शामबेग मज़ार ख़ास हौज़ |

क़ुलीच खान जमा ने शाहबेग को अलग तो किया लेकिन शाहबेग को उसने इतनी आज़ादी दे दी थी की वो उसके एकांत के समय में भी साथ रहता था | उसकी आदत यह हो गयी थी वो उन सरदारों जिनके हवाले क़ुलीच खान ने उसे किया था उनके भी एकांत के समय में साथ रहने की आज़ादी चाहता था और मौक़ा मिलते ही उनकी पत्नियों के साथ भी आज़ादी की मांग करता |
एक जागीरदार अब्दुर्रहमान जो शाहमबेग से प्रेम करने लगा था और उसने वादा किया की वो उसको वही आज़ादी देगा जो क़ुलीच खान ने दी थी लेकिन कुछ समय बाद उसे धोका दे दिया ने तो शाहम बेग से उसका एक युद्ध हुआ जिसमे शाहम बेग मारा गया | शाहम बेग के शव को अली क़ुलीच खान जौनपुर ले आया और बड़े प्रेम से एक मक़बरा बनाया और ख़ास हौज़ के एक टीले पे दफन कर दया | मक़बरा तो आज टूट चुका है लेकिन समाधी आज भी मौजूद है |
जौनपुर के शासक कुळीच खान और एक सुंदर युवक शाहबेग के प्रेम की निशानी है यह खास हौज़ चित्रसारी पे बानी शाहबेग की मज़ार जिसपे उनकी शान पे फ़ारसी में लिखवाया गया है |
जौनपुर के शासक कुळीच खान और एक सुंदर युवक शाहबेग के प्रेम की निशानी है यह खास हौज़ चित्रसारी पे बानी शाहबेग की मज़ार जिसपे उनकी शान पे फ़ारसी में लिखवाया गया है |

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