728x90 AdSpace

This Blog is protected by DMCA.com

DMCA.com for Blogger blogs Copyright: All rights reserved. No part of the hamarajaunpur.com may be reproduced or copied in any form or by any means [graphic, electronic or mechanical, including photocopying, recording, taping or information retrieval systems] or reproduced on any disc, tape, perforated media or other information storage device, etc., without the explicit written permission of the editor. Breach of the condition is liable for legal action. hamarajaunpur.com is a part of "Hamara Jaunpur Social welfare Foundation (Regd) Admin S.M.Masoom
  • Latest

    बुधवार, 24 जून 2020

    लोक साहित्यकारा मिलन सिंह मधुर का साक्षात्कार

    एक साहित्यकार तो जीवनभर साहित्य साधना करता रहता है। :


    समय समय पे जौनपुर की प्रतिभाओं से हमारा जौनपुर सोशल वेलफेयर फाउंडेशन के प्लेटफॉर्म के माध्यम से आप  सभी पाठको को रूबरू करवाता  रहता हूँ इसी कड़ी में आज पेश है जौनपुर निवासी लोकसाहित्यकारा मिलन सिंह मधुर जिनकी कर्म  भूमि दिल्ली है | आप भी पढ़ें मिलन सिंह मधुर  का हमारा जौनपुर से सवाल जवाब और जानिए उनके बारे में विस्तार से |  एस एम मासूम 

    मिलन सिंह मधुर


    *आपने साहित्य संसार में कैसे प्रवेश किया?आप लोकसाहित्य और महिला सशक्तिकरण किस रूप में देखती हैं?

    * बहुत सुंदर प्रश्न पूछा आपने आप तो जानते ही हैं साहित्य सृजन करना हँसी -खेल नहीं है।मेरा तो यही मानना है कि साहित्य सृजन ईश्वर द्वारा प्रदत्त वरदान है जो मुझे जन्म से ही प्राप्त है।मेरे पिताजी इतिहास के अध्यापक होने के साथ -संगीत में गहरी रुचि रखते थे ।कई बार वे गीत रचकर उसकी धुन बनाकर हारमोनियम तबले पर रियाज करते थे जिसे देखकर मेरे बालमन में भी प्रेरणा जगती थी पर मैंने कभी उनसे प्रगट नहीं किया क्योंकि उस समय लड़कियों को यह छूट नहीं थी । माताजी बहुत ही सुंदर लोकगीत गाती थीं वह अपने साथ हम बहनों को भी गाने का अवसर देती थीं जिससे मेरी लोकगीतों में रुचि जगी।लोकसाहित्य को महिलासशक्तिकरण के लिए मैं एक सशक्त अस्त्र मानती हूँ ।लोकसाहित्य लोकजीवन में रचा -बसा है ।लोकसाहित्य जन जागरण का एक प्रभावी तरीका है ।लोकसाहित्य के माध्यम से महिलासशक्तिकरण की अलख जगाई जा सकती है इसका मैने सफल प्रयोग भी किया है।किसी धार्मिक अवसर पर मुहल्ले की महिलाएँ भजन आदि गाती हैं तो उसमें मैं अपना स्वरचित लोकगीत गाती थी उससे प्रभावित हो निरक्षर महिलाएँ मुझसे जुड़ी और 2014 से अब तक मैने आसपास की 35 महिलाओं को लिखना पढ़ना सिखाया ।मुझे उनकी आँखों की चमक देख एक अलग ही संतुष्टि मिलती है।यह तो छोटे पैमाने पर था महिलाओं के लिए इससे भी बड़ा कार्य किया जा सकता है।

    *आप प्रगति और परंपरा में किस प्रकार समन्वय बनाती हैं?

    *हमारी पीढ़ी आधुनिक भी है और पारंपरिक भी है इसका मूल कारण है हमने जाँता ,ओखली, कुआँ खेत खलिहान देखा है ।परंपराओं में  मेरा गहरा विश्वास है रुढ़ियों में नहीं ।मैं अपनी सामाजिक और पारिवारिक परंपराओं के पालन में आज भी कोई कोताही नहीं बरतती ।अपनी माटी से मेरा एक विशिष्ट लगाव  है ।हमारे खान -पान ,रहन -सहन  ,पहनावे में भी परिवर्तन हुआ है इसे भी मैं प्रगति ही मानती हूँ ।अपनी परंपराओं को त्यागना हमारे लिए सहज नहीं है लेकिन अति आधुनिक होती दुनिया से सामंजस्य बिठाने के लिए  नई तकनीक सीखना भी उचित मानती हूँ  ताकि प्रगति पथ पर चलकर विकासोन्मुख हुआ जा सके।

    * आज के परिप्रेक्ष्य में संयुक्त परिवार के बारे में आपकी क्या राय है?

    * यह समझ लीजिए संयुक्त परिवार मुझे विरासत में मिला है। मेरा पालन -पोषण एक संयुक्त परिवार में हुआ है ।मेरा विवाह भी संयुक्त परिवार में हुआ है ।मेरा यह मानना है कि  संयुक्त परिवार व्यक्तित्व विकास की धुरी है ।संबंधों का निर्वहन जितनी सहजता से संयुक्त परिवार में होता है शायद एकल परिवार में नहीं हो पाता है।एकल परिवार के बच्चों में समायोजन की समस्या होती है पर संयुक्त परिवार में बच्चे बहुत आसानी से समायोजित हो जाते हैं।मेरे पास मेरे बच्चों के अतिरिक्त पाँच बच्चे और हैं जो मेरे भाइयों व देवरों के बच्चे हैं जिनका पूरा दायित्व हमारा है।चार बच्चे नौकरी कर रहे हैं ,बाकी सब बच्चे पढ़ लिख रहे हैं  साल दो साल में सभी बच्चे कहीं न समायोजित हो जाएँगे यह मेरे लिए अति प्रसन्नता की बात होगी ।एक बात मैनें महसूस किया है कि व्यक्तिगत अनुभूतियों को अधिक स्थान मिलने के अवसर कम होते हैं ।पर मैं भाग्यशाली हूँ  मुझे पूरा समय दिया  गया ।यदि संयुक्त परिवार में सुमति है तो सबका भरण -पोषण हो जाता है ।दुख-सुख कब बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता।कम आय वाले व्यक्ति पर संयुक्त परिवार में रहने पर कम दबाव रहता है ।पर संयुक्त परिवार में कलह की स्थिति बहुत भयंकर होती है जब परिवार टूटता है शत्रुता भी काँप जाए।यह पीड़ा भी 1984 में अपने मायके (ग्राम -बर्रा, जिला-आजमगढ़ )में भोगा है।

    *आपको यहाँ तक पहुँचने में अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा होगा?

    *मेरा मानना है संघर्ष  मनुष्य के जीवन को निखारता है ।मेरा विवाह इण्टरमीडिएट की परीक्षा देते ही ग्रा० -गौरा ,पो०कोल्हुआ जनपद -जौनपुर में हो गया था ।मैं गृहकार्य में इतनी दक्ष नहीं थी ।मुझसे प्रायः गलतियाँ हो जाती थी पर मेरे देवर हमेशा संकटमोचक बन जाते थे  और मैं सोच भी नहीं पाती थी वे हल निकाल लेते थे।
    घर के हर कार्य को चाहे मुझे आये या न  आये मैं सहर्ष करती थी कभी भी मना नहीं किया कि मैं यह कार्य नहीं कर पाऊँगी।
    1987 में मैं बी० ए० फाइनल में थी और गर्भवती भी उस  अवस्था में मैं नियमित चार कि०मी०पैदल चलकर कालेज जाती थी और सुपुत्र का जिस दिन सुबह जन्म हुआ उस दिन तीन बजे मेरी परीक्षा थी ,और मैने परीक्षा भी दी।मैं अपने प्रिंसिपल और प्राध्यापकों को हृदय से धन्यवाद देती हूँ उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया था।इसी तरह मैने बी ०टी०सी० व बीएड ससुराल से 
     लगभग 45 कि०मी०दूर जौनपुर शहर से नियमित किया था।जब भी घर  आती थी  मुझे पाँच से सात कि०मी०पैदल चलना ही पड़ता था क्योंकि तब कोई साधन नहीं था।दिल्ली आने भी पर एक वर्ष तक मैने प्राइवेट विद्यालय में 800/-पर नौकरी किया उसके बाद सरकारी विद्यालय में नौकरी लगी थी।

    *आपकी शिक्षा -दीक्षा कहाँ से हुई ?

    *मेरी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में हिन्दी हाईस्कूल घाटकोपर में हुई थी।मेरे पिताजी उसी विद्यालय में अध्यापक थे।आप तो जानते ही हैं जो प्रवासी हो जाते हैं गाँववाले नहीं चाहते कि वह व्यक्ति गाँव आकर रहे।मेरी माताजी बहुत ही जुझारू और कर्मठ थीं उन्होंने ने पैतृक संपत्ति के लिए पिताजी की असहमति के बावजूद मुंबई छोड़ा और विषम परिस्थितियों में हम लोगों को लेकर गाँव में रहीं ।मेरी हाईस्कूल 983,इण्टरमीडिएट 1985 व बी०ए०1987 तक की शिक्षा नियमित विद्यार्थी के रुप में राष्ट्रीय इण्टर कालेज जमुहाई जौनपुर व राष्ट्रीय महाविद्यालय जमुहाई से संपन्न हुई।1989 में मैनें एम०ए० समाजशास्त्र कानपुर विश्वविद्यालय से किया ,1991 में बी०टी०सी०राजकीय विद्यालय जौनपुर व 1992 में बी०एड०टी ०डी० कालेज जौनपुर से किया।2003 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एम ०ए०हिन्दी पत्राचार से नौकरी के साथ -साथ किया।

    *आप अपने साहित्यिक योगदान के बारे में बताइए?

    *साहित्यकार को साहित्य की किसी एक विधा में बाँधा नहीं जा सकता ।उसकी लेखनी साहित्य की हर विधा का स्पर्श करती है।वैसे गीत सृजन मेरी प्राथमिकता है।आल्हा छंद,पंचचामर छंद गीत ,गीतिका,नवगीत,दोहा,कुंडलिया, पद,सवैया,घनाक्षरी जैसे पारंपरिक छंदों को लिखने के साथ -साथ मैं पिरामिड, माहिया, सोडुका ,चौका,तेवरी ,मुकरी व छंदमुक्त रचनाओं का समय -समय पर सृजन करती रहती हूँ।ग्रामीण परिवेश से आने के कारण मैं अपनी लोक संस्कृति को भूल नहीं पाई हूँ इसलिए भोजपुरी व अवधी में भी  पारंपरिक लोकगीतों सोहर ,लचारी, कजरी विवाह,चैता,कँहरवा ,फगुआ, चौताल व जँतसार की रचना भी समय -समय पर करती रहती हूँ।
    मेरी रचनाएँ कई साँझा संग्रहों जैसे उत्कर्ष काव्यसंग्रह,प्राथमिक शिक्षकएन०सी०आर०टी०,गीतिका है मनोरम,गीत किसने गाया, किसलय,साहित्य रसधारा में संकलित हैं।हेलो भोजपुरी, अनंतवक्ता,व साहित्य सरोज व नेपाल की पूर्वांचल दर्पण पत्रिका व कई समाचार पत्रों में नियमित छपती रहती हैं।
    2017 में मेरी काव्यकृति मधुर मिलन प्रकाशित हो चुकी है। आनेवाली कृतियाँ जो प्रकाशन के लिए प्रेस में हैं मन वासंती हुआ(काव्यसंग्रह)अधीन-अनुरागिनी (अवधी रचनाएँ,हिन्दी गीत) व सुलगते पल (कहानी संग्रह) है।

    *आप अपना प्रेरक व्यक्तित्व किसे मानती हैं?

    *मेरा आदर्श व्यक्तित्व मेरी जन्मदात्री माँ और मेरी सासू माँ जो स्वयं एक अध्यापिका थीं दोनों ही हैं एक माँ से मैनें विषम परिस्थितियों में संघर्ष करना सीखा तो दूसरी माँ ने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सदैव प्रेरित व प्रोत्साहित  किया और मुझे भी पुत्रवत शिक्षित किया ।मेरी एक- एक सफलता पर फूली नहीं समाती थींऔर जब वह सबसे कहती थीं यह मेरा सातवाँ पुत्र है तो मुझे बहुत गर्व होता था।आज वह दोनों नहीं हैं पर उनकी प्रेरणा मेरी साँस -साँस में है।अध्ययन काल में मेरे हिन्दी के अध्यापक श्रद्धेय रामसमुझ यादव जी जो मुझे हाईस्कूल में हिन्दी पढा़ते थे उनका पढ़ाने का सरस रुचिकर ढंग मेरी काव्य में रुचि जगा गया ।विद्यालय के प्रबंधक श्रद्धेय स्व० अमलदार सिंह जी जो हमें बी०ए०में हिन्दी पढ़ाते थे पढ़ाते -पढ़ाते अपनी स्वरचित कविताओं को पढ़ाने लगते थे जिससे मेरे मन में भी हिन्दी अध्यापिका बनने का स्वप्न जगा था जो पूरा भी हुआ।उन सभी को हृदय की गहराइयों से कोटिशः नमन करती हूँ।

    *आपकी साहित्य के क्षेत्र में आगामी योजना क्या है?

    *एक साहित्यकार तो जीवनभर साहित्य साधना करता रहता है।मैं भी साहित्य -सागर में अपनी बूँद रूपी रचनाओं का योगदान करना चाहती हूँ और निरक्षर महिलाओं को साक्षर करने का संकल्प पूरा करने का पूर्ण प्रयास करूँगी ।मैं सब जगह नहीं जा सकती पर जहाँ रहती हूँ वहाँ चिराग़ तले अँधेरा न रहे मेरा ऐसा मानना है।

    Chat With us on whatsapp

     Admin and Founder 
    S.M.Masoom
    Cont:9452060283
    • Blogger Comments
    • Facebook Comments

    0 comments:

    एक टिप्पणी भेजें

    हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
    संचालक
    एस एम् मासूम

    Item Reviewed: लोक साहित्यकारा मिलन सिंह मधुर का साक्षात्कार Rating: 5 Reviewed By: S.M.Masoom
    Scroll to Top