गतांक से आगे...... अब तक के उत्खनन के आधार पर मेरी पिछली पोस्ट में इस संभावना की ओर इशारा किया गया था कि संभव है कि आज से करीब २५०० वर्ष पूर्व यहाँ एक नगरीय और विकसित संस्कृति स्थापित थी .इस दिशा में कुछ आरंभिक संकेत मिलनें भी लगे है . करीब दो उत्खनित स्थल पर रिंग बेल का प्रमाण मिला है.यह रिंग बेल प्राचीन भारत में सोखताके रूप में इस्तेमाल में लाया जाता था जहाँ गंदे पानी आदि को इकट्ठा किया जाता रहा होगा।उस समय में यह रिंग बेल मिट्टी को गूंथ कर और फिर आग में पका कर इस्तेमाल में लाये जाते थे। चित्र में देखिये रिंग बेल के अवशेष...
उत्खनन में प्राप्त हो रहे अन्य पुरावशेष.......
उत्खनन में तल्लीन,कहीं चूक न हो जाये...

इतिहास को प्रगट करनें वाले मील के पत्थर ---श्री श्यामलाल,श्री हरिलाल ,श्री शेषमणि और श्री रामअनुज (सभी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग से पिछले तीन दशकों से जुड़े है.)
इतिहास अनुसन्धान पर अपनी जबरदस्त पकड़ रखनें वाले टीम के दो सबसे बुजुर्ग सेनानी -श्री राम लखन और श्री राम खेलावन जो पिछले कई दशकों से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के हर उत्खनन अभियान के साक्षी रहे है ..
इस पुरातात्विक अनुसन्धान के प्रति अपनी जिज्ञासा और उत्खनन स्थल का निरीक्षण करने अभी तक जिला कलेक्टर श्री गौरव दयाल,सिटी मजिस्ट्रेट श्री बाल मयंक मिश्र ,उपजिलाधिकारी मछलीशहर एस मधुशालिनी , क्षेत्राधिकारी श्री आनन्द कुमार, उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉ.जे प्रसाद, उत्तर प्रदेश राज्य पुरातत्व निदेशक डॉ राकेश तिवारी , इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर .जे .एन पाल सहित इतिहास -अनुसन्धान में रूचि रखने वाले काफी लोंगो ने उत्खनित स्थल का निरीक्षण किया है. प्रदेश के संस्कृति मंत्री श्री सुभाष पाण्डेय जी जिनका निवास भी मुंगराबादशाहपुर में ही है ,इस उत्खनन को लेकर अति उत्साह में है उन्होंने तीन बार उत्खनित स्थल का निरीक्षण किया और आगे के उत्खनन के लिए एक लाख रुपये अपने पास से सहायता देने की घोषणा कर दी है।
इस सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता है कि नदियों के किनारों पर बसे प्राचीन ब्यवसायिक पडाव
जल यातायात की बहुलता के चलते कालान्तर में नगर में तब्दील हो गए.निश्चित रूप से सई नदी के समीप बसे इस नगर को प्राचीन काल में अपनी मनोहारी छटा के चलते इसका फायदा मिला हो तथा तत्कालीन भारत में जल यात्रा का यह महत्त्वपूर्ण पड़ाव रहा हो जहाँ ब्यापार -विनिमय में संलग्न ब्यापारी अपना पड़ाव बनाते रहें हों और जिस कारण यह नगर एक प्रमुख ब्यापारिक प्रतिष्ठान के रूपमें स्थापित रहा होगा .इस जनपद के सुदूरवर्ती स्थलों ,जहाँ आज भी आवागमन की बहुलता नहीं हुईहै ,वहां ऐसे साक्ष्यों की उपलब्धता अवश्य हो सकती है जिससे यह निश्चित रूप से सिद्ध किया जा सके कि प्राचीन भारत में जौनपुर ब्यापार का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव था इसके अलावा जनपद के पूर्वी ,पश्चमी एवं उत्तरी छोरों पर कुछ चुनिन्दा स्थल भी पुरातात्त्विक उत्खननों की प्रतीक्षा में हैं , जौनपुर के क्रमबद्ध इतिहास लेखन के लिए बगैर ठोस साक्ष्यों के ,संकेतक साक्ष्य आज भी बेमानी प्रतीत हो रहें हैं . आज तो पुरातत्व उत्खनन के लिए हमारे पास विकसित और समुन्नत तकनीक है ,यदि भविष्य में जौनपुर के चुनिन्दा स्थलों पर पुरातात्विक उत्खनन संपादित करवा दिए जाएँ तो उत्तर भारत का इतिहास ही नहीं अपितु प्राचीन भारतीय इतिहास के कई अनसुलझे सवालों का जबाब भी हमें यहीं से मिल जायेगा ।
फिलहाल बारिश के चलते उत्खनन कार्य में अवरोध हो रहा है ,अनुसन्धान की अगली गाथा फिर कभी...... Dr. Manoj Mishra
http://manjulmanoj.blogspot.com/2011/06/blog-post.html
डॉ मनोज मिश्रा जी आप का जितना भी शुक्रिया अदा किया जाए कम है इस बेहतरीन रिपोर्ट के लिए. आप का काम अपने वतन जौनपुर के लिए सराहनीय है.
जवाब देंहटाएं