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काशी नरेश महाराजा विभूति नारायण के दीवान अली जामिन की बेटी रबाब जामिन मुझे किताब भेंट करते हुए | |
काशी नरेश के पहले दीवान गुलशन अली |
महाराजा इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के बाद १८८९ में महराजा प्रभु नारण सिंह राजा बने और उसके बाद १९३१ में उनके देहांत के बाद आदित्य नारायण सिंह महाराजा बने | इसी के साथ साथ दीवान मौलाना गुलशन अली के बाद उनके बेटे सैय्येद अली मुहम्मद और उसके बाद सय्यद मोहम्मद नजमुद्दीन दीवान बनारस स्टेट रहे |
रबाब जामिन बताती है की महाराजा आदित्य नारायण के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने ही परवार से सात साल का बच्चा गोद ले लिया था जो उनके देहांत के समय बहुत छोटे थे | महाराजा आदित्य नारायण सिंह १८३९ में रुबाब जामिन के पिता जौनपुर निवासी खान बहादुर अली जामिन को दीवान काशी नरेश बना चुके थे | अपने अंतिम समय में राजा आदित्य नारायण सिंह ने दीवान अली जामिन साहब को बुलाया और अपने १२ साल के पुत्र विभूति नारायण का हाथ उनके हाथ में दे दिया |
अंग्रेजों ने खान बहादुर अली जामिन को बनारस एस्टेट का सेक्रेट्री बना दिया और जुलाई १९४७ में आजादी के बाद खान बहादुर अली जामिन ने सत्ता विभूति नारायण के हाथ सौप दी और दीवान काशी नरेश का पद संभाल लिया | लेकिन १९४८ में सेहत की खराबी के कारण अवकाश प्राप्त कर के अपने वतन चले गए और इस प्रकार बनारस एस्टेट से सय्यद दीवान बनने का सिलसिला ख़त्म हुआ | दीवान काशी नरेश खान बहादुर अली जामिन का परिवार मुरादाबाद से होता हुआ कनाडा इत्यादि देश की तरफ रोज़गार के सिलसिले में चला गया लेकिन वे सभी आज भी अपने वतन कजगांव जौनपुर से जुड़े हुए हैं |
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काशी नरेश के अंतिम दीवान अली जामिन |
रुबाब जामिन के पिता अंतिम दीवान काशी नरेश का देहांत १ नवम्बर १९५५ में मुरादाबाद में हो गया और इसी के साथ बनारस स्टेट में जौनपुर के सय्यद मुस्लिम दीवान का अध्याय भी ख़त्म हो गया क्यूँ आजादी के बाद बनारस स्टेट भी उत्तर प्रदेश का हिस्सा बन चुका था |
रबाब जामिन अपनी किताब A Family Saga में लिखती हैं की 16 सितम्बर १९४८ को दीवान काशी नरेश अली जामिन के त्यागपत्र देने के बाद हादी अखबार ने लिखा बनारस राज्य एक हिन्दू राज्य होने के बाद भी अधिकतर वहाँ के दीवान जौनपुर के सय्यिद हुआ करते थे जिनके बनारस स्टेट में बहुत अधिक अधिकार प्राप्त थे और सय्यद अली जामिन उनमे से अंतिम दीवान थे |
आज भी जौनपुर का यह सय्यिद ज़मींदार घराना जौनपुर के कजगांव में और पानदरीबा में रहता है जिसके अधिकतर लोग रोज़ी रोटी के सिलसिले में देश के बहार अन्य शहरों में और अन्य देशों में बस गए हैं | यह सभी लोग वर्ष में एक बार अपने वतन कजगांव और पान दरीबा जौनपुर अवश्य आते हैं जहां उनका पुश्तैनी घर और कुछ रिश्तेदार रहा करते हैं | "A Family Saga" में रबाब जामिन ने अपने पिता खान बहादुर सय्यद अली जामिन के परिवार का भी ज़िक्र किया है जिनमे से मेरी पत्नी नरजिस आबिदी के साथ साथ कुछ मशहूर नाम इस प्रकार हैं | मशहूर इतिहासकार और लेखिका राना सफवी (नवासी ), हमीदा आगा ( अवकाश प्राप्त स्टेट बैंक ऑफ इंडिया डिप्टी जनरल मेनेजर )(पुत्री ) ,मशहूर जर्नलिस्ट्स नूर जैनब ,सुमेरा आबिदी , क़मर आगा ,असगर अब्बास जैदी (अवकाश प्राप्त डी आई जी इत्यादि |
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Book A family Saga |
अब जब भी रबाब जामिन लखनऊ और जौनपुर आती हैं तो उन्हें बहुत कुछ बदला बदला लगता है | न अब वो काशी के रजवाड़े रहे और न वो लोग जिन्हें रबाब जामिन खुद अपनी आँखों से देख चुकी हैं | अंतिम दीवान काशी नरेश की बेटी रबाब जामिन बताती हैं की एक बार ऐसा हुआ की रामलीला का अवसर था जिसमे हाथी पे सबसे आगे सवारी महाराजा विभूति नारायण की होनी चाहिए थी लेकिन वे उस समय अजमेर के मायो कॉलेज पे पढ़ रहे थे और उनकी अनुपस्थिति में सबसे बड़ी पोस्ट दीवान की थी और खान बहादुर अली जामिन को सबसे आगे हाथी पे बैठना था लेकिन वो भी उस दिन उपस्थिक नहीं हो सके तो उन्हें दीवान कशी नरेश की पुत्री होने के कारण बैठना बड़ा जबकि उनकी उम्र उस समय केवन सात साल की थी |

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खान बहादुर अली जामिन हुसैनाबाद ट्रस्ट से भी जुड़े थे और आज भी उनकी तस्वीर पिक्चर गल्लरी में लगी है |
..एस एम् मासूम

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