपने गाँव अपनों के बीच समय बिताने आ जाया करते हैं | देखिये अपनी इस कविता में कैसे उन्होंने अपने गाँव को याद किया है |
यादों में बसा गाँव, साँसों में बसा गाँव
अपनों से भरा गाँव, एहसाश भरा छाँव .
अपनों से भरा गाँव, एहसाश भरा छाँव .
उम्मीदों से भरा गाँव, गोबर से सना गाँव
मडहों से सजा गाँव, खलिहानों से भरा गाँव
मडहों से सजा गाँव, खलिहानों से भरा गाँव
पुरवट से सिंचाई, फसलों की दौरिआहि
हेंगा की सवारी, भैसों की चरवाही .
हेंगा की सवारी, भैसों की चरवाही .
बकरी का औषधि दूध, गदहे की सौम्य पीठ
खेतों की रखवाली, घस्छोलानियों की चिरौरी
खेतों की रखवाली, घस्छोलानियों की चिरौरी
गन्नों से सजे खेत, गदराये हुए खेत
ताजे अनाजों से सुबहा ही भरे पेट
ताजे अनाजों से सुबहा ही भरे पेट
बागों की छैयां में, गोंदी हो मैया की
खटिया हो भैया की, भौजी का आक्रोश
खटिया हो भैया की, भौजी का आक्रोश
चूल्हे की पकी रोटी, कितनी ही ओ मोटी
माँ की कछरी की, ललछौं लिए दही की
माँ की कछरी की, ललछौं लिए दही की
चूनी की रोटी की, चोटे की फजीहत की
गुड की मारामारी, जलेबी की खरीददारी
गुड की मारामारी, जलेबी की खरीददारी
नदिया में नहाने की, हर खेल में हार जाने की
घर में मार खाने की, बाबूजी के सामने आने की
घर में मार खाने की, बाबूजी के सामने आने की
भैसों को नहलाने की, नदी में डूब जाने की
पेड़ों पे चढ़ जाने की, कई बार गिरने की
पेड़ों पे चढ़ जाने की, कई बार गिरने की
बहुत याद आती है गुजरे हुए जमाने की
अब गाँव न जा पाने की और शहरी न हो पाने की
अब गाँव न जा पाने की और शहरी न हो पाने की
यादों में बसा गाँव, साँसों में बसा गाँव
अपनों से भरा गाँव, एहसाश भरा छाँव
अपनों से भरा गाँव, एहसाश भरा छाँव
लेकिन अपने गाँव की बदहाली पे दुखी भी होते हैं | दखी डॉ लाल जी का मन अपने गाँव की बदहाली को कैसे बयां कर रह है |
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का .......डॉ.लाल रत्नाकर
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
क्या क्या दर्ज करूं ?
प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का
या सरकारी बंदोबस्त !
या सरकारी बंदोबस्त !
सड़कें, बिजली, पानी का
या स्वास्थ्य जनित इंतजामों का
या स्वास्थ्य जनित इंतजामों का
झोला छाप डाक्टरों का
या लम्पट नेतागिरी का
या लम्पट नेतागिरी का
जन्म मृत्यु के पहरेदारों
या सरकारी हिस्सेदारी का
या सरकारी हिस्सेदारी का
नात-बात या अपनों का
किसकी बात करूं
किसकी बात करूं
जिनको देखो वही सुखी हैं
या सुख का नाटक करते हैं
या सुख का नाटक करते हैं
अपने अपने छाँट छाँट कर
सम्बन्ध जताते हैं
सम्बन्ध जताते हैं
भाई बंदी गुजर गयी है
किसी जमाने में
किसी जमाने में
अब जो नयी संस्कृति आयी
गाँवोँ की हिस्सेदारी में
गाँवोँ की हिस्सेदारी में
आयातीत है, देशी है,या
परदेश से आयी है !
परदेश से आयी है !
सरकारी है या उधार की
करमचारिणी विचारी है
करमचारिणी विचारी है
स्कूलों में, हस्पतालों में
उसकी जो कारगुजारी है
उसकी जो कारगुजारी है
अच्छे अच्छे गुजर जा रहे
इनके इंतजामों से
इनके इंतजामों से
ये विकास के सरकारी नाटक
दर्ज करूं ! या ....
दर्ज करूं ! या ....
माँ बाप तो ज़िंदा हैं
पर दुःख के मारे हैं
पर दुःख के मारे हैं
नौजान के हाल देखकर
हलाकान संरक्षक हैं
हलाकान संरक्षक हैं
मेहनतकश के मेहनत की
कीमत सरकारी है
कीमत सरकारी है
मोबाइल पर खबर मिली है
वो बेहद दुखदायी है
वो बेहद दुखदायी है
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
क्या क्या दर्ज करूं ?
गाय भैंस के गोबर का
या दूध दही की मार्केटिंग का
या दूध दही की मार्केटिंग का
स्कूलों के उन्नतीकरण का
या बढ़ते पब्लिक स्कूलों का
या बढ़ते पब्लिक स्कूलों का
गाँवो के उन्नतिकरण का
या शहरी होने का
या शहरी होने का
भाईचारा या अपनेपन में
हिस्सेदारी का
हिस्सेदारी का
ये लेखा इतना विकट हो गया
भाई हिस्सेदारी का
भाई हिस्सेदारी का
बाबूजी फिर खड़े हो गए
आखिर सबकुछ खोने पर
आखिर सबकुछ खोने पर
रोते रोते बयां कर रहे
देखो मैं तो जिन्दा हूँ
देखो मैं तो जिन्दा हूँ
बच्ची तुम अब फिकर न करना
मैं यूँ ही खड़ा रहूँ
मैं यूँ ही खड़ा रहूँ
कौन बताये उनको अब ये
बैशाखी टूट गयी
बैशाखी टूट गयी
इसी व्यवस्था ने छिनी है
जिनकी खुशियों को
जिनकी खुशियों को
आश सांत्वना दे रहे हैं
हम उसी विचारी को।
हम उसी विचारी को।
हे गाँव तुम्हारी बदहाली का
क्या क्या दर्ज करूं ?
क्या क्या दर्ज करूं ?
हम जौनपुर वासियों को डॉ लाल जैसे बहु-प्रतिभाशाली कलाकार पे नाज़ है | डॉ लाल रत्नाकर जी के बारे में अधिक जानकारी के लिए उनके ब्लॉग और वेबसाईट पे जाएं |
पेशकर्ता : एस एम् मासूम
रत्नाकर जी हमारे शहर गाजियाबाद के भी चहेते हैं. इसे कलाक्षेत्र बनाने में उनकी भूमिका बहुत बड़ी है. मैं उन्हें इस अवसर पर बधाई देता हूं.
जवाब देंहटाएंरत्नाकर जी एक बहुत ही उम्दा इन्सान हैं। और इनकी कलाकृतियाँ गाँव के जीवन को बख़ूबी बयान करती हैं।
जवाब देंहटाएं