जौनपुर। सूर्य उपासना के पर्व डाला छठ पर व्रती महिलाओं ने मंगलवार की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जिसके पहले गोमती सहित अन्य नदियों, तालाबों, पोखरों के किनारे सहित जलाशयों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर बेदी बनाकर महिलाओं ने विधिपूर्वक पूजा अर्चन किया। इसके पूर्व बीती रात को नहायदृखाय के बाद माताओं ने पुत्रों के यशस्वी व दीर्घजीवी के लिये व्रत का शुभारम्भ किया। गन्ने के रस अथवा गुड़ की खीर बनाने के बाद देवकरी में रखकर हवन किया जिसके बाद उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। महिलाओं ने बांस की बनी बड़ी टोकरी में अगरबत्ती, धूप, देशी घी, मिट्टी के दीपक, बर्तन के अलावा फल, गेहूं के आटे, गुड़, ठेकुआ को वेदी पर रखने के साथ नारियल को कपड़े में लपेटकर सूप में रखा। घर से महिलाएं गीत गातीं पूजास्थलों पर पहुंचकर बेदी बनाकर पूजा कीं। तत्पश्चात् पानी में गन्ने को गाड़कर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर चली गयीं। लोगों के अनुसार डाला छठ पूजा सूर्योपासना का महापर्व है जो 4 दिवसीय होता है। सूर्य के व्रत में मामूली चूक भी क्षम्य नहीं, इसलिये पवित्रता का विशेष ख्याल रखा जाता है। नगर के विसर्जन घाट, गोपी घाट, हनुमान घाट, केरारवीर घाट, मां अचला देवी घाट, सूरज घाट, गूलर घाट, गोकुल घाट सहित अन्य घाटों पर व्रती महिलाओं की भीड़ रहीं जहां बच्चे पटाखे छुड़ाकर आनन्द लिये। नगर के गोपी घाट पर श्री संकट मोचन संगठन के कार्यकर्ताओं ने प्रकाश, सफाई आदि की विशेष व्यवस्था किया था जहां लगाये गये ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से मेले का संचालन हो रहा था। गोपी घाट की व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि किसी को कोई परेशानी नहीं हुई। वह विसर्जन घाट पर भी अच्छी व्यवस्था रही।
गोमती किनारे ऐसे मनाया गया सूर्य उपासना का पर्व डाला छठ|
जौनपुर। सूर्य उपासना के पर्व डाला छठ पर व्रती महिलाओं ने मंगलवार की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अर्घ्य दिया जिसके पहले गोमती सहित अन्य नदियों, तालाबों, पोखरों के किनारे सहित जलाशयों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर बेदी बनाकर महिलाओं ने विधिपूर्वक पूजा अर्चन किया। इसके पूर्व बीती रात को नहायदृखाय के बाद माताओं ने पुत्रों के यशस्वी व दीर्घजीवी के लिये व्रत का शुभारम्भ किया। गन्ने के रस अथवा गुड़ की खीर बनाने के बाद देवकरी में रखकर हवन किया जिसके बाद उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। महिलाओं ने बांस की बनी बड़ी टोकरी में अगरबत्ती, धूप, देशी घी, मिट्टी के दीपक, बर्तन के अलावा फल, गेहूं के आटे, गुड़, ठेकुआ को वेदी पर रखने के साथ नारियल को कपड़े में लपेटकर सूप में रखा। घर से महिलाएं गीत गातीं पूजास्थलों पर पहुंचकर बेदी बनाकर पूजा कीं। तत्पश्चात् पानी में गन्ने को गाड़कर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घर चली गयीं। लोगों के अनुसार डाला छठ पूजा सूर्योपासना का महापर्व है जो 4 दिवसीय होता है। सूर्य के व्रत में मामूली चूक भी क्षम्य नहीं, इसलिये पवित्रता का विशेष ख्याल रखा जाता है। नगर के विसर्जन घाट, गोपी घाट, हनुमान घाट, केरारवीर घाट, मां अचला देवी घाट, सूरज घाट, गूलर घाट, गोकुल घाट सहित अन्य घाटों पर व्रती महिलाओं की भीड़ रहीं जहां बच्चे पटाखे छुड़ाकर आनन्द लिये। नगर के गोपी घाट पर श्री संकट मोचन संगठन के कार्यकर्ताओं ने प्रकाश, सफाई आदि की विशेष व्यवस्था किया था जहां लगाये गये ध्वनि विस्तारक यंत्र के माध्यम से मेले का संचालन हो रहा था। गोपी घाट की व्यवस्था इतनी सुदृढ़ थी कि किसी को कोई परेशानी नहीं हुई। वह विसर्जन घाट पर भी अच्छी व्यवस्था रही।
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