वामिग़ जौनपुरी का नाम और कलाम आज पूरी दुनिया में मशहूर है | वामिग़ साहब का जन्म जौनपुर के कज्गाव में २३ अक्टूबर १९२३ में हुआ और उनकी शिक्षा लखनऊ यूनिवर्सिटी से पूरी हुयी जहां से उन्होंने BA, LLB किया | उनका पूरा नाम अहमद मुजतबा जैदी अल वास्ती था |अह्लेबय्त की शान में कलाम कहना उनका शौक था | 21 नवम्बर १९९८ को उनका देहांत हुआ | आज भी जौनपुर में उनके बड़े मुरीद मौजूद हैं |उनकी कुछ किताबें आप भी पढ़ें |
Chikhe.n ,Jaras,Shab Chiragh, Safar-E-Natamam
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Chikhe.n ,Jaras,Shab Chiragh, Safar-E-Natamam
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Sajda kar ke qadam-e-yaar pe qurbaan hona
Yun likha tha meri qismat pe musalmaan hona
Kalaam - Wamiq Jaunpuri Sahab
आज की शाम है किस दर्जा हसीं, कितनी उदास
हो भरी बज़्म में तन्हाई का जैसे एहसास
उठने ही वाला है फिर क्या कोई तूफ़ान नया
फिर तबियत हुई जाती है ज्यादा हस्सास*
[hassas/hissas=sentimental, touchy, emotional]
आज क्यूं उनमें नहीं जुर्रत-ए-ताज़ीर* कि हम
मुन्तजिर कब से खड़े हैं रसन-ओ-दार** के पास
[tazeer=punish] [daar-o-rasan or rasan-o-dar meaning=hanging by rope, gallows]
उनसे नज़रें जो मिलाईं तो खतावार हैं हम
और अगर बज़्म से उठ जाएँ तो ना-कद्र-शिनास
दिल लरजता है की वोह वक़्त न आये वामिक
गम में होने लगे जब लज्ज़त-ए-गम का अहसास
---------वामिक जौनपुरी
aaj kii shaam hai kis darja hasiiN, kitnii udaas
ho bharii bazm meN tanhaaii ka jaise ehsaas
uThne hii vaala hai phir kyaa koii tuufaaN nayaa
phir tabiat huii jaati hai zyaada hassaas
aaj kyuuN unmeN nahiiN jurrat-e-taaziir ki ham
muntazir kab se khaRe haiN rasan-o-daar ke paas
unse nazreN jo milaaiiN to khataa-vaar haiN ham
aur agar bazm se uTh jaayeN to naa-qadr shinaas
dil laraztaa hai ki voh vaqt na aaye Wamiq
Gham meN hone lage jab lazzat-e-gham ka ehsaas
-------Wamiq Jaunpuri
tujh se mil ke dil me.n rah jaatii hai aramaano.n kii baat
tujh se mil ke dil me.n rah jaatii hai aramaano.n kii baat
yaad rahatii hai kise saahil pe tuufaano.n kii baat
[saahil = shore]
vo to kahiye aaj bhii zanjiir me.n jhankaar hai
varnaa kis ko yaad rah jaatii hai diivaano.n kii baat
kyaa kabhii hogii kisii kii tuu magar ai zindagii
jaan de kar ham ne rakh lii tere diivaano.n kii baat
bazm-e-anjum ho ke bazm-e-Khaak-taa-bazm-e-Khayaal
jis jagah jaao sunaa_ii degii insaano.n kii baat
[bazm-e-anjum = gathering of stars; bazm-e-Khaak = wilderness]
[taa = from...to; bazm-e-Khayaal = imagination]
phuul se bhii narm-tar 'Wamiq' kabhii apanaa kalaam
aur kabhii talavaar ham aashuftaa_saamaano.n kii baat
[narm-tar = softer than; kalaam = talk/writing]
[aashuftaa = of distressed mind]
तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात
याद रहती है किसी साहिल पे तूफ़ानों की बात
वो तो कहिए आज भी ज़ंजीर में झंकार है
वर्ना किस को याद रह जाती है दीवानों की बात
क्या न थी तुम को ख़बर ऐ कज-कलाहान-ए-बहार
बू-ए-गुल के साथ ही फैलेगी ज़िंदानों की बात
ख़ैर हो मेरे जुनूँ की खिल गए सदहा गुलाब
वर्ना कोई पूछता ही क्या बयाबानों की बात
क्या कभी होती किसी की तू मगर ऐ ज़िंदगी
ज़हर पी कर हम ने रख ली तेरे दीवानों की बात
रिश्ता-ए-याद-ए-बुताँ टूटा न तर्क-ए-इश्क़ से
है हरम में अब भी ज़ेर-ए-लब सनम-ख़ानों की बात
हम-नशीं उस के लब ओ रुख़्सार हों या सैर-ए-गुल
तज़्किरा कोई भी हो निकलेगी मय-ख़ानों की बात
बज़्म-ए-अंजुम हो कि बज़्म-ए-ख़ाक या बज़्म-ए-ख़याल
जिस जगह जाओ सुनाई देगी इंसानों की बात
इब्न-ए-आदम ख़ोशा-ए-गंदुम पे है माइल-ब-जंग
ये न है मस्जिद का क़िस्सा और न बुतख़ानों की बात
फूल से भी नर्म-तर 'वामिक़' कभी अपना कलाम
और कभी तलवार हम आशुफ़्ता-सामानों की बात
तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात
याद रहती है किसी साहिल पे तूफ़ानों की बात
वो तो कहिए आज भी ज़ंजीर में झंकार है
वर्ना किस को याद रह जाती है दीवानों की बात
क्या न थी तुम को ख़बर ऐ कज-कलाहान-ए-बहार
बू-ए-गुल के साथ ही फैलेगी ज़िंदानों की बात
ख़ैर हो मेरे जुनूँ की खिल गए सदहा गुलाब
वर्ना कोई पूछता ही क्या बयाबानों की बात
क्या कभी होती किसी की तू मगर ऐ ज़िंदगी
ज़हर पी कर हम ने रख ली तेरे दीवानों की बात
रिश्ता-ए-याद-ए-बुताँ टूटा न तर्क-ए-इश्क़ से
है हरम में अब भी ज़ेर-ए-लब सनम-ख़ानों की बात
हम-नशीं उस के लब ओ रुख़्सार हों या सैर-ए-गुल
तज़्किरा कोई भी हो निकलेगी मय-ख़ानों की बात
बज़्म-ए-अंजुम हो कि बज़्म-ए-ख़ाक या बज़्म-ए-ख़याल
जिस जगह जाओ सुनाई देगी इंसानों की बात
इब्न-ए-आदम ख़ोशा-ए-गंदुम पे है माइल-ब-जंग
ये न है मस्जिद का क़िस्सा और न बुतख़ानों की बात
फूल से भी नर्म-तर 'वामिक़' कभी अपना कलाम
और कभी तलवार हम आशुफ़्ता-सामानों की बात
वामिग़ जौनपुरी साहब को बहुत से अवार्ड मिले जिनमे से
: SOVIET LAND NEHRU AWARD
: IMTIYAZ-E-MEER (MEER ACADEMY, LUCKNOW)
ख़ास हैं |
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