पूरे पूर्वाचल में आस्था व विश्वास के केन्द्र के रूप में जौनपुर के मां शीतला देवी चौकिया धाम का महत्व ही निराला है। सात देवियों में मां शीतला सबसे छोटी है लेकिन इनका स्थान इन सभी मे सबसे प्रमुख है। मां के दर्शन के लिये हर सोमवार व शुक्रवार को युं तो भारी भीड़ होती है, लेकिन अगर मौका नवरात्र ाका हो तो श्रद्धालुओ का तांता देर रात तक मां के दर पर नजर आता है। कहा जाता है कि यहां के दर्शन के बाद ही मैहर देवी, वैष्णों देवी व विध्यवासिनी देवी का दर्शन सफल होता है।
जौनपुर मंे राजकीय राजमार्ग संख्या पांच पर स्थित मां शीतला देवी का भव्य मंदिर और तालाब है। यूं तो पूरे वर्ष यहां दर्शनार्थियों का हुजूम देखा जा सकता है, लेकिन नवरात्र के समय लाखों भत्क दूर-दराज से आकर मां का दर्शन करते है। वैसे पूरे भारत में मां शीतला देवी के मंदिर है लेकिन चौकिया धाम मंदिर का महत्व अलग है। अन्य मंदिरों से अलग इसे शत्कि पीठ का दर्जा प्राप्त है। नवरात्र के समय से ही हाथो में नारियल व चुनरी का चढ़ावा लिये दर्शनार्थियों की भारी भीड़ हो जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां शीतला सात देवी बहनों में सबसे छोटी हैं। लेकिन इनका स्थान सभी में सबसे ऊंचाा है। यही वजह है कि यहां आने के बाद ही अनय देवीयों का दर्शन करने जाते है। यहां के महत्व को बताते हुए मंदिर के पंडा बताते है कि। मां शीतला की सवारी गधा है, और उनके हाथ में झाड़ व कलश ही अस्त्र के रूप मे रहता हैा। शाषत्रों में लिखा है मां शीतला झाड़ से असध्य रोगो का नाश करती हैं और कलश मंे भरे शीतल जल से शीतलता फैलती है।
जौनपुर मंे राजकीय राजमार्ग संख्या पांच पर स्थित मां शीतला देवी का भव्य मंदिर और तालाब है। यूं तो पूरे वर्ष यहां दर्शनार्थियों का हुजूम देखा जा सकता है, लेकिन नवरात्र के समय लाखों भत्क दूर-दराज से आकर मां का दर्शन करते है। वैसे पूरे भारत में मां शीतला देवी के मंदिर है लेकिन चौकिया धाम मंदिर का महत्व अलग है। अन्य मंदिरों से अलग इसे शत्कि पीठ का दर्जा प्राप्त है। नवरात्र के समय से ही हाथो में नारियल व चुनरी का चढ़ावा लिये दर्शनार्थियों की भारी भीड़ हो जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मां शीतला सात देवी बहनों में सबसे छोटी हैं। लेकिन इनका स्थान सभी में सबसे ऊंचाा है। यही वजह है कि यहां आने के बाद ही अनय देवीयों का दर्शन करने जाते है। यहां के महत्व को बताते हुए मंदिर के पंडा बताते है कि। मां शीतला की सवारी गधा है, और उनके हाथ में झाड़ व कलश ही अस्त्र के रूप मे रहता हैा। शाषत्रों में लिखा है मां शीतला झाड़ से असध्य रोगो का नाश करती हैं और कलश मंे भरे शीतल जल से शीतलता फैलती है।
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