728x90 AdSpace

This Blog is protected by DMCA.com

DMCA.com for Blogger blogs Copyright: All rights reserved. No part of the hamarajaunpur.com may be reproduced or copied in any form or by any means [graphic, electronic or mechanical, including photocopying, recording, taping or information retrieval systems] or reproduced on any disc, tape, perforated media or other information storage device, etc., without the explicit written permission of the editor. Breach of the condition is liable for legal action. hamarajaunpur.com is a part of "Hamara Jaunpur Social welfare Foundation (Regd) Admin S.M.Masoom
  • Latest

    मंगलवार, 7 फ़रवरी 2017

    जौनपुर निवासी दीवान और सेक्रेटरी काशी नरेश अली जामिन की जीवनी पे लिखी गयी किताब |


    काशी नरेश  महाराजा  विभूति नारायण के दीवान अली जामिन  की बेटी
    रबाब जामिन मुझे किताब भेंट करते हुए |
    जौनपुर का इतिहास अपने आपमें बहुत से रहस्यों को समेटे हुए है |  आज लखनऊ में मैंने  काशी नरेश  महाराजा  विभूति नारायण के दीवान अली जामिन जैदी की बेटी रबाब जामिन  से मुलाक़ात  की जिन्होंने अपने पिता अंतिम दीवान काशी नरेश खान बहादुर अली जामिन  के  जीवन पे एक किताब लिखी जिसका नाम है " A family Saga" जिसे उन्होंने  मुझे  भेंट किया क्यूँ की खान बहादुर  दीवान और काशी  नरेश अली जामिन  मेरी पत्नी के दादा (grand Father)  थे |  ... एस एम् मासूम





    काशी नरेश के पहले दीवान गुलशन अली 
    आज़ादी के पहले तक बनारस एक ऐसी रियासत रही है जहां हमेशा से जौनपुर की  सय्यद परिवार के दीवान रहे हैं | जिसमे पहले दीवान और प्रधान मंत्री बनारस एस्टेट के बने जौनपुर कजगांव निवासी सय्यद गुलशन अली और इनकी अहमियत केवल इसी बात से पता चलती है इतिहासकार सयेद नकी हसन अपनी किताब "My nostagic Journey" में लिखते हैं की जब मौलाना सय्यद गुलशन अली के देहांत की खबर उस समय के राजा बनारस इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह ने सुनी तो उन्होंने अपना कीमती मुकुट उठा के ज़मीन पे फेंक  दिया और रोते हुए बोले आज मेरे पिता का देहांत हो गया |

    महाराजा इश्वरी प्रसाद नारायण सिंह के बाद १८८९ में महराजा प्रभु नारण सिंह राजा बने और उसके बाद १९३१ में उनके देहांत के बाद आदित्य नारायण सिंह महाराजा बने | इसी के साथ साथ दीवान मौलाना गुलशन अली के बाद उनके बेटे  सैय्येद अली  मुहम्मद और उसके  बाद सय्यद मोहम्मद नजमुद्दीन दीवान बनारस स्टेट रहे |

    रबाब जामिन बताती है की  महाराजा आदित्य नारायण के कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने ही परवार से सात साल का बच्चा गोद ले लिया था जो उनके देहांत के समय  बहुत छोटे थे  | महाराजा आदित्य नारायण सिंह १८३९ में   रुबाब जामिन के पिता जौनपुर निवासी खान बहादुर अली जामिन को  दीवान  काशी नरेश बना चुके  थे | अपने अंतिम समय में राजा आदित्य नारायण सिंह ने दीवान अली जामिन साहब को बुलाया और अपने १२ साल के पुत्र विभूति नारायण का हाथ उनके हाथ में दे दिया |


    अंग्रेजों ने खान बहादुर अली जामिन  को बनारस एस्टेट का सेक्रेट्री बना दिया और जुलाई १९४७ में आजादी के बाद खान बहादुर अली जामिन  ने सत्ता विभूति नारायण  के हाथ  सौप दी  और  दीवान काशी नरेश का पद संभाल लिया | लेकिन १९४८ में सेहत की खराबी के कारण अवकाश प्राप्त कर के अपने वतन चले गए और इस प्रकार बनारस एस्टेट से सय्यद दीवान बनने का सिलसिला ख़त्म हुआ | दीवान काशी नरेश खान बहादुर अली जामिन का परिवार मुरादाबाद से होता हुआ कनाडा इत्यादि देश की तरफ रोज़गार के सिलसिले में चला गया लेकिन वे सभी  आज भी अपने वतन कजगांव जौनपुर से जुड़े हुए हैं |

    काशी नरेश के अंतिम दीवान अली जामिन 
    रुबाब जामिन हर साल सर्दियों में कजगांव जौनपुर आती है लेकिन अधिक समय लखनऊ में रहती है | उन्होंने मुलाक़ात में बताया की उनके पिता सय्यद  अली जामिन का जन्म सन १८८४ में हुआ जो जौनपुर  कजगांव के  रहने वाले थे | कजगांव  का पुराना नाम  सदात मसौंडा था | खान बहादुर अली जामिन उस घराने से ताल्लुक रखते थे जिसके पुरखे हमेशा से काशी नरेश के यहाँ उच्च पदों पे रहे और  बनारस स्टेट  के काम काज में अहम् भूमिका निभाते रहे थे |

    रुबाब जामिन के पिता अंतिम दीवान काशी  नरेश का देहांत १  नवम्बर १९५५ में मुरादाबाद में हो गया और इसी के साथ बनारस स्टेट में जौनपुर के सय्यद मुस्लिम दीवान का अध्याय भी ख़त्म हो गया क्यूँ आजादी के बाद बनारस स्टेट भी उत्तर प्रदेश का हिस्सा बन चुका था |

    रबाब जामिन अपनी किताब A Family Saga में लिखती हैं की 16 सितम्बर १९४८ को दीवान  काशी नरेश अली जामिन के त्यागपत्र देने के बाद हादी अखबार ने लिखा बनारस राज्य एक हिन्दू राज्य होने के बाद भी अधिकतर वहाँ के दीवान जौनपुर के सय्यिद हुआ करते थे जिनके बनारस स्टेट में बहुत अधिक अधिकार प्राप्त थे और सय्यद  अली जामिन  उनमे से अंतिम दीवान थे |

    आज भी जौनपुर का यह सय्यिद ज़मींदार घराना जौनपुर के कजगांव में और पानदरीबा में रहता है जिसके अधिकतर लोग रोज़ी रोटी के सिलसिले में देश के बहार अन्य शहरों में और अन्य देशों में बस गए हैं | यह सभी लोग वर्ष में एक बार अपने वतन कजगांव और पान दरीबा जौनपुर  अवश्य आते हैं जहां उनका पुश्तैनी घर और कुछ रिश्तेदार रहा करते हैं | "A Family Saga" में रबाब जामिन ने अपने पिता खान बहादुर सय्यद अली जामिन के परिवार का भी ज़िक्र किया है जिनमे से मेरी पत्नी नरजिस आबिदी के साथ साथ कुछ मशहूर नाम इस प्रकार हैं | मशहूर इतिहासकार और लेखिका राना सफवी (नवासी ), हमीदा आगा ( अवकाश प्राप्त स्टेट बैंक ऑफ इंडिया डिप्टी जनरल मेनेजर )(पुत्री ) ,मशहूर जर्नलिस्ट्स नूर जैनब ,सुमेरा आबिदी , क़मर आगा ,असगर अब्बास जैदी (अवकाश प्राप्त डी आई जी इत्यादि |

    Book  A family Saga

     अब जब भी रबाब जामिन लखनऊ और जौनपुर आती हैं तो उन्हें बहुत कुछ बदला बदला लगता है | न अब वो काशी के रजवाड़े रहे और न वो लोग जिन्हें रबाब जामिन खुद अपनी आँखों से देख चुकी हैं | अंतिम दीवान काशी नरेश की बेटी रबाब जामिन बताती हैं की एक बार ऐसा हुआ की  रामलीला का अवसर था जिसमे हाथी पे सबसे आगे सवारी महाराजा  विभूति नारायण की होनी चाहिए थी लेकिन वे उस समय अजमेर के मायो कॉलेज पे पढ़ रहे थे और उनकी अनुपस्थिति में सबसे बड़ी पोस्ट दीवान की थी और खान बहादुर अली जामिन को सबसे आगे हाथी पे बैठना था लेकिन वो भी उस दिन उपस्थिक नहीं हो सके तो  उन्हें दीवान कशी नरेश की पुत्री होने के कारण  बैठना बड़ा जबकि उनकी उम्र उस समय केवन सात साल की थी  |


     Facebook
    उन्हें  अब तक याद है की महावत आया और हाथी से बोला बीबी को सलाम करों और हाथी ने गुटने पे बैठ के सूंड उठा के उनका माथा छु के सलाम किया और फिर उन्हें हाथी पे बिठाया गया और पूरी रामलीला में उनका हाथी सबसे आगे आगे चलता रहा और उन्हें वही इज्ज़त दी गयी जो महाराया या दीवान काशी  नरेश को दी जानी चाहिए थी जब की उनकी उम्र उस समय केवल सात साल की थी | उनके अनुसार उस बनारस में जहां कभी वो खुद रामलीला के समय हाथी पे बैठा के सबसे अधिक इज्ज़त पाती थीं वहाँ इस वर्ष उनके जाने पे कोई उन्हें पहचान ही नहीं सका |  उदास आँखों से रबाब जामिन बार बार  कहती हैं "ना  वो घर रहा न वो लोग"
    .
    खान बहादुर अली जामिन हुसैनाबाद ट्रस्ट से भी जुड़े थे और आज भी उनकी तस्वीर पिक्चर गल्लरी में लगी है |
    ..एस एम् मासूम

     Admin and Founder 
    S.M.Masoom
    Cont:9452060283
    • Blogger Comments
    • Facebook Comments

    0 comments:

    एक टिप्पणी भेजें

    हमारा जौनपुर में आपके सुझाव का स्वागत है | सुझाव दे के अपने वतन जौनपुर को विश्वपटल पे उसका सही स्थान दिलाने में हमारी मदद करें |
    संचालक
    एस एम् मासूम

    Item Reviewed: जौनपुर निवासी दीवान और सेक्रेटरी काशी नरेश अली जामिन की जीवनी पे लिखी गयी किताब | Rating: 5 Reviewed By: एस एम् मासूम
    Scroll to Top