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    बुधवार, 1 अप्रैल 2015

    जौनपुर में नवरात्री पे दर्शनार्थियों की भीड़|

    नवरात्रि संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है नौ रातें ।नवरात्रि के नौ रातो में तीन देवियों - महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वतीया सरस्वतीकि तथा दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं ।
    नौ देवियाँ है :-श्री शैलपुत्री,श्री ब्रह्मचारिणी,श्री चंद्रघंटा,श्री कुष्मांडा,श्री स्कंदमाता,श्री कात्यायनी,श्री कालरात्रि,श्री महागौरी,श्री सिद्धिदात्री| शक्ति की उपासना का पर्व शारदेय नवरात्र प्रतिपदा से नवमी तक निश्चित नौ तिथि, नौ नक्षत्र, नौ शक्तियों की नवधा भक्ति के साथ सनातन काल से मनाया जा रहा है। सर्वप्रथम श्रीरामचंद्रजी ने इस शारदीय नवरात्रि पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवें दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की । तब से असत्य, अधर्म पर सत्य, धर्म की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाने लगा।आदिशक्ति के हर रूप की नवरात्र के नौ दिनों में क्रमशः अलग-अलग पूजा की जाती है। माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली हैं। इनका वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर ही आसीन होती हैं । नवरात्रि के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है।
    नवरात्र के पहले दिन पूजाघर में मिट्टी का एक तख्त बनाया जाता है जिसमें जौं बोए जाते हैं। ये तीन दिन शक्ति और ऊर्जा की देवी मां दुर्गा को समर्पित होते हैं। तीसरे दिन से छ्टे  दिन तक में शांति और धन-सौभाग्य की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।नवरात्र के 7वें और 8वें दिनों में मां सरस्वती की पूजा-अर्चना की जाती है जो ज्ञान और आध्यात्म की प्रतीक हैं। ज्ञान एवम् आध्यात्म सांसारिक मोह-माया से हमारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आठवें दिन यज्ञ किया जाता है| महानवमी के दिन  रंगबिरंगे, ऊर्जा से भरपूर पर्व का समापन महानवमी को होता है। इस दिन कन्या पूजा की जाती है। नौ कुंवारी कन्याओं को भोजन कराया जाता है। इन नौ कन्याओं की पूजा मां के नौ रूप मानकर की जाती है। दशमी को दशहरा मनाया जाता है जो असत्य पे सत्य की वियक का प्रतीक है |
     
    जौनपुर में मां दुर्गा की पूंजा पूरे आस्था और विश्वास के साथ किया किया जाता हैं। पूरे जिले में 500 से अधिक पंडालों में मां की स्थापना कर लोग पूरे नवरात्रि भर पूंजा पाठ करते हैं। इन मूर्तियों को बनाने के लिए मूर्तिकार जून महीने में ही बंगाल से आकर यहां डेरा डाल देते हैं। कारीगर करीब चार महीने दिन रात कड़ी मेहनत करते हैं और अपने जादूगरी हाथों से मिट्टी,घास फूस और बास की खरपच्चीयों को तरासकर उसमें जान डालने का काम करते हैं। मूर्ति बड़ी हो या छोटी सभी बोलने की मुद्रा में ही दिखाई देती हैं। पहले दिन से लेकर नवमी तक मां के दर्शन पूंजन के लिए भक्तों का जन सैलाब उमड़ने की सिलसिला भी जारी रहता है |ख़ास कर के शाम होते ही शाम होते ही सड़क दर्शनार्थियों से भर जाती है |पेश है जौनपुर के कुछ इलाकों की नवरात्रि की तस्वीरिन आप भी दर्शन करें |




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    एस एम् मासूम

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